Home Art/Culture मुस्लिम महिलाओं के सम्मान में हर वर्ग से उठी आवाज़

मुस्लिम महिलाओं के सम्मान में हर वर्ग से उठी आवाज़

सिमरा अंसारी।Twocircles.net

कर्नाटक के उडुपी ज़िले से शुरू हुई हिजाब प्रतिबंध की आग अब देश के दूसरे हिस्सों में भी फैलती जा रही है।बुधवार को उत्तर प्रदेश के गाज़ियाबाद से एक वीडियो सामने आया जहां हिजाब व बुर्का पहनी हुई लड़कियों पर पुलिस लाठियां बरसा रही है. ये वीडियो सोशल मीडिया पर ख़ूब वायरल हो रहा है. बीते दिनों ऐसी ही एक घटना यूपी के जौनपुर से भी सामने आई जहां प्रोफेसर ने छात्रा के हिजाब को पागलपन का प्रतीक बताते हुए उसे क्लास से निकाल दिया. प्रोफेसर का कहना था, “यह सब काम पागल लोग करते हैं। अगर मेरा बस चले तो मैं यूपी में इसे पूरी तरह से बंद करा दूं। बुर्के को उतारकर फेंक देना चाहिए।”

अब ये आग छात्राओं के यूनिफॉर्म से बढ़कर मुस्लिम अध्यापिकाओं तक पहुंच गई है। सोशल मीडिया पर वायरल हो रहे फोटोज़ व वीडियोज़ में साफ देखा जा सकता है कि मुस्लिम अध्यापिकाओं से भी हिजाब व बुर्का उतरवाया जा रहा है। कुछ ऐसे दृश्य भी सामने आए जहां हिजाब पहने हुई छोटी बच्ची को डराया जा रहा है, पत्रकार उसके पीछे भाग रहे हैं। एक लोकतांत्रिक राज्य के ऐसे दृश्यों को देखकर सवाल तो बनता है, क्या दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र में मुस्लिम महिलाओं का कोई सम्मान नहीं है?

हुमा मसीह

विभिन्न क्षेत्रों में खास पहचान रखने वाली महिलाओं ने TwoCircles.Net से बात करते हुए इस मुद्दे पर अपनी-अपनी राय रखी। स्वतंत्र पत्रकार हुमा मसीह देश में विभिन्न क्षेत्रों में मुस्लिम लड़कियों के साथ घटित हो रही इस प्रकार की घटनाओं को संवैधानिक अधिकारों का हनन बताते हुए कहती हैं, “एक लोकतांत्रिक देश में लॉ एंड ऑर्डर को बनाए रखने की ज़िम्मेदारी पुलिस की है। मुस्लिम महिलाओं के बुर्के या हिजाब पर टिप्पणी करने वाले या उतरवाने की बात कहने वालों पर कार्यवाही होनी चाहिए। एक तरफ़ सरकार का कहना है कि हम मुस्लिम महिलाओं के अधिकारों की सुरक्षा करते हैं वहीं दूसरी तरफ मुस्लिम महिलाओं के अधिकारों या उनको न्याय दिलाने के प्रति सरकार का पक्षपाती रवैय्या देखने को मिलता है।वर्तमान समय में सरकार मुस्लिम महिलाओं के संवैधानिक अधिकारों को सुनिश्चित करने में विफल रही है।

आगे बात करते हुए हुमा कहती हैं, “मेरा ताल्लुक राजस्थान से है और वहां आज भी एक समुदाय में विधवा महिलाओं का पुनर्विवाह प्रतिबंधित है लेकिन सरकार इन मुद्दों पर बात नहीं करती। वो केवल मुस्लिम महिलाओं के बुर्के या हिजाब को शोषण का प्रतीक बताकर ध्रुवीकरण की राजनीति करना चाहती है। दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र में मुस्लिम महिलाओं के मौलिक अधिकार मज़ाक बन कर रह गए हैं और मुस्लिम महिलाओं के इस अपमान में न केवल दक्षिणपंथी सरकार बल्कि देश के तथाकथित उदारवादी और नारीवादी समूह भी ज़िम्मेदार हैं। मुस्लिम महिलाओं का सम्मान आज के दौर में एक कोरी कल्पना लगता है. विद्या केंद्रों में समुदाय विशेष की प्रथाओं को सामान्य बनाए जाने पर वे कहती हैं, “हिजाब भी साड़ी, पगड़ी, सिंदूर या बिंदी की भांति बिल्कुल सामान्य है. व्यक्तिगत रूप से अपनी धार्मिक पहचान को बरक़रार रखना प्रत्येक नागरिक का मौलिक अधिकार है लेकिन शिक्षण संस्थानों में धर्म विशेष की प्रथाओं को सभी छात्रों पर थोपना गैर संवैधानिक है।”

मनीषा भल्ला

’बाइज़्ज बरी’ किताब की लेखिका मनीषा भल्ला देश में बढ़ते हुए हिजाब विवाद को ध्रुवीकरण का मुद्दा बताते हुए कहती हैं, “हिजाब या कोई भी धार्मिक पहचान संवेदनशील होता है। कर्नाटक में उत्पन्न हुए इस विवाद को विशेषकर यूपी चुनाव में ध्रुवीकरण के लिए मुद्दा बनाया जा रहा है। हिजाब पागलपन का प्रतीक नहीं बल्कि हिजाब पर इस प्रकार की टिप्पणी पागलपन है. हिजाब पहनना या सर ढांकना तो भारतीय संस्कृति का हिस्सा है. प्राचीन काल से भारत में महिलाएं घूगंट करती आई हैं और वर्तमान समय में भी भारत के विभिन्न क्षेत्रों में महिलाएं सर पर दुपट्टा रखती हैं। रीति–रिवाज़, संस्कृति, प्रदेश एवं धर्म को चिन्हित करता कोई भी पहनावा सम्मानजनक होता है. इससे पता चलता है कि आज के इस आधुनिक युग में भी आप अपनी संस्कृति से जुड़े हुए हैं।” शिक्षण संस्थानों में एक समुदाय की प्रथाओं को सामान्य बनाए जाने व मुस्लिम छात्राओं के प्रति अभद्र व्यवहार पर मनीषा कहती हैं, ” जहां आज की तेज़ी से बदलती हुई दुनिया में हमें ध्यान इस बात पर देना चाहिए कि हम कैसे अपने देश को उन्नति की ओर लेकर जाएं वहीं देश की युवा पीढ़ी को धार्मिक पहचान के नाम पर नफरत की आग में झोंका जा रहा है. इसे मानसिक विकार कहा जा सकता है।”

सहीफ़ा खान

स्वतंत्र पत्रकार पत्रकार सहीफा ख़ान मुस्लिम महिलाओं के प्रति सरकार व प्रशासन के व्यवहार पर बात करते हुए कहती हैं, “संविधान ने न केवल मुस्लिम महिलाओं बल्कि सभी को सम्मान दिया। सभी धर्म के अनुयायियों को धार्मिक पहचान के साथ पढ़ने का, काम करने का अधिकार संविधान द्वारा दिया गया है. मुस्लिम पहचान के प्रति बहुसंख्यक समाज व प्रशासन के व्यवहार का एक बड़ा कारण तेज़ी से बढ़ रहा इस्लामोफोबिया है और जनता के ज़हनों में इस्लाम के प्रति नफ़रत इसलिए नहीं बैठाई जा रही है कि सरकार को इस्लाम से कोई खतरा या नफ़रत है बल्कि इसलिए कि इसके ज़रिए ही वे लोग अपनी सियासी रोटियां सेकते हैं।वे लोग इस्लामोफोबिया के द्वारा ही देश की बड़ी आबादी का ध्यान मुद्दों से भटकाने के लिए करते हैं।”

हिजाब के विरोध में मुस्लिम महिलाओं व लड़कियों के प्रति बहुसंख्यक समाज के व्यवहार पर बात करते हुए सहीफा कहती हैं, “इस्लाम के इतिहास पर नज़र डाली जाए तो पता चलता है कि ये क़ौम हमेशा कठिनाइयों का सामना करके पहले से ज़्यादा मज़बूत और दक्ष हुई है। इस विवाद के पश्चात भी मुस्लिम लड़कियां व महिलाएं अपने अधिकारों के प्रति पहले से ज़्यादा जागरूक होंगी और हमें इस विवाद से एक बड़े आंदोलन की आहट सुनाई दे रही है जो भविष्य में न केवल पूरा देश बल्कि पूरा विश्व देखेगा।हिजाब को शोषण का प्रतीक बताने के पीछे पश्चिम दुनिया से उभरे व्हाइट फेमिनिज्म और दुनिया में पैर पसारे हुए पूंजीवाद का बड़ा हाथ है. हिजाब के कारण कहीं न कहीं इनके व्यापार व फैशन इंडस्ट्री प्रभावित होती है।”