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‘मिनी पंजाब’ में तिकुनिया हिंसा की तपिश, टेनी के बेटे की जमानत ने बढ़ा दी भाजपा की टेंशन

एम. रियाज हाशमी Twocircles.net के लिए तराई इलाके से

मिनी पंजाब कहे जाने वाला तराई का इलाका भाजपा के लिए पिछले चुनाव में जितना उपजाऊ था, इस बार उतना ही बंजर दिखता है। कारण है कि किसान आंदोलन के विरोध प्रदर्शन के दौरान लखीमपुर खीरी के तिकुनिया में 3 अक्टूबर 2021 को किसानों को थार जीप से रौंदने की घटना फिर से जिंदा हो उठी है। इस घटना के मुख्य आरोपी और केंद्रीय गृह राज्यमंत्री अजय मिश्रा टेनी के बेटे आशीष मिश्रा मोनू को इसी हफ्ते जमानत पर जेल से रिहा किया गया है, जिसे लेकर किसानों में जबरदस्त आक्रोश है। आम तौर पर हरे-भरे खेतों से गुलजार और शांत रहने वाले तराई क्षेत्र में इस हादसे की चीख पुकार फिर से तैर रही हैं। ये हालात भाजपा के लिए किसी बड़ी टेंशन से कम नहीं दिखते हैं। लखीमपुर खीरी और पीलीभीत की दो दर्जन सीटों पर चौथे चरण में 23 फरवरी को वोटिंग होनी है। लखीमपुर खीरी लोकसभा सीट से भाजपा सांसद खुद टेनी हैं। जबकि पड़ोसी जिले पीलीभीत से भाजपा के सांसद वरुण गांधी हैं जो खुद भाजपा के लिए टेंशन पैदा कर चुके हैं।

पहले चरण के चुनाव से ठीक दो दिन पहले पीलीभीत से भाजपा सांसद वरुण गांधी ने अपने एक इंटरव्यू में कहा था, ‘इस बार का चुनाव महंगाई, बेरोजगारी, महिलाओं और किसानों के मुद्दे पर हो रहा है। 80-20 या 85-15 पर नहीं होगा। अखिलेश यादव और जयंत चौधरी जो कहते हैं, वो करते हैं।’ इस बयान के बाद से सांसद वरुण यूपी चुनाव के सीन से गायब हैं। एक महीने पहले उन्होंने जो कहा था, उसका असर तराई की जमीन पर साफ नजर आ रहा है। इन हालात को शायद वरुण पहले ही महसूस कर चुके थे। यहां के किसान एमएसपी (न्यूनतम समर्थन मूल्य) गारंटी के कानून को पहले से ही मुद्दा बनाए हुए हैं। लखीमपुर खीरी की पलिया तहसील के किसान गुरप्रताप सिंह कहते हैं, ‘मोनू की रिहाई भाजपा को बहुत महंगी पड़ने वाली है। हमने कभी कृषि कानून नहीं मांगे, हम तो एमएसपी पर खरीद की गारंटी का कानून मांग रहे हैं।’ हरमनजीत सिंह का परिवार 25 एकड़ में गन्ना, धान और गेहूं की खेती करता है, लेकिन गन्ने को पिछले साल बाढ़ बहा ले गई और धान की इस साल खरीद नहीं हो पाई। वे कहते हैं, ‘मोनू की जमानत के बाद किसान दहशत में हैं। टेनी का मंत्री पद पर बने रहना भाजपा की नीयत को दर्शाने के लिए काफी है। इस दर्द को किसान चुनाव में कैसे भूल सकते हैं?’ दिलजीत सिंह की पांच एकड़ जमीन में गन्ने की खेती थी और बाढ़ में एक बीघा फसल ही बच पाई। वे कहते हैं- सब कुछ बर्दाश्त है, लेकिन लखीमपुर हिंसा को कैसे भूल जाएं। क्या हमें नहीं पता कि आरोपी की जमानत किसकी शह पर हुई है?

लखीमपुर की आठों विधानसभा सीटें पिछली बार भाजपा ने जीती थीं। इस बार माहौल अलग है। ऑटो स्पेयर पार्ट्स विक्रेता हरनाम सिंह जवाब में प्रतिप्रश्न करते हैं, ‘आप ही बताओ कि 8 लोगों की हत्याओं का आरोपी 128 में कैसे छूट गया?’ पूछे जाने पर हरनाम कहते हैं- पिछली बार मैंने सत्तारूढ़ दल को वोट दिया था, लेकिन इस बार माहौल अलग है। पलिया तहसील की तीन चीनी मिलों पर गन्ना किसानों का करीब 700 करोड़ रुपये का बकाया है। बीसलपुर के किसान गुल्लू पहलवान इसे बीजेपी के लिए बड़ी चुनौती मानते हैं। कहते हैं, ‘अब भाजपा की जय जयकार का कोई कारण बचा नहीं है।’ तिकुनिया गांव निघासन विधानसभा सीट में है, जो लखीमपुर की आठ सीटों में से एक है। टेनी 2012 में यहां से विधायक और 2014 व 2019 में सांसद बने। तिकुनिया के आसपास के लोग आरोपी मोनू के खिलाफ बोलने से अब परहेज करते हैं, लेकिन ज्यादा कुरेदे जाने पर इनका गुस्सा फूट पड़ता है। मारे गए एक प्रदर्शनकारी लवप्रीत सिंह के पिता सतनाम कहते हैं कि 8 लोगों की हत्या के आरोपी को तो जमानत मिल गई, लेकिन इसी के क्रॉस मामले में जेल में बंद किसानों की सुनवाई भी नहीं हो रही है। लखीमपुर और पीलीभीत जिलों के देहात इलाकों से तमाम भाजपा नेता दूर हैं और इनकी जनसभाएं भी शहरी इलाकों में हुई हैं। इनमें भी टेनी कहीं नजर नहीं आए हैं। तमाम किसान संगठन भाजपा के खिलाफ सोशल मीडिया ग्रुपों पर भी मोर्चा खोले हुए हैं। दुधवा नेशनल पार्क के पास बसे फुरसैया गांव के प्रधान मुन्ना कहते हैं, ‘इस बार माहौल बदल चुका है और ध्रुवीकरण को आम मतदाता कोई तवज्जो नहीं दे रहे हैं।’

टाइगर रिजर्व में पर्यटकों को सफारी कराने वाले युवा रिंकू का बड़ा दर्द रोजगार है तो गाइड बद्दलराम इसे गंभीर विषय मानते हैं। पर्यटकों की घटती संख्या से इनकी रोजी रोटी पर बड़ा संकट आया है। दोनों ही इस चुनाव को बदलाव के मौके के तौर पर मान रहे हैं। उधर, पीलीभीत की चारों विधानसभा सीटें भी बीजेपी के पास हैं, लेकिन इस बार यहां के किसान भी बदलाव की राह पर हैं। इसी जमीनी हकीकत को देखते हुए यूपी के साथ उत्तराखंड और पंजाब में बिगड़े समीकरणों को साधने का बीजेपी ने लखीमपुर कांड की एसआइटी जांच रिपोर्ट के सहारे दांव खेला था, लेकिन मंत्रिमंडल में अजय मिश्रा टेनी की मौजूदगी और उनके आरोपी बेटे को जमानत ने इसे फेल कर दिया है। माला सिंह किसान हैं और पूरनपुर में ढाबा भी चलाते हैं। पिछली बार भाजपा को वोटर थे, लेकिन इस बार विरोध में हैं। कहते हैं- जो भाजपा को हराएगा, उसे वोट देंगे। पास में ही पंक्चर की दुकान चलाने वाले फहीम अहमद इस तस्वीर को यह कहकर साफ कर देते हैं, ‘उनके खिलाफ इस बार हम अकेले नहीं हैं और लड़ाई भी सीधी है।’
तराई में कहावत है कि यहां नदियां जब उफान पर आती हैं तो पानी की सूरत और सीरत बदल जाती है। क्या पीलीभीत की चुनावी वैतरणी भी इस बार ऐसा ही कुछ करने वाली है? व्यापारी राजेश कहते हैं- कोई सूरत नहीं बदलने वाली है। यहां बीजेपी मजबूत है। लेकिन ट्राली पर गन्ना लादकर चीनी मिल में डालने जा रहे हरविंदर सिंह पीलीभीत के बांसुरी चौराहे के बीचोंबीच लगी पीतल की उस बड़ी बांसुरी की तरफ इशारा करते हैं जिसे आमने सामने दो हाथ थामे हुए हैं। कहते हैं- ये बेजान प्रतीक हैं, लेकिन इसका एक संदेश है और इसकी तान की तरह ही वरुण गांधी की बात को भी सत्ता सुनना ही नहीं चाहती है।

पीलीभीत यूपी के उत्तरी भाग में बसा है, जो नेपाल के करीब है। यहां का अधिकांश भाग घने जंगलों से घिरा हुआ है। टाइगर रिजर्व और चूका बीच यहां के प्रमुख पर्यटक स्थल हैं और बांसुरी उत्पादन के लिए पूरे देश में मशहूर है। यहां की मझौला चीनी मिल पिछले 11 सालों से बंद है। हर चुनाव में तमाम पार्टियां सत्ता में आने पर इसे शुरू कराने का वादा करती हैं। बासुरी उद्योग की तान भी बिगड़ी हुई है। देश में बांसुरियों का लगभग 80% कारोबार यहीं से होता है, जो अब एक गली में सिमट गया है। सरकार के ‘वन डिस्ट्रिक्ट वन प्रोडक्ट’ में शामिल इस उद्योग को कोई राहत नहीं मिली है। स्थानीय लोगों का कहना है कि पीलीभीत में टाइगर रिजर्व, चूका बीच और शारदा डेम जैसी जगहों का सही ढंग से प्रचार-प्रसार नहीं होता है। यही कारण है कि यहां पर पर्यटक बड़ी तादाद में नहीं आते हैं।

1947 में पाकिस्तान और पंजाब से बड़ी संख्या में सिख तराई में आकर बसे है। यूपी में पीलीभीत, बरेली, शाहजहांपुर, बदायूं, लखीमपुर खीरी, रामपुर, सीतापुर और बहराइच से गोंडा तक यह बेल्ट फैली है। कभी कांग्रेस तो कभी सपा के साथ रहे सिखों ने 2014, 2017 और 2019 में कमल खिलाया था। तराई इलाके की करीब दो दर्जन विधानसभा सीटों पर इनका खासा असर है। इनके साथ जुड़कर मजदूर और व्यापारी का एक बड़ा नेटवर्क बनता है।

ज्यादा पैदावार के कारण तराई में इन दिनों गन्ने की फसल सूख रही है। जिन खेतों में गन्ना नहीं, वहां मजदूर औरतें आलू की खुदाई कर रही हैं। किसान फसलों की कम कीमत के कारण घाटे में हैं। रोजगार एक बड़ा मुद्दा है, लेकिन इस पर बात नहीं हो रही है। सड़क किनारे फैले खेतों के बाहर बोर्ड लगे हैं, जिन पर लिखा है, ‘सस्ते आवासीय प्लाट बिकाऊ हैं।’ कुछ खेतों में ईंटों से क्यारी जैसी लाइनें बनाकर प्लॉटिंग कर दी गई है। असंख्य खेतों के बाहर लगे ऐसे बोर्ड यह बताने के लिए काफी हैं कि खेती की जमीन कितने बड़े पैमाने पर तंग हो रही है।