आकिल हुसैन। Twocircles.net
आज जहां एक तरफ देश में धार्मिक ध्रुवीकरण कर देश के सामाजिक ताने-बाने को तोड़ने की कोशिश की जा रहीं हैं वहीं गुजरात से एक ऐसी खबर सामने आई है जो इस नफ़रत भरें माहौल में समाजिक सौहार्द और भाईचारे की मिसाल बन गई है। गुजरात के एक ऐतिहासिक 1200 साल पुराना वरंद वीर महाराज के मंदिर के दरवाज़े मुसलमानों के लिए रोज़ा इफ्तार करने के लिए खोल दिए गए हैं। वाकई किसी ने सच ही कहा है कि धर्म हमेशा लोगों को जोड़ने का काम करता है।
गुजरात के बनासकांठा जिले के दलवाना गांव ने रमज़ान के इस पवित्र माह के अवसर पर सौहार्द और भाईचारे की मिसाल पेश की हैं। दलवाना गांव में वरंद वीर महाराज का मंदिर है जो लगभग 1200 साल पुराना हैं। बीते 8 मार्च शुक्रवार यानी रमज़ान के पहले जुमे के दिन इसी प्राचीन मंदिर में मंदिर की कमेटी और गांव की पंचायत द्वारा गांव के मुसलमानों के रोज़ा इफ्तार का आयोजन किया गया और मगरिब की नमाज़ भी मंदिर में अदा की गई।
मंदिर ट्रस्ट द्वारा गांव के 100 से ज़्यादा मुसलमानों को मंदिर में रोज़ा खोलने और साथ ही मगरिब की नमाज़ अदा करने के लिए आमंत्रित किया गया था। मंदिर ट्रस्ट की ओर से रोज़ा खोलने वालों के लिए खाने पीने का इंतजाम किया गया था। रोज़ा इफ्तार के लिए मंदिर के संचालकों द्वारा कई प्रकार के फलों, खजूर, शर्बत और भी कई खाने पीने की चीजों का इंतजाम किया गया था।
गांव के सरपंच भूपतसिंह हाडिओल के अनुसार,’ इस्लाम धर्म में शुक्रवार के दिन यानी जुमे का महत्व होता है। वरंदा वीर महाराज मंदिर के संचालकों ने तय किया कि शुक्रवार को ही गांव में रहने वाले मुस्लिम परिवारों को मंदिर परिसर में ही रोज़ा खोलने के लिए आमंत्रित किया जाएगा। जिसके बाद उन्होंने गांव की पंचायत के सामने यह प्रस्ताव रखा कि मंदिर परिसर में रोज़ा इफ्तार का आयोजन किया जाएगा और गांव के मुसलमानों को रोज़ा खोलने और नमाज़ भी अदा करने के लिए आमंत्रित किया जाएगा, प्रस्ताव का सभी गांव वालों ने समर्थन किया’।
गांव के सरपंच भूपतसिंह हाडिओल कहते हैं कि,’रामनवमी और होली जैसे त्योहारों में गांव के मुसलमानों ने हमारी काफी मदद की है, इस साल हमने सोचा कि हम भी उनके लिए ऐसा ही कुछ करें जिससे कि हमारा गांव देशभर के लिए भाईचारे की मिसाल बन जाएं’।
उन्होंने कहा कि,’हमने आसपास के गांवों के मुस्लिम दोस्तों को भी इसमें आमंत्रित किया था और ज़्यादातर लोग इसमें शामिल भी हुए’।
वरंद वीर महाराज मंदिर के पुजारी पंकज ठाकुर कहते हैं कि,’ पहली बार ऐसा हुआ है जब मंदिर में इफ्तार का आयोजन किया गया है’। वे कहते हैं कि,’ कई बार हिंदू और मुसलमानों के कई त्योहार एक ही दिन पड़ते हैं और हर बार हम एक-दूसरे की मदद करते हैं। हम सब सद्भावना और भाईचारे के साथ रहने में विश्वास रखते हैं। इस बार हमने रोजेदारों को इफ्तार के लिए मंदिर में आमंत्रित किया और मैंने खुद स्थानीय मस्जिद के मौलाना को इफ्तार के लिए मंदिर में आमंत्रित भी किया’।
वरंद वीर महाराज मंदिर ट्रस्ट के सचिव रंजीत हाडिओल कहते हैं कि,’ जब प्रदेश में हिंदू-मुस्लिम के झगड़े अपने चरम पर थे, तब भी हमारे गांव ने एकता और धार्मिक सहिष्णुता की मिसाल कायम की थी, हम सामूहिक रूप से हर त्योहार को एक साथ मनाते हैं फिर चाहे वो दशहरा हो या ईद’। वे कहते हैं कि,’ गांव के ज़्यादातर परिवारो ने मंदिर निर्माण के दौरान दान भी दिया था’।
मंदिर के इस फैसले से गांव के मुसलमान काफी खुश हैं। दलवाना गांव के वसीम खान के अनुसार पूरे इलाके में उनके गांव की हिंदू-मुसलमान भाईचारे की मिसाल और पूरा गांव सिर्फ मुसलमानों ने भी कई हिंदू आयोजनों में मदद की है। लेकिन मंदिर के इस फैसले ने पूरे गांव भावुक कर दिया है। वसीम के अनुसार मंदिर कमेटी के लोगों ने गांव के मुस्लिम परिवारों को मंदिर परिसर में रोज़ा खोलने के लिए आमंत्रित किया था और सबने ख़ुशी के साथ आमंत्रण को स्वीकार भी किया।
दलवाना गांव की आबादी लगभग 2,500 की हैं जिसमें राजपूत, पटेल, प्रजापति, देवीपूजक और मुस्लिम समुदाय शामिल हैं। गांव में मुसलमानों के लगभग 50 परिवार रहते हैं। इन परिवारों में ज्यादातर लोग खेती किसानी करते हैं।गांव में मुस्लिमों की आबादी तकरीबन 15 फीसदी है लेकिन 85 फीसदी हिंदुओं के साथ उनका भाईचारा ऐसा कि नफ़रत की आग भी उसे जला नहीं पाई हैं।
1200 साल पुराने मंदिर में हुए रोजा इफ्तार की चर्चा देशभर में हो रही है। आज देश को ऐसे ही प्यार, भाईचारे सौहार्द की जरूरत है। उम्मीद है समाज में नफ़रत फैलाने वाले लोग इस सौहार्द की मिसाल से कुछ सबक लेंगे।