क्या सचमुच एआईएमआईएम की वज़ह से गोपालगंज जीत गई बीजेपी !

विशेष संवाददाता। Twocircles.net


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बिहार में हुए उपचुनाव के नतीजों में गोपालगंज के नतीजे बहुत अधिक चर्चा में है। यहां राजद चुनाव हार गई है, राजद के प्रत्याशी की चुनाव में हार और बीजेपी की जीत का सेहरा कुछ लोग एआईएमआईएम और बसपा के सर बांध रहे हैं। यहां एआईएमआईएम और बसपा को कुल मिलाकर 20 हजार वोट मिले हैं जबकि बीजेपी प्रत्याशी लगभग 2 हजार वोटों से चुनाव जीत गई है।

इस उपचुनाव में बिहार की दो विधानसभा सीटों पर हुए उपचुनाव आए है, दूसरी सीट मोकामा की है जहां राजद को जीत मिली है। बता दें कि गोपालगंज सीट बीजेपी ने बरकरार रखी तो वहीं मोकामा सीट पर महागठबंधन के राजद प्रत्याशी ने जीत दर्ज की है । पिछले चुनावों के आंकड़े कहते हैं कि जब भी नीतीश और लालू साथ आए तो बिहार में ताकत बनें हैं। उपचुनाव से पहले एक बार फिर दोनों साथ आए और साथ उपचुनाव लड़ा , लेकिन उपचुनाव के नतीजे उस ताकत को नहीं दर्शाते हैं जो ताकत दिखनी चाहिए। एक सीट पर राजद भले ही जीती हो और एक सीट पर दो हज़ार के मामूली अंतर से हारी हो लेकिन यह नतीजे आगे आने वाले चुनावों के लिए अच्छा संदेश नहीं है।

गोपालगंज में महागठबंधन के प्रत्याशी मोहन गुप्ता और बीजेपी प्रत्याशी कुसुम देवी के बीच मुख्य लड़ाई थी। बीजेपी ने राजद को लगभग दो हज़ार वोटों के अंतर से हराया। दो हज़ार का अंतर मामूली सा दिखता है लेकिन अगर आंकड़ों पर जाएंगे तो दो हज़ार वोटों से हार का संदेश अच्छा नहीं है।

2020 में जदयू एनडीए के साथ गठबंधन में थी लेकिन इस उपचुनाव में जदयू राजद कांग्रेस समेत कई दलों का महागठबंधन था और सामने अकेली बीजेपी। गोपालगंज मे मुस्लिम यादव फैक्टर हैं, मुस्लिम लगभग 60 हज़ार हैं तो वहीं यादव भी लगभग 45 हज़ार हैं। एमवाई फैक्टर वाली सीट पर राजद ने वैश्य समाज से आने वाले को प्रत्याशी बनाया। 2020 चुनाव में महागठबंधन में कांग्रेस को यह सीट मिली थी, कांग्रेस ने एमवाई फैक्टर के चलते मुस्लिम प्रत्याशी उतारा था लेकिन हार का सामान करना पड़ा था।

2020 में एमवाई फैक्टर वालीं सीट पर मुस्लिम प्रत्याशी का हारने का मतलब एमवाई फैक्टर में फूट थी। गोपालगंज सीट राजद प्रमुख लालू यादव के साले साधु यादव की भी हैं। वो यहां से चुनाव लड़ते रहे हैं। 2020 में वो यहां से बसपा से लड़ें और दूसरे नंबर पर रहे। बिहार की राजनीति के जानकार ग़ुलाम रज़ा बताते हैं कि 2020 चुनाव में साधु यादव को लगभग 25 हज़ार यादव ने वोट किया था। महागठबंधन के कांग्रेस प्रत्याशी मुस्लिम थे इसलिए राजद का कोर वोट अपने जाति के प्रत्याशी के साथ चला गया और मुस्लिम यादव फैक्टर फेल हो गया।

उपचुनाव में भाजपा, राजद के अलावा साधु यादव फिर बसपा से मैदान में थे, इसके अलावा इस बार असदुद्दीन ओवैसी ने भी वहां अपना प्रत्याशी उतारकर मुस्लिम मतदाताओं को खींचने की कोशिश की। आरजेडी के प्रत्याशी को 68,259 वोट मिले तो वहीं बीजेपी उम्मीदवार को 70,053 वोट मिले।‌ एआईएमआईएम प्रत्याशी को लगभग 12 हज़ार वोट मिले वहीं बसपा प्रत्याशी साधु यादव की पत्नी को लगभग आठ हज़ार वोट मिले।

गोपालगंज सीट पर हमेशा राजद ने मुस्लिम कैंडिडेट दिया लेकिन पहली बार किसी किसी गैर मुस्लिम कैंडिडेट को मैदान में उतारा। राजद कैंडिडेट वैश्य समाज से थे और उस सीट पर लगभग 35 वैश्य जाति का वोट हैं। तेजस्वी यादव बीजेपी के कोर वोट बैंक वैश्य की सेंधमारी के चक्कर में थे, लेकिन उनकी यह चाल उन पर ही भारी पड़ गई। वैश्य जाति का अधिकतर वोट बीजेपी को गया।

बिहार की सियासत के जानकारी ग़ुलाम रज़ा बताते हैं कि इस बार मुस्लिम समाज का वोट राजद और एआईएमआईएम में बंटा हैं, वोटों का ज़्यादा झुकाव एआईएमआईएम की तरफ़ रहा। ग़ुलाम बताते हैं कि राजद की हार के लिए एआईएमआईएम नहीं है बल्कि यहां के मुस्लिम मतदाताओं डा शहाबुद्दीन की वजह से महागठबंधन से पहले ही नाराज थे, इसके बाद किसी गैर मुस्लिम को टिकट देने का निर्णय मुस्लिम वोटों का बड़ी संख्या में दूसरे दल में जाना फिर स्वाभाविक था।

बिहार की राजनीति को बारीकी से समझने वाले हेरिटेज टाइम्स के संस्थापक उमर अशरफ कहते हैं कि उपचुनाव में महागठबंधन को मुस्लिम वोट पूरी तरह से न मिलने की बड़ी वजह यह है कि शहाबुद्दीन के समर्थकों की आरजेडी के आलाकमान से नाराज़गी थी। उमर बताते हैं कि एआईएमआईएम प्रत्याशी अब्दुल सलाम की पकड़ जमीनी स्तर पर हैं , वो पहले मुखिया भी रह चुके हैं और उनका क्षेत्र में जनाधार भी है, एआईएमआईएम को इसी बात का फायदा मिला। उमर अशरफ बताते हैं कि आरजेडी की तरफ से पहले यहां मुस्लिम उम्मीदवार होता था लेकिन इस बार ऐसे इंसान को टिकट दिया गया जिस पर आरएसएस के कैडर से होने का इल्ज़ाम हैं।

जिस मोकामा सीट को 2020 विधानसभा चुनाव में राजद ने अकेले दम पर 35 हज़ार वोटों के अंतर से चुनाव जीता था , अब नीतीश कुमार के साथ आने के बाद भी उस सीट पर जीत का अंतर 35 हज़ार से लुढ़क कर 16 हज़ार पर आ गया। स्थिति साफ़ हैं कि नीतीश के साथ आने के बाद राजद के वोटों में कमी आई है। मोकामा सीट पर महागठबंधन की उम्मीदवार नीलम देवी को 79,744 वोट मिले जबकि बीजेपी की सोनम देवी को 63,003 वोट मिले।

कहीं न कहीं मोकामा उपचुनाव में बीजेपी की हार में भी जीत छुपी हुई है।‌ 1995 के बाद मोकामा में बीजेपी के वोटों का आंकड़ा 60 हज़ार के पार पहुंचा हैं वरना बीजेपी यहां 40-45 हज़ार तक सीमित रहीं हैं। तेजस्वी और नीतीश के साथ आने के बाद हुए मोकामा उपचुनाव में हार के बाद भी बीजेपी ख़ुश हैं।‌

ग़ुलाम रज़ा कहते हैं कि मोकामा में अनंत सिंह की जीत राजद के लिए कोई बड़ी बात नहीं है, लेकिन वहां जीत का अंतर कम हुआ है।‌ अनंत सिंह मोकामा से किसी भी दल के समर्थन से या निर्दलीय जीतते रहें हैं।‌ इस पर उमर अशरफ बताते हैं कि पहली बात तो मोकामा में बीजेपी ने मेहनत भी बहुत की थी, नेताओं की पूरी फ़ौज उतार दी थी तो जाहिर है मेहनत का फल दिखेगा ही , दूसरी बात उपचुनाव में वोटिंग कम होना भी एक कारण हैं आरजेडी का वोट मार्जिन कम होने का।‌ अब देखना यह होगा कि क्या तेजस्वी और नीतीश की जोड़ी आगामी 2024 के लोकसभा और 2025 के विधानसभा चुनाव में क्या कमाल करती है और दोनों को एक दूसरे का साथ कितना फायदेमंद रहता है।‌

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