जिब्रानउद्दीन।Twocircles.net
आल्ट न्यूज़ के सह संस्थापक मोहम्मद जुबैर को सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को उनके ऊपर दर्ज सभी मामलों में ज़मानत दे दिया। जिसके बाद वो जल्द ही जेल से बाहर आ गए। ज़मानत देते दौरान सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश सरकार को फटकार भी लगाई, कहा, “गिरफ्तारी की शक्ति का संयम से पालन किया जाना चाहिए।” ज्ञात हो कि जुबैर पिछले महीने से लगातार जेल में बंद थें। उनका प्रतिनिधित्व एडवोकेट वृंदा ग्रोवर ने एडवोकेट सौतिक बनर्जी के साथ मिलकर किया था।
मोहम्मद जुबैर तिहाड़ जेल से निकले के बाद उनके कनूनी टीम के साथ घिरे हुए नज़र आएं। उन्होंने गाड़ी में बैठते दौरान दो उंगली से जीत का संकेत भी दिखाया और अपनी खुशी को ज़ाहिर किया। हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने शाम 6 बजे तक ही उनकी रिहाई किए जाने का आदेश दिया था, लेकिन कागजी कार्रवाई और अन्य औपचारिकताएं पूरी होते-होते रात के 9 बज गए, जब वो जेल से बाहर निकले। उनके खिलाफ दर्ज सभी सात मामलों में उन्हें जमानत मिल चुकी है।
सुप्रीम कोर्ट ने ज़मानत देते हुए कहा, “यह कानून का एक निर्धारित सिद्धांत है कि गिरफ्तार करने की शक्ति का इस्तेमाल काफी संयम से किया जाना चाहिए। वर्तमान मामले में उसे लगातार हिरासत में रखने और विभिन्न अदालतों में अंतहीन कार्यवाही के अधीन करने का कोई औचित्य नहीं है।”
अदालत ने मोहम्मद जुबैर के खिलाफ यूपी में विशेष जांच को भी भंग कर दिया और यूपी में उनके ऊपर दर्ज सभी मामलों को दिल्ली स्थानांतरित कर दिया।
इधर उत्तर प्रदेश सरकार ने अपनी दलील में शीर्ष अदालत को बताया कि जुबैर को “जहरीले ट्वीट्स के लिए 2 करोड़ रुपये मिले हैं। और जुबैर सांप्रदायिक विभाजन पैदा करने के लिए स्पीचों, बहस आदि का फायदा उठा रहे हैं। वह पत्रकार नहीं है, वह एक फैक्ट चेकर हैं, वह जहरीले ट्वीट करते हैं। उन्हें ट्वीट के लिए भुगतान किया जा रहा है और उन्होंने इसे स्वीकार कर लिया है।”
जिसपर जुबैर के वकील ग्रोवर ने तर्क दिया कि एक भी ट्वीट में अनुचित भाषा, दुर्भावना या नफरत को बढ़ावा नहीं दिया गया है। “कोई व्यक्ति जो फेक न्यूज़ का पर्दा फाश कर रहा है, उसे सरकार और पुलिस द्वारा सताया नहीं जा सकता है। कृपया हमें इन ज्यादतियों से बचाएं,” ग्रोवर ने कहा।
इधर न्यायाधीशों ने उत्तर प्रदेश सरकार के अनुरोध को खारिज कर दिया कि मोहम्मद जुबैर को “ट्वीट करने से रोका जाए”। कहा गया कि
“यह एक वकील को आगे वकालत न करने के लिए कहने जैसा है। आप एक पत्रकार को कैसे बता सकते हैं कि वह लिख नहीं सकता? अगर वह कुछ ऐसा करता है जिससे कानून का उल्लंघन हो रहा हो तो वह कानून के प्रति जवाबदेह है।” जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ ने कहा। “लेकिन हम एक नागरिक के खिलाफ अग्रिम कार्रवाई कैसे कर सकते हैं जब वह अपनी आवाज उठा रहा है? प्रत्येक नागरिक सार्वजनिक या निजी तौर पर जो करता है उसके लिए जवाबदेह है। हम ऐसा कोई आदेश नहीं देंगे”
बेंच ने आगे बताया, “हमारा विचार है कि … याचिकाकर्ता के खिलाफ दर्ज सभी प्राथमिकी, जिसमें ऊपर उल्लिखित छह प्राथमिकी शामिल हैं, को दिल्ली पुलिस द्वारा जांच के लिए स्थानांतरित किया जाना चाहिए।” दलीलों के बाद, सुप्रीम कोर्ट ने जेल अधिकारियों को यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया कि जुबैर को बुधवार शाम 6 बजे से पहले रिहा कर दिया जाए, बशर्ते कि जमानत बांड प्रस्तुत किया जाए।
हालांकि कागजी कार्रवाई और अन्य औपचारिकताएं पूरी होते-होते, जुबैर को जेल से बाहर आने में रात के 9 बज गए थें। मोहम्मद जुबैर को 27 जून को दिल्ली पुलिस ने गिरफ्तार किया था। उसके खिलाफ उत्तर प्रदेश में सात और एफआईआर दर्ज की गईं थी – हाथरस में दो और सीतापुर, लखीमपुर खीरी, मुजफ्फरनगर, गाजियाबाद और चंदौली पुलिस स्टेशन में एक-एक समान आरोपों पर।