हिना आस। Twocircles.net
उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के दौरान कुछ सुखद परिणाम भी आए हैं। 2013 में दंगे की तल्खी को राजनीति के गणित ने धुंआ -धुंआ कर दिया है। 2013 में दंगा प्रभावित मुजफ्फरनगर और शामली की 9 विधानसभा सीटों में से भाजपा की 7 सीटों पर हार हुई है। 2017 में भाजपा इन सभी 9 सीटों पर विजयी हुई थी। इस बार सिर्फ उसे मुजफ्फरनगर और खतौली में जीत मिली है। यहां जीत का अंतर बहुत अधिक नही रहा है। सपा गठबंधन ने यहां शामली जनपद की तीनों सीटों पर जीत हासिल की है तो मुजफ्फरनगर की चार विधानसभा सीट जीती है। इन सात में से चार सीटों पर रालोद और 3 पर समाजवादी पार्टी को जीत मिली है।
गठबंधन को सबसे धमाकेदार जीत शामली जनपद की थानाभवन सीट पर मिली है जहां योगी आदित्यनाथ सरकार में गन्ना मंत्री सुरेश राणा चुनाव हार गए हैं। सुरेश राणा को जलालाबाद घराने के अशरफ अली खान ने 11 हजार मतों से हरा दिया है। अशरफ अली खान रालोद प्रत्याशी के तौर पर चुनाव लड़ रहे थे। सुरेश राणा की इस हार के बहुत चर्चे है। गन्ना मंत्री होने के बाद भी भुगतान न् होने से किसान उनसे बहुत नाराज थे। अशरफ अली खान को एक लाख 3 हजार मत मिले हैं।
इसी जनपद की कैराना सीट पर जेल में बंद सपा प्रत्याशी नाहिद हसन ने दिवंगत हुकुम सिंह की पुत्री मृगांका सिंह को 20 हजार से अधिक मतों से हराया है। नाहिद हसन की बहन इक़रा हसन अपने भाई की गैर मौजूदगी में चुनाव को लीड कर रही थी। इसी विधानसभा पर गृह मंत्री अमित शाह घर -घर जाकर प्रचार कर रहे थे और पलायन के मुद्दे को हवा देकर आए थे। नाहिद हसन की बड़ी जीत इस क्षेत्र में एक बड़ी कहानी कहती है। नाहिद हसन समाजवादी पार्टी के प्रत्याशी थे। नाहिद हसन को रिकॉर्ड 1 लाख 30 हजार वोट मिली है।
शामली शहर की सीट भी गठबंधन के खाते में चली गई है। इस सीट पर रालोद के प्रसन्न चौधरी ने जीत हासिल की है। दंगे में यह जिला सबसे पर प्रभावित रहा था। प्रसन्न चौधरी ने 7 हजार के अंतर से भाजपा के तेजेन्द्र निर्वाल को हराया है। तेजेन्द्र निर्वाल 2017 में यहां से चुनाव जीते थे। शामली शहर में मुस्लिम वोटों की संख्या कम है इसलिए यह जीत महत्वपूर्ण है।
मुजफ्फरनगर की बुढ़ाना सीट पर गठबंधन की जीत बड़ा संदेश लेकर आई है। इसी विधानसभा सीट में भाजपा के केंद्रीय मंत्री संजीव बालियान और किसान नेता राकेश टिकैत का घर भी है। यहां से रालोद के राजपाल बालियान चुनाव जीत गए हैं। राजपाल बालियान को दिवंगत महेंद्र सिंह टिकैत का करीबी समझा जाता है। उन्होंने भाजपा के उमेश मलिक को हराया है। 2013 के दंगे में बुढ़ाना विधानसभा सबसे ज्यादा हिंसा प्रभावित विधानसभा थी। इस सीट पर मुस्लिम और जाट वोटों की संख्या सर्वाधिक है। सबसे ज्यादा नुकसान भी इसी विधानसभा में हुआ था। जाट और मुसलमानों का यहां एक प्लेटफॉर्म पर आना बड़ी बात थी। राजपाल बालियान को एक लाख 23 हजार वोट मिली है। वो 28 हजार मतों से जीते है जो इस जनपद में सबसे ज्यादा है।
इसके अलावा चरथावल विधानसभा पर समाजवादी पार्टी के पंकज मलिक चुनाव जीत गए हैं, उन्होंने भाजपा की सपना कश्यप को हराया है। पंकज मलिक को भी एक लाख से ज्यादा मत पड़े हैं। पुरकाज़ी विधानसभा से सपा गठबंधन के अनिल कुमार ने भाजपा के प्रमोद ऊंटवाल को 6 हजार मतों से हराया है। मीरापुर विधानसभा से रालोद के चंदन चौहान ने भाजपा के प्रशांत चौधरी को मात दी है। उन्होंने 27 हजार मतों से भाजपा के प्रत्याशी को हराया। खास बात यह है कि जीतने वाले सभी प्रत्याशियों को 40 फ़ीसद से ज्यादा मत मिले हैं जिसे जाट और मुस्लिम मिलकर पूरा करते हैं।
दंगे की इस जमीन पर जाट मुस्लिम एकता की इस फसल की कामयाबी पर बुढ़ाना के दिलदार अहमद कहते हैं कि इस कामयाबी को एकतरफ़ जहां किसान एकता कह सकते हैं तो इसे भाजपा की नीतियों का विरोध भी कहा जा सकता है। जब एक जैसी नाराजग़ी वाले लोग एकजुट हुए तो यह परिणाम आया है। हालांकि दूसरी जगहों पर इसका रिएक्शन भी हुआ और साम्प्रदायिक धुर्वीकरण हुआ। मगर जिस तरह से ठोकर लगने के बाद हमें सुध आ गई वैसे ही समय रहते सभी को आ जाएगी।
मीरापुर विधानसभा के मोरना गांव के मनोज राठी भी इसी तरह की बात कहते हैं वो बताते हैं कि हम मुजफ्फरनगर के निवासियों से ज्यादा दंगे का दर्द का अहसास किसी को नही है। जब हम दंगे का दंश को भुलाकर साथ आ सकते हैं तो इस बात को सांप्रदायिकता की राजनीति के बहकावे में वोट करने वाले सभी समाज को समझना चाहिये। हमें खुशी है कि हम धुर्वीकरण की अंधी दौड़ में नही बहे।