स्टाफ रिपोर्टर। Twocircles.net
उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार ने मदरसों में शिक्षा व्यवस्था को बेहतर बनाने के लिए और आधुनिक बनाने के लिए एक क़दम उठाया है। सरकार ने प्रदेश के सभी गैर मान्यता प्राप्त मदरसों का सर्वे कराने के निर्देश दिए हैं। मदरसों के सर्वे को लेकर मुस्लिम संगठनों में विरोधभास भी हैं। मुस्लिम संगठनों का कहना है कि सर्वे के आड़ में सरकार मदरसों का उत्पीड़न करना चाहतीं हैं। असम में मदरसों के प्रति वहां की सरकार का रवैया देखकर मुस्लिम समुदाय के लोगों के मन में डर है।
ऐसे होगा मदरसों में सर्वे
उत्तर प्रदेश सरकार ने गैर मान्यता प्राप्त मदरसों का सर्वे कराने के निर्देश दिए हैं। सरकार के आदेश के अनुसार सर्वे 5 अक्टूबर तक पूरा होना है। यह सर्वे एसडीएम, बेसिक शिक्षा अधिकारी और जिला-स्तरीय अल्पसंख्यक मामलों के अधिकारी की टीमों द्वारा किया जाएगा। टीमें अपनी सर्वे रिपोर्ट एडीएम को सौंपेंगी, जो बाद में डीएम को सौंपी जाएगी। निर्देश में कहा गया है कि जिलाधिकारी को 25 अक्टूबर तक सर्वे रिपोर्ट सरकार को देनी होगी।
यूपी सरकार के अनुसार सर्वेक्षण में मदरसे का नाम, उसका संचालन करने वाली संस्था का नाम, मदरसा निजी या किराए के भवन में चल रहा है इसकी जानकारी, मदरसे में पढ़ रहे छात्र-छात्राओं की संख्या, पेयजल, फर्नीचर, विद्युत आपूर्ति तथा शौचालय की व्यवस्था, शिक्षकों की संख्या, मदरसे में लागू पाठ्यक्रम, मदरसे की आय का स्रोत और किसी गैर सरकारी संस्था से मदरसे की संबद्धता से संबंधित सूचनाएं इकट्ठा की जाएंगी। वहां के टीचर की स्थिति क्या है। उनको भी हक मिल रहा है या नहीं। वहां का इंफ्रास्ट्रक्चर कैसा है।
मुस्लिम संगठन क्यों कर रहे हैं सर्वे का विरोध
उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार के गैर मान्यता प्राप्त मदरसों के सर्वे कराने के फैसले का विरोध शुरू हो गया हैं। बीते मंगलवार को जमीयत उलेमा-ए-हिंद ने दिल्ली में यूपी के करीब 200 से अधिक मदरसों के संचालकों के साथ बैठक की। बैठक में फैसला लिया गया कि मदरसों के सर्वे के संबंध में जमीयत का एक प्रतिनिधि मण्डल प्रदेश सरकार से मिलेगा और सरकार के समक्ष अपनी बात रखेगा। इसके अलावा इस मामले में आगे की रणनीति के लिए जमीयत ने एक कमेटी का भी गठन किया हैं।
जमीयत की बैठक में मौलाना महमूद मदनी ने कहा कि, सरकार के इस का विरोध करेंगे, लेकिन सरकार से गुजारिश है कि वह हमसे बात करे क्योंकि मदरसे देश की संपत्ति हैं और देश के विकास से लेकर हर संघर्ष में मदरसों का योगदान रहा है। उन्होंने कहा कि असम की तरह मदरसों को बुलडोजर से तोड़ा ना जाए। मदरसों को लेकर ऐसी छवि गढ़ी जा रही है कि जैसे यहां पर आतंकी गतिविधियों को अंजाम दिया जा रहा है। यह गलत है। उन्होंने कहा कि इस संबंध में उत्तर प्रदेश सरकार से बात करेंगे। जरूरी हुआ तो कोर्ट का दरवाजा भी खटखटाएंगे सर्वे मदरसों पर बुलडोजर चलाने के लिए किया जा रहा है। सरकार की मंशा ख़राब है और यह जान-बूझकर मुसलमानों को बुरा नाम देना चाहती है।
मौलाना महमूद मदनी ने कहा कि काम चाहे जितना सही हो अगर उसे गलत तरीके से किया जाए तो ये मुनासिब नहीं है। हम तालीम से महरूम रहने वाले बच्चों का हाथ पकड़ते हैं और शिक्षित करते हैं। समुदायों में भाईचारा के लिए मदरसों ने जो उदाहरण पेश किया है। ऐसा उदाहरण देखने को नहीं मिलता। उन्होंने कहा कि मदरसों को गलत निगाह से देखा जा रहा है। मदरसे का काम दूरी को खत्म करने का है। हम अपनी भूमिका निभा रहे हैं, हम देश चलाने वालों से अपील करते हैं कि मदरसों को लेकर गलतफहमी ना पालें।
इस बैठक में तीन बिंदुओं पर सहमति बनी हैं। पहला यह कि सर्वे से पहले सरकार के साथ जमीयत बैठक की जाएगी, दूसरा यह कि गैर मान्यता प्राप्त मदरसों की देखरेख के लिए एक कमेटी का भी गठन किया गया हैं और तीसरा यह कि आम जनता को समझाया जाएगा कि मदरसे देश की संपत्ति है न कि कोई बोझ, मदरसों का किरदार देश की आज़ादी से लेकर आज तक अहम है।
जमीयत उलेमा-ए-हिंद ने यूपी में मदरसों में सर्वे को लेकर देवबंद में 24 सितंबर को यूपी के सभी मदरसा संचालकों का एक सम्मेलन बुलाया है जिसमें सरकार के इस निर्णय को लेकर आगे की रणनीति तय की जाएंगी।
आल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने भी योगी सरकार के इस फैसले पर आपत्ति जताई है। ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने मदरसों की सर्वे के फैसले को असंवैधानिक करार दिया है। बोर्ड के महासचिव मौलाना खालिद सैफुल्लाह रहमानी ने कहा है कि यह मुसलमानों के प्रति सरकार का पक्षपातपूर्ण रवैया है।आरएसएस की विचारधारा की प्रतिनिधि पार्टी की सरकार कई राज्यों में है जो खुले तौर पर मुसलमानों के खिलाफ नकारात्मक विचार रखती है। पीएम मोदी संविधान की बात करते हैं लेकिन कई राज्य उनकी पार्टी की सरकार बिल्कुल विपरीत व्यवहार करती है।
मौलाना खालिद सैफुल्लाह रहमानी ने कहा कि यदि मदरसों को बंद करना और इमारतों को तोड़ना ही क़ानून के मामूली उल्लंघन के लिए एकमात्र सज़ा है तो अन्य धार्मिक संस्थानों पर यह उपाय क्यों नहीं अपनाया जाता, ऐसा प्रतीत होता है कि सरकार संविधान को ताक पर रखकर मनमानी कार्रवाई कर रही है।
मजलिसे उलेमा-ए-हिंद के महासचिव मौलाना कल्बे जवाद ने सरकार से मदरसों के सर्वे के निर्णय पर पुनर्विचार करने की मांग की। मौलाना कल्बे जवाद ने कहा है कि सरकार के इस फैसले से अल्पसंख्यकों में सरकार के प्रति असंतोष पैदा होगा। अगर गैर मान्यता प्राप्त मदरसों का सर्वे कराना है तो केवल अल्पसंख्यक मदरसों के सर्वे की बात ना की जाए। हिंदुस्तान में मौजूद सभी धर्मों और समुदायों के शिक्षण संस्थानों का सर्वे कराया जाए ताकि असमानता का मसला पैदा न हो। इससे अल्पसंख्यकों के शिक्षण संस्थानों की वर्तमान स्थिति का भी पता चलेगा और यह भी स्पष्ट होगा कि मुसलमानों के मदरसे अन्य वर्गों के शिक्षण संस्थानों की तुलना में कितने पिछड़े हैं।
सर्वे पर विपक्षी दलों का मत
एआईएमआईएम चीफ और हैदराबाद सांसद असदुद्दीन ओवैसी ने यूपी सरकार पर हमला बोलते हुए कहा कि ऐसा ही है तो फिर आदेश जारी करना चाहिए कि अब कोई मुसलमान नहीं रहेगा। योगी सरकार का यह फैसला मनमाना है और मुसलमानों को शक की नजर से देखने की कोशिश है। उन्होंने सरकार के इस फैसले को छोटा एनआरसी जैसा फैसला बताया और कहा कि सरकार जिन मदरसों को कोई मदद नहीं देती है, उन मदरसों की जांच कराने का हक उसके पास नहीं है।
असदुद्दीन ओवैसी ने कहा है कि निजी मदरसों से सरकार का कोई लेना-देना नहीं है, आखिर उन मदरसों का सर्वे क्यों कराया जा रहा है। सरकार मदरसा बोर्ड से मान्यता प्राप्त संस्थानों को ही मदद देती है और उनकी ही जांच करा सकती है। उन्होंने कहा कि संविधान के आर्टिकल 30 के तहत अल्पसंख्यकों को अपने संस्थान चलाने का हक है। यह सर्वे नहीं है बल्कि छोटा एनआरसी है।
सरकार के फैसले पर उत्तर प्रदेश कांग्रेस की प्रवक्ता रफत फातिमा कहती हैं कि यूपी में सरकारी मदरसे जो अभी चल रहे हैं सरकार उनको ही अनुदान राशि नहीं दे पा रही है तो ऐसे में सेल्फ फंडेड मदरसों में सर्वे का क्या तुक बनता है। काफ़ी सालों से मदरसों के शिक्षकों का मानदेय नहीं मिला है, सरकार को चाहिए कि पहले शिक्षको को पूरा मानदेय दे फिर सेल्फ फंडेड मदरसों पर बात करिए। रफत कहती हैं कि जनता को असल मुद्दों से भटकाने के लिए और समाज में फूट डालो और राज करो नीति के तहत बीजेपी मंदिर, मस्जिद, मदरसों को मुद्दा बनाकर लाती हैं। वो कहती हैं कि आज मंहगाई बढ़ रही है, लोगों के पास रोजगार नहीं हैं, एनसीआरबी की रिपोर्ट के मुताबिक मजदूरों और किसानों के आत्महत्या करने के मामले बढ़े हैं लेकिन बीजेपी इन सब असल मुद्दों को छोड़कर मंदिर, मस्जिद और मदरसों में लोगों को उलझाए हुए हैं।
समाजवादी पार्टी के प्रवक्ता अमीक जामई कहते हैं कि योगी सरकार जब मदरसे के टीचर्स को सैलरी नहीं दे सकतीं तो चंदे पर यतीम बच्चों को पढ़ा रहें मदरसों से उन्हें क्या समस्या है। वो कहते हैं कि सरकार को मदरसे में इस बात पर सर्वे करना चाहिए कि 2017 के बाद कितने नये मदरसा शिक्षकों की भर्ती हुईं, कितने नये मदरसों को अनुदान दिया गया। असल मुद्दों से ध्यान हटाने के लिए असम से लेकर उत्तर प्रदेश में मदरसों के खिलाफ एक ड्राइव चलाईं जा रही है।
सर्वे कराने के पीछे क्या हैं यूपी सरकार का मत
उत्तर प्रदेश सरकार में एकमात्र मुस्लिम मंत्री दानिश आज़ाद अंसारी का कहना है कि मदरसों में मॉडर्न एजुकेशन के लिए यह सर्वे अहम है। इसके बाद मदरसों का पूरा डाटा सरकार के पास उपलब्ध होगा और इसके हिसाब से भविष्य की योजनाओं को लागू करने में आसानी होगी। मदरसों की स्थिति का सर्वे कराकर उसको आधुनिक बनाने का काम करना चाहती है। इससे मुसलमान समुदाय के बच्चों का हित होगा।
क्या कहते हैं मदरसों से जुड़े लोग
जमीयत उलेमा-ए-हिंद से जुड़े मौलाना इस्हाक़ क़ासमी कहते हैं कि जमीयत उलेमा-ए-हिंद देश का एक बड़ा मुस्लिम संगठन हैं। अगर जमीयत ने इस मुद्दे को उठाया हैं तो जरूर इस सर्वे पर कुछ न कुछ अंदेशा होगा और इस मसले पर चर्चा करना भी जरूरी है। वे कहते हैं कि प्रदेश में केवल 500 मदरसों को सरकार से मदद मिलती है बाकि सब चंदे के सहारे हैं, ऐसे में सरकार को आगे आकर उनकी मदद करना चाहिए न कि सवाल।
मौलाना इस्हाक़ क़ासमी कहते हैं कि तमाम सरकारें आई और गईं लेकिन किसी का मदरसों के साथ रवैया अच्छा नहीं रहा, ऐसे में कैसे कहा जा सकता है कि सरकार का इरादा सही है। पहले सरकार को यह बताना चाहिए कि मदरसों के हालात को बेहतर करने के लिए सरकार ने क्या किया है। मदरसे बिना सरकारी मदद के शिक्षा बांट रहें, सरकार को आगे आकर सहयोग देना चाहिए।
यूपी के एक मदरसे के शिक्षक मोहम्मद तलहा बताते हैं कि जिन मदरसों को सरकार द्वारा फंड नहीं दिया जाता है, वे समुदाय द्वारा जुटाए गए फंड पर निर्भर होते हैं। शिक्षा, बोर्डिग और भोजन नि:शुल्क देते हैं, ताकि गरीब छात्र पढ़ाई कर सके। अगर सरकार की नियत ठीक है तो उसका स्वागत, लेकिन मदरसे मदद से पहले ही कई परेशानियों से जूझ रहे हैं पहले सरकार को उन परेशानियों के हल पर बात करनी चाहिए।
वहीं मुस्लिम समुदाय का एक बड़ा हिस्सा ऐसा भी हैं जो सरकार के इस कदम का स्वागत कर रहा है। कुछ लोगों का मानना है कि यदि सरकार मदरसों में कोई सुधार करना चाहती है, तो इसका स्वागत किया जाना चाहिए। लोगों का तर्क है कि ग़ैर मान्यता प्राप्त मदरसे चंदे से चलते हैं और चंदे की कोई मामूली रकम नहीं होती यह लाखों करोड़ों में होते हैं, इसमें बड़ा सवाल यह है कि चंदे के इन पैसों का कितना सही इस्तेमाल हुआ हैं या नहीं।
मदरसों को सबसे ज्यादा डोनेशन जकात के जरिए मिलती है। जकात का मतलब होता है इस्लाम में आमदनी से पूरे साल में जो बचत होती है उसका 2.5 फीसदी हिस्सा किसी जरूरतमंद को देना अनिवार्य है। इसके अलावा हर ईद के नमाज से पहले हैसियत के हिसाब से लोग फितरा भी मदरसों में दान करते हैं। इसके अलावा बक़रीद में कुर्बानी के बाद जानवरों के चमड़े को बाजार में बेचकर हुईं आमदनी का डोनेशन भी मदरसा में दिया जाता हैं।
यूपी में आंकड़ों में मदरसों की स्थिति
यूपी में इस वक्त लगभग 16 हज़ार मदरसे हैं जो सरकार के बोर्ड में रजिस्टर्ड है, लेकिन उनमें से मात्र 560 मदरसों को सरकारी अनुदान मिल रहा है। यूपी के इन मान्यता प्राप्त मदरसों में लगभग 20 लाख छात्र पंजीकृत हैं। इन मदरसों के शिक्षकों का पिछले कई वर्षों से मानदेय बकाया है। यूपी में योगी आदित्यनाथ के सत्ता संभालने के बाद से किसी नए मदरसों को अनुदान सूची में नहीं लिया गया है। इसके अलावा यूपी में लगभग 40 से 50 हज़ार निजी मदरसे भी चल रहे हैं।