अदालत में जाकर लड़ाई लडेंगे मुस्लिम संगठन ,बेगुनाहों की रिहाई की कवायद में जुटे

जिब्रानउद्दीन।Twocircles.net

बीते कुछ दिनों से देशभर में मुसलमानों के ऊपर हुए अत्याचार के खिलाफ कई मुस्लिम संगठनों ने अपनी आवाज़ें बुलंद की हैं और इसके लिए अदालती लड़ाई लड़ने का फैसला किया है। बता दें कि 10 जून को देश में पैगम्बर मोहम्मद के ऊपर निलंबित भाजपा प्रवक्ता नूपुर शर्मा द्वारा किए गए विवादास्पद टिप्पणी को लेकर विरोध प्रदर्शन निकाला गया था, जो बाद में कथित रूप से हिंसात्मक हो गई। इसके बाद से सैकड़ों मुसलमानों को अबतक संबंधित मामलों में गिरफ्तार किया जा चुका है। साथ ही, कईयों के घरों को भी गिराया जा चुका है।


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जिसके बाद कुछ प्रमुख मुस्लिम संगठनों, जैसे, एआईएमपीएलबी, जमीयत ए उलेमा हिंद और मदरसा दारुल उलूम गुलशने मदीना इत्यादि ने मुसलमानों के प्रति प्रशासन का पक्षपाती रवैया को लेकर विरोध जताया और कोर्ट का रुख किया है। संगठनों ने मुसलमानों से धैर्य के साथ काम लेने की भी अपील की है। उन्होंने एकतरफा पुलिसिया कार्यवाही के ऊपर उच्च स्तर पर ज्ञापन सौंपा है।

पैगंबर साहब पर टिप्पणियों को लेकर देशव्यापी विरोध प्रदर्शनों में पिछले सप्ताह दो प्रदर्शनकारी मारे गए थें और कई गंभीर रूप से घायल हुए थें। इसके अलावा, ईशनिंदा में किए गए टिप्पणी के खिलाफ, देश के अलावा, दूसरे मुस्लिम देशों में भी व्यापक आक्रोश पैदा हुआ था।

ऑल इण्डिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने सोमवार को प्रेस रिलीज जारी कर केंद्र सरकार और दूसरे राज्य सरकारों को मुस्लिम समुदाय के ऊपर उनके नाइंसाफी भरे कदमों को रोकने की मांग की। बोर्ड की तरफ से कहा गया, “जिन लोगों ने पैगंबर मोहम्मद की शान में गुस्ताखी की, उसके ऊपर कार्यवाही करने के बजाए, विरोध प्रदर्शन करने वाले लोगों के खिलाफ मामला दर्ज कर उन्हें जेल में डाला जा रहा है यह ग़लत हो रहा है”

एआईएमपीएलबी के आफ़िस सेक्रेटरी डॉक्टर मोहम्मद वक़ारूद्दीन लतीफ़ी की तरफ से इस संम्बध में प्रेस रिलीज जारी की गई है जिसमें साफ अंदाज में कहा गया है कि पैग़म्बर मोहम्मद को मुसलमान अपनी जान और यहां तक कि अपने बच्चों से भी ज़्यादा मुहब्बत करते हैं।

इसमें कहा गया है कि , “उसके बावजूद गलत टिप्पणी करने वालों के खिलाफ, विरोध प्रदर्शन कर रहे लोगों के ऊपर ही केस दर्ज किया गया है यहां तक कि प्रदर्शनकारियों पर लाठीचार्ज करने के बाद उनके घरों तक को गिराया जा रहा है” ज्ञात हो कि पैगंबर मोहम्मद के बारे में गलत टिप्पणी करने वालों पर अभी तक कोई भी कानूनी कार्यवाही नही हुई है।

इसमें, “इस्लाम जिंदाबाद” के नारे लगाने पर एक नाबालिग युवक को कथित रूप से पुलिस द्वारा गोली मार देने पर भी प्रश्न उठाए गए हैं। “जब तक कोई इंसान कोर्ट की तरफ से दोषी साबित नही हो जाता तब तक वो सिर्फ एक आरोपी होता है, उसके बावजूद उनके साथ अपराधियों की तरह बरताव करना एक तरह का अराजकतावाद है।” आगे लिखा गया है। “और जिसका अपराध लोगों के सामने है, या सबूत मौजूद है, उसे मात्र राजनीतिक दल द्वारा निलंबित किया गया, जबकि सरकारी रूप से कोई कार्यवाही नहीं हुई है।”

मुसलमानों से अपील करते हुए बोर्ड ने धैर्य से काम लेने की बात कही है। कहा गया, पैगंबर मुहम्मद के खिलाफ अभद्र भाषा के प्रति अपनी नाराजगी व्यक्त करने के लिए स्थानीय सरकारी अधिकारियों को ज्ञापन प्रस्तुत करें, साथ ही पुलिस की बर्बरता के साक्ष्य एकत्र करने की बात कही गई, जिसे प्राथमिकी दर्ज करने के लिए सामाजिक संगठन के साथ साझा किया जाए।

जमीयत उलमा-ए-हिंद ने भी संबंधित मामले में मुसलमानों के घरों के विध्वंस किए जाने पर उत्तर प्रदेश राज्य को निर्देश दिए जाने की मांग करते हुए सर्वोच्च न्यायालय का दरवाज़ा खटखटाया है, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि राज्य में उचित प्रक्रिया का पालन किए बिना कोई और विध्वंस नहीं किया जाए।

जमीयत उलेमा ए हिंद के तरफ से दो अंतरिम याचिका दायर की गई है। आवेदक ने उत्तर प्रदेश राज्य द्वारा अधिनियमित रूल ऑफ लॉ और नगरपालिका कानूनों के उल्लंघन में कथित रूप से ध्वस्त किए गए घरों के लिए जिम्मेदार अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई करने की मांग की है।

जमीयत उलेमा ए हिंद ने पिछले कुछ दिनों में कानपुर, प्रयागराज और सहारनपुर शहरों में मुसलमानों की संपत्ति को पहुंचे नुकसान और तोड़े गए घरों की बातों का भी ज़िक्र किया है। साथ ही दंगो में मुसलमानों को एकतरफा गिरफ्तार किए जाने की भी बात कही है।

21 अप्रैल को उच्च न्यायालय द्वारा उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, गुजरात, उत्तराखंड और दिल्ली को नोटिस जारी किया गया था जिसमें उनसे बुलडोजर विध्वंस अभियान पर उनकी प्रतिक्रिया मांगी गई थी।

जमीयत के अंतरिम याचिका में उसी नोटिस का हवाला देते हुए बताया गया है कि अवैध रूप से विध्वंस की कार्यवाही की जा रही है। जिसके मदद से मुसलमानों की संपत्तियों को नुकसान पहुंचाया गया है। इस याचिका में उस कानून का उल्लेख किया गया है जिसके तहत किसी भी विध्वंस से पहले 15 दिनों का नोटिस दिया जाना चाहिए।

यूपी भवन अधिनियम 1958 की धारा 10 के तहत भी विध्वंस से पहले पार्टी को अपने विचारों को साफ करने का मौका दिया जाता है। इसके अलावा, उत्तर प्रदेश नगर नियोजन एवं विकास अधिनियम 1973 की धारा 27 के प्रावधान भी कुछ ऐसे ही हैं जिसमें किसी भी विध्वंस की कार्यवाही से पहले 15 दिन का नोटिस देना आवश्यक है। और इस प्राधिकरण के फैसले के खिलाफ सामने वाले को अपील करने का अधिकार है। हालांकि फिर भी बुलडोजर चलाए जा रहे हैं। जमीयत ने मुस्लिम युवाओं से भी अपील की है कि वे असामाजिक तत्वों से सावधान रहें और शांतिपूर्ण तरीके से ही अपनी बात रखें।

एक दूसरे मुस्लिम संगठन, मदरसा दारुल उलूम गुलशने मदीना की तरफ से भी यूपी राज्य के राज्यपाल और मुख्यमंत्री को संबंधित ज्ञापन डीएम और एसपी को सौंपा है। मौलाना मेराज अहमद और मौलाना मुख्तार अहमद के नेतृत्व में 20-25 लोगों ने नूपुर शर्मा की गिरफ्तारी और उसके खिलाफ सख्त कार्यवाई की मांग रखी है। फिलहाल इधर से भी उसके खिलाफ मुकदमा दर्ज कराकर जल्द गिरफ्तारी किए जाने की मांग की है।

इस्लाम धर्म के जानकार मौलाना फैसल हसीब ने मुस्लिम संगठनों के इन बयानों का स्वागत किया है। उन्होंने TwoCircles.Net से बात करते हुए कहा, “मुस्लिमों के साथ हो रहे देश भर में दुर्व्यवहार और अत्याचार की वजह से मुसलमान कहीं न कहीं हताश हो चुके हैं, ऐसे समय में इस तरह के बयान ने उन्हें एक ताकत सी दी है।

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