टीपू सुल्तान को लेकर कर्नाटक में सियासी हलचल

 

 


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आकिल हुसैन। Two circles.net

टीपू सुल्तान की मौत के लगभग 220 साल बीत चुके हैं। लेकिन टीपू सुल्तान आज भी कर्नाटक की राजनीति में मुद्दा बने हुए हैं। कर्नाटक में इस साल विधानसभा चुनाव भी होने हैं ऐसे में तमाम विकास के मुद्दों को छोड़कर आखिर क्यों टीपू सुल्तान मुद्दा बनें हुए हैं। हालांकि कर्नाटक में 2019 में बीजेपी सरकार बनने के बाद से कई बार टीपू सुल्तान पर बहस छिड़ी हैं और विवाद हुए हैं। कर्नाटक में बीजेपी लगातार टीपू सुल्तान को मुद्दा बनाती रही है और एक बार फिर ठीक चुनाव से पहले बीजेपी नेताओं ने टीपू सुल्तान को मुद्दा बनाना शुरू कर दिया है।

बीते दिनों कर्नाटक में एक चुनावी सभा को संबोधित करते हुए कर्नाटक के बीजेपी अध्यक्ष नलिन कुमार कतील ने टीपू सुल्तान को लेकर एक विवादित बयान दिया था। जिसके बाद से टीपू सुल्तान को लेकर विवाद छिड़ गया है। कर्नाटक बीजेपी अध्यक्ष नलिन कुमार ने कहा था कि टीपू सुल्तान को मानने वालों को जिंदा नहीं रहना चाहिए। टीपू सुल्तान के वंशजों को खदेड़ कर जंगलों में भेज देना चाहिए। हम भगवान राम और हनुमान के भक्त हैं, टीपू सुल्तान के वंशज नहीं। हमने टीपू सुल्तान के वंशजों को वापस भेज दिया है।

बीजेपी अध्यक्ष नलिन कुमार कतील ने आगे कहा था कि कर्नाटक के लोगों को सोचना चाहिए कि वह भगवान राम और हनुमान के भक्तों को चाहते हैं या फिर टीपू के वंशजों को। मैं हनुमान की धरती से चुनौती देता हूं कि जो लोग टीपू को प्यार करते हैं, वो यहां रहने नहीं चाहिए। यहां वही लोग रहने चाहिए जो भगवान राम के भजन गाते हैं और हनुमान के समर्थक हैं।

इसके अलावा कर्नाटक के शिक्षा मंत्री सी.एन. अश्वथ नारायण ने भी एक चुनावी सभा में टीपू को लेकर विवादित बयान दिया था। शिक्षा मंत्री अश्वथ नारायण ने कांग्रेस नेता सिद्धारमैया की तुलना टीपू सुल्तान से की थी। उन्होंने कहा था कि सिद्धारमैया टीपू सुल्तान के स्थान पर आएंगे? आप वीर सावरकर चाहते हैं या टीपू सुल्तान? यह फैसला आपको खुद करना होगा। आप जानते हैं कि टीपू सुल्तान से लड़ने वाले सैनिक उरी गौड़ा और नानजे गौड़ा ने उनके साथ क्या किया था। इसी तरह सिद्धारमैया को भी खत्म कर देना चाहिए।

बीजेपी अध्यक्ष नलिन कुमार कतील की टीपू सुल्तान पर विवादित टिप्पणी पर एआईएमआईएम अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी ने पलटवार किया था। असदुद्दीन ओवैसी ने कहा कि मैं टीपू सुल्तान का नाम ले रहा हूं, देखता हूं कि आप क्या करते हैं। असदुद्दीन ओवैसी ने इस मामले में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को शामिल करते हुए कहा कि क्या कर्नाटक बीजेपी अध्यक्ष ने जो कहा है, उससे पीएम सहमत हैं? यह हिंसा, हत्या और नरसंहार का खुला आह्वान है। क्या कर्नाटक में भाजपा सरकार इसके खिलाफ कार्रवाई नहीं करेगी? यह नफरत है।

इससे पहले एक चुनावी जनसभा में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह भी टीपू सुल्तान को लेकर टिप्पणी कर चुके हैं। कर्नाटक बीजेपी अध्यक्ष ने कुछ दिनों पहले यह भी दावा करते हुए कहा था कि यह विधानसभा चुनाव‌ टीपू सुल्तान बनाम सावरकर पर लड़ा जाएगा।

कर्नाटक में इस साल विधानसभा चुनाव होने हैं और चुनाव से ठीक पहले टीपू सुल्तान का राज्य की राजनीति में नाम घसीटने पर टीपू सुल्तान के वंशजों ने आपत्ति जताई है। टीपू के 7वीं पीढ़ी के वंशज और तहरीक-ए-खुदादाद के संस्थापक शहजादा मंसूर अली ने बीजेपी पर टीपू सुल्तान का नाम राजनीतिक लाभ के लिए नाम का इस्तेमाल करने का आरोप लगाया है।

शहजादा मंसूर अली कहते हैं कि पार्टियां वोट के लिए हमारे पूर्वजों को अपमानित कर रही हैं। चाहे भाजपा हो या कांग्रेस दोनों ने ही टीपू सुल्तान के लिए कुछ नहीं किया। उन्होंने केवल राजनीतिक फायदे के लिए उनके नाम का इस्तेमाल किया है। हमने इसे रोकने के लिए पार्टियों के खिलाफ मानहानि का केस दायर करने का फैसला लिया है।

मैसूर के एक कालेज में पढ़ाने वाले शीज़ान अहमद बताते हैं कि कर्नाटक में बीजेपी के सत्ता में आने के बाद से लगातार टीपू सुल्तान यहां की राजनीति के केंद्र बिंदु में हैं। बीजेपी महज़ अपने राजनैतिक फायदे के लिए टीपू सुल्तान के नाम का मुद्दा बनातीं हैं। शीज़ान बताते हैं कि चुनाव क़रीब हैं और बीजेपी के पास कोई मुद्दा नहीं है, बीजेपी सरकार पर भ्रष्टाचार जैसे बड़े आरोप है ऐसे में इन मुद्दों को दबाने के लिए बीजेपी टीपू सुल्तान के नाम का राग अलाप रहीं हैं। शीज़ान बताते हैं कि टीपू सुल्तान को मुद्दा बनाने का सिर्फ एक मकसद हैं वो हैं हिंदू वोटरों को रिझाना।

कर्नाटक में टीपू सुल्तान का विरोध करने में बीजेपी सबसे आगे रहीं हैं। 2015 में कांग्रेस की तत्कालीन सिद्धारमैया सरकार के दौरान टीपू जयंती मनाने की शुरुआत हुईं थीं। उस वक्त भी बीजेपी समेत कई हिंदूवादी संगठनों ने विरोध किया था। 2019 में बीजेपी की येदियुरप्पा सरकार आने के बाद टीपू सुल्तान जयंती मनाने पर रोक लगा दी गई थी। इसके बाद काफी विवाद भी हुआ था। 2015 में आरएसएस के मुखपत्र पांचजन्य में भी टीपू सुल्तान की जयंती के विरोध में एक लेख छपा था, जिसमें टीपू को दक्षिण का औरंगजेब बताया गया था।

कर्नाटक की बीजेपी सरकार ने 7वीं कक्षा के सिलेबस में मौजूद टीपू सुल्तान और उनके पिता हैदर अली के चैप्टर को हटा दिया था। जिसके बाद भी काफ़ी विवाद खड़ा हुआ था और बीजेपी सरकार की आलोचना भी हुई थी। इसके अलावा जीसस क्राइस्ट और पैगंबर मोहम्मद, मुगलों के इतिहास को भी सिलेबस से हटा दिया गया था।

टीपू सुल्तान ऐसे शख्स थे जिन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ चार युद्ध लड़े थे। उनके शासनकाल में यूरोपियन हथियारों का ज़ोर रहा। टीपू सुल्तान को लोहे के केश वाले रॉकेटों की शुरुआत करने का जनक भी माना जाता है। टीपू सुल्तान के रॉकेट से अग्रेंज बुरी तरह घबरा गए और बाद में अंग्रेजों ने भी लड़ाई में टीपू सुल्तान के रॉकेट की नक़ल करते हुए रॉकेट का इस्तेमाल करना शुरू कर दिया।

अगर टीपू सुल्तान के शासनकाल पर नज़र डालें तो पता चलता है कि टीपू के शासनकाल में जबरदस्त प्रशासनिक और आर्थिक सुधार हुए थे। टीपू ने अपने शासनकाल में नए सिक्कों की शुरुआत की। इसके अलावा लोगों की मदद के लिए नई भूमि राजस्व प्रणाली भी लागू की ताकि गरीबों को मदद की जा सकें। टीपू सुल्तान ने अपने शासनकाल में रेशम की खेती की भी शुरुआत की थी, आज भी कर्नाटक में रेशम रोज़गार का जरिया बना हुआ है।

दक्षिणपंथी संगठनों की नज़र में टीपू सुल्तान 1990 तक एक देशभक्त राजा थे, इसके अलावा स्कूलों के सिलेबस में भी पढ़ाए जाते थे। लेकिन बाबरी मस्जिद विध्वंस के बाद से टीपू सुल्तान की छवि को एक क्रूर हिंदू विरोधी राजा के रूप में गड़ दिया गया। जैसे जैसे समय बदला तो टीपू को किताबों में भी से गायब कर दिया गया। 2014 की गणतंत्र दिवस परेड में टीपू सुल्तान को एक अदम्य साहस वाला महान योद्धा बताया गया था।

दक्षिणपंथी संगठन टीपू सुल्तान को पक्षपाती शासक, हजारों हिन्दुओं की हत्या करने वाला और मंदिर तोड़ने वाला शासक बताते हैं। लेकिन अगर इतिहास की किताबों पर नज़र डालें तो दक्षिणपंथी संगठन की बात कहीं नहीं टिकती है। 2005 में मोहिबुल हसन की आई किताब ‘हिस्ट्री ऑफ टीपू सुल्तान’ से पता चलता है कि टीपू के शासनकाल में कोषाध्यक्ष के अलावा कई मंत्री हिंदू थे। टीपू ने तमिलनाडु के प्रसिद्ध रंगनाथस्वामी मंदिर समेत 156 हिंदू मंदिरों में दान भी दिया था।

टीपू सुल्तान की हिंदूविरोधी छवि पर इतिहास के प्रोफेसर डॉ सुशील पांडेय कहते हैं कि हमें यह समझना होगा क‍ि टीपू राष्‍ट्रीय हीरो थे। उनका जुड़ाव अपनी जमीन से था। उनके बारे में गलत जानकारी फैलाई गई। उन्‍हें आक्रमणकारी कहना गलत है। उन्‍होंने अंग्रेजों, मराठों और हैदराबाद के निजाम की संयुक्‍त सेना के ख‍िलाफ लड़ाई लड़ी। उन्‍होंने राज्‍य में मंदिरों की सुरक्षा की। टीपू की सेना में मराठा और राजपूतों की यून‍िट थी।

अगर कर्नाटक की राजनीति में 6-7 महीने पीछे जाए तो देखा जा सकता है कि कर्नाटक में सांप्रदायिक मुद्दे हावी रहें हैं। कभी हिजाब के नाम पर तो कभी धर्मांतरण विरोधी कानून के नाम पर तो कभी हलाल मीट के नाम पर। इन मुद्दों के बाद अब टीपू सुल्तान का मुद्दा बनाया जा रहा है ताकि असल मुद्दों से ध्यान भटकाया जा सके ताकि चुनाव से पहले धुव्रीकरण किया जा सकें।

शेर ए मैसूर के नाम से मशहूर टीपू सुल्तान का जन्म 20 नवंबर 1750 को कर्नाटक के देवनाहल्ली में मैसूर के शासक हैदर अली खां के घर पर हुआ था। टीपू सुल्तान का असल नाम सुल्तान फतेह अली खान शाहाब हैं। विवादों में होने के बावजूद टीपू सुल्तान को न सिर्फ एक अच्छे शासक, बल्कि योद्धा के तौर पर भी जाना जाता है। टीपू सुल्तान ने महज़ 15 साल की उम्र में सन् 1766 में हुईं मैसूर की पहली लड़ाई में अपने पिता का साथ दिया था और अंग्रेजों को पस्त किया था। इसी लड़ाई में टीपू की हिम्मत और साहस को देखते हुए पिता हैदर अली ख़ान ने ने उन्हें शेर-ए-मैसूर का लकब दिया था।

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