सिमरा अंसारी।Twocircles.net
जामिया नगर को जामिया मिल्लिया इस्लामिया के बाद यहाँ के रेस्तरां और बाज़ारों के लिए जाना जाता है। देखा जाए तो घर से निकलते ही जामिया नगर के लोग दो तरफ़ जाते हैं। पहला किसी रेस्तरां में खाना खाने। दूसरा बाज़ार में ज़रूरत का समान खरीदने। कुछ इसी तरह जामिया नगर भी तीन हिस्सों में बटा हुआ है। पहला जामिया नगर के रिहाइशी इलाक़े, दूसरे यहाँ के बाज़ार और तीसरे यहाँ के रेस्तरां या कैफे जहाँ आप आपने प्यारों के साथ बैठकर चिल कर सकते हैं। जामिया नगर में कैफ़े की बात की जाए तो बहुत से कैफ़े हैं। लेकिन अबुल फ़ज़ल ठोकर न• 4 पर मौजूद कैफे कारवाँ इन तीनों हिस्सों से अलग जामिया नगर की एक नई पहचान बनने को तैयार है। कैफे करवां का अलग ही अंदाज़ है। यमुना का शानदार नज़ारा, खौलती चाय की महक और बेहतरीन किताबों के क़ौल के साथ यहाँ और भी बहुत कुछ है। कैफे कारवां ओखला का पहला रूफटॉप कैफे है। यह जगह किताबों से मोहब्बत करने वालों के लिए किसी जन्नत से कम नहीं है। इस कैफे में लगभग हर तरह की किताबें मौजूद हैं। आप यहाँ सुकून के साथ बैठकर अपनी मनपसंद किताब पढ़ सकते हैं। यहाँ से डूबते हुए सूरज को देखते हुए चाय की चुस्कियों से दिल नहीं भरता। जामिया नगर के लोगों के बीच यह कैफे चर्चा का विषय बना हुआ है। यह कैफे सिर्फ़ खाने पीने के लिए नहीं बल्कि पढ़ने, काम करने, बैठकर विचार विमर्श करने की जगह है। ख़ासतौर पर पत्रकारों, कलाकारों, फोटोग्राफर्स के लिए यह कैफे एक अच्छी जगह है। कैफे के इंटीरियर की बात की जाए तो कैफे के अंदर दाख़िल होते ही बाईं तरफ आपको एक शेल्फ में किताबें रखी हुई मिल जाएंगी। दो क़दम आगे बढ़कर दरवाज़ा खोलते ही पहली नज़र पीले रंग से रंगी एक दीवार पर लकड़ी के अलमारी में रखी सेकड़ों किताबों पर पड़ती है। बाईं तरफ की दीवार पर मशहूर शायर फ़ैज़ की नज़्म का शेर ‘बोल के लब आज़ाद हैं तेरे’ के फ्रेम के साथ परवीन शाकिर, अल्लामा इक़बाल, मंटो और ग़ालिब समेत बहुत से शायरों की तस्वीर लगी हुई है।
कैफे कारवां की शुरुआत जाने माने पत्रकार असद अशरफ ने की है। एक पत्रकार ने यह कैफे क्यों शुरू किया? इसके पीछे की सोच और आगे की मंज़िल के बारे में जानने के लिए हमने असद अशरफ से बात की। पढ़िये असद अशरफ से की गई ख़ास बातचीत के कुछ अंश-
पत्रकारिता छोड़ कैफे क्यों शुरू किया? ये आइडिया कहां से आया?
मैंने नौकरी छोड़ी है पत्रकारिता नहीं। पत्रकारिता कर रहा था आगे भी करता रहूंगा। आगे आज़ाद पत्रकार के रूप में काम करूंगा। इस कैफे को शुरू करने का मकसद जामिया नगर के लोगों को एक नई तालिमी जगह से जोड़ना है। इस तरह से जामिया नगर की मुख्यधारा की मीडिया के ज़रिए बनाई गई पहचान को बदला जा सकता है। मेरे ज़हन में हमेशा से इंडियन कॉफी हाउस का मॉडल रहा है, जहां लोग जाकर बैठते थे। आपस में बातें करते थे जिससे देश का लोकतांत्रिक सिस्टम मज़बूत होता था। हम इसे सिर्फ एक कैफे की तरह नहीं देखते हैं। हम इस कैफे में अलग-अलग तरह के प्रोग्राम्स करना चाहते हैं। हम चाहते हैं कि यहां लेखक आकर अपनी किताबों के बारे में बताएं। पत्रकार अपने काम के बारे बात करें। जामिया नगर के लोगों को तालिमी दुनिया से रूबरू कराएं। मैंने कैफे को भी इसी तरह से बनाया है जहां आकर लोग किताबों के बीच बैठें। किताबें पढ़ें। आपस में बात करें जिसका असर बाहर की दुनिया पर हो।
पत्रकारिता के साथ-साथ कैफे को संभालना कितना मुश्किल है?
दोनों को एक साथ संभालना आसान तो नहीं होता लेकिन अगर आपका नज़रिया साफ है तो ज़्यादा मुश्किल नहीं होती। मैं इस कैफे को सिर्फ एक खाने-पीने की जगह नहीं बनाना चाहता हूं बल्कि यहां से लोगों की सोच बदलना चाहता हूं। पत्रकारिता के ज़रिए हम लोगों तक जानकारी पहुंचाते हैं। यही काम हम इस कैफे के ज़रिए करना चाहते हैं।
कैफे के लिए जामिया नगर को ही क्यों चुना?
यह कैफे सिर्फ कारोबार के लिए शुरू नहीं किया गया है। हमने जामिया नगर को सोच समझकर चुना है क्योंकि इस इलाक़े को लेकर आम जनता की जो सोच मीडिया ने बनाई है उसे हम अपने प्रोग्रामों के ज़रिए ख़त्म करना चाहते हैं। साथ ही इस तरह की शुरुआत को सिर्फ जामिया नगर तक समेटकर नहीं रखना है बल्कि ऐसी जगहों में फैलाना चाहते हैं जहां से मुसलमानों के मोहल्लों को लेकर लोगों के नज़रिए को बदला जा सके।
कैफे में किस तरह के इवेंट्स होते हैं?
अभी तक इवेंट्स में हम लेखकों को बुलाते रहे हैं। हर हफ़्ते इतवार के दिन सुबह में ऐसे इवेंट्स करेंगे जहां लोग आकर कुछ सीख सकें। पहले भी क्रिएटिव राइटिंग, उर्दू लर्निंग, फ़ोटो जर्नलिज़म की वर्कशॉप कराते रहे हैं। आगे भी ऐसा ही कुछ करने का इरादा है।
कैफे को शुरू करने और चलाने में किस-किसका साथ मिला?
मेरी वाइफ असमा, सिर्फ साथ नहीं रहीं बल्कि इस ऑर्गनाइजेशन में पार्टनर भी हैं। साथ ही तंजील रहमान साहब शुरुआत से साथ हैं। इस सफर में मैं अकेला नहीं हूं। हम सब साथ मिलकर इस जगह को बना रहे हैं। हम सब एक ही तरह से सोचते हैं और सबका का मकसद एक ही है।
(सिमरा अंसारी टीसीएन सीड फेलोशिप प्रोग्राम से जुड़ी है)