सिद्धांत मोहन, TwoCircles.net,
[इस सिरीज़ की पिछली कड़ियां-पूरा सच: बनारस में संतों पर लाठीचार्ज और बनारस में बलवा, बग़ावत और कर्फ्यू –1]
वाराणसी: पिछले हिस्से में हमने घटनाक्रम से फौरी तौर पर रूबरू होने का प्रयास किया था. बनारस में हो रहे धार्मिक और प्रशासनिक हिंसक उथलपुथल के बाबत हमारी कड़ी के इस दूसरे भाग में हम मामले के अन्य पहलुओं को जानने का प्रयास करेंगे.
5 अक्टूबर की शाम को दंगा भड़कने के पहले लिए पुलिस प्रशासन की तीन गाड़ियों में आग लगा दी गयी. आग लगाने की कार्रवाई में यह साफ़ पता चल रहा था कि जो लोग मुंह पर कपड़ा बांधकर आग लगा रहे थे, उन्हें पुलिस का सहयोग प्राप्त था. और वाहनों में आग लगाने की यह कार्रवाई पूरी तरह से योजनाबद्ध थी. आम जनता द्वारा घरों-छतों से मिले वीडियो को देखकर प्रथम दृष्टया तो यह साफ़ लगता है कि इसमें न तो किसी किस्म का क्षणिक आक्रोश शामिल था न ही प्रशासन के प्रति गुस्सा. आग लगाने के मसले को केंद्र में रखना इसलिए ज़रूरी है कि इस कथित रूप से इसी कार्रवाई के जवाब में पुलिस ने भीड़ को तितर-बितर करना शुरू किया था.
जब एक फोटोजर्नलिस्ट संजय गुप्ता को पीटा जा रहा था तो मौके पर मौजूद पीएसी के जवान दलील देने लगे कि संजय गुप्ता गली में से पथराव कर रहे थे. जबकि बाद में यह सच निकलकर आया कि पीएसी के दो जवानों को पत्रकार संजय गुप्ता ने बाईक में आग लगाते हुए देख लिया था और उनकी तस्वीरें कैमरे में उतार ली थीं. संजय गुप्ता के इसी काम से नाराज़ पीएसी के जवानों ने उन्हें पीटना शुरू कर दिया और उनका कैमरा तोड़ दिया. लेकिन कैमरे में तस्वीरें सुरक्षित रह गयीं और अब यह तस्वीरें सोशल मीडिया और अन्य जगहों पर बेहद तेज़ी से वायरल हो रही हैं.
बाईक को आग लगाते पुलिस व पीएसी के जवान
बाईक को आग लगाते पुलिस व पीएसी के जवान
बनारस में धारा 144 लगाए जाने के साथ ही 105 लोगों के खिलाफ गैर-जमानती धाराओं के तहत मुक़दमा दर्ज किया गया. लेकिन अभी तक इन 105 लोगों में से सिर्फ 56 लोगों की गिरफ्तारियां हो सकी हैं. यह रोचक तथ्य है कि इन सभी गिरफ्तार लोगों में से एक भी व्यक्ति भाजपा से जुड़ा हुआ नहीं है, जबकि संतों की प्रतिकार यात्रा शुरू होने के पहले भाजपा विधायक रवीन्द्र जायसवाल, भाजपा नेता श्यामदेव राय चौधरी और भाजपा विधायक ज्योत्सना श्रीवास्तव भी संतों के साथ उपस्थित थे लेकिन इनकी गिरफ्तारी के लिए पुलिस किसी भी किस्म की छापेमारी या दबिश नहीं दे रही है. न ही पुलिस का कोई ऐसा प्रयास समझ में आ रहा है, जिससे यह स्पष्ट हो सके कि पुलिस भाजपा के नेताओं की गिरफ्तारी के लिए कार्यरत है.
वाराणसी जिले के एसएसपी आकाश कुलहरी ने बताया कि कांग्रेस के विधायक अजय राय, स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद और यात्रा संयोजक वकील रमेश उपाध्याय के खिलाफ संगीन धाराओं के तहत मुक़दमा दर्ज किया गया है. कांग्रेस के विधायक अजय राय कल शाम दिल्ली से लौटते हुए एयरपोर्ट से ही गिरफ्तार कर लिए गए. कचहरी में उनकी पेशी के बाद उन्हें जिला कारागार स्थानातरित कर दिया गया. इसके विरोध में 6 अक्टूबर की शाम कांग्रेस कार्यकर्ताओं ने पुलिस लाइन में विरोध प्रदर्शन करना शुरू किया तो उन्हें भगाने के लिए पुलिस ने पुनः लाठीचार्ज कर दिया.
अजय राय को गिरफ्तार कर ले जाती पुलिस (साभार – भास्कर)
स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद ने अपने सहयोगी वकील रमेश उपाध्याय को घायल पुलिस वालों और पत्रकारों का हाल जानने के लिए भेजा था. जिला अस्पताल में रमेश उपाध्याय ने पुलिस वालों से मुलाक़ात कर ली लेकिन जब वे घायल पत्रकारों से मिलने एक निजी अस्पताल पहुंचे तो वहाँ उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया और मंगलवार देर रात तक यह जानकारी नहीं मिल सकी कि पुलिस ने उन्हें रखा कहां है?
स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद
स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद को गिरफ्तारी को लेकर अफवाहों की मंडी गुलज़ार है. उनके मठ व निवास स्थान श्रीविद्या मठ में दिनभर गहमागहमी बनी हुई है. स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद मंगलवार को हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट जाने के लिए दिल्ली कूच करने वाले थे, लेकिन अपनी गिरफ्तारी की बात सुनकर उन्होंने जाने का कार्यक्रम रद्द कर दिया. स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद कहते हैं, ‘मुझे पता है कि यदि मैं चला जाता तो उस समय लोग और प्रशासन मुझे भगोड़ा कहते. मुझे जो भी कहें, फ़र्क नहीं पड़ता. लेकिन यदि प्रदेश प्रशासन ने मोर्चा खोल दिया है तो क्या हम पीछे हट जाएं?’ वे कहते हैं, ‘मेरे चले जाने के बाद प्रशासन पूरी तरह से आन्दोलन को मनमाफिक रंग दे सकता था, लेकिन अब हम ऐसा नहीं होने देंगे. हमने सदैव हिंसा नहीं करने का वादा किया है तो हम उस पर कायम रहेंगे लेकिन हमारा प्रतिकार बना हुआ है और बना रहेगा.’
जिला प्रशासन इस बाबत कोई भी स्पष्ट जवाब नहीं देना चाह रहा है कि भाजपा नेताओं को भी तक क्यों नहीं गिरफ्तार किया गया है? नाम न छापने की शर्त पर बहुत सारे अधिकारी यह तो कह रहे हैं कि ‘ऊपर से आदेश’ है, लेकिन ऑन द रिकॉर्ड कोई भी बात करने को तैयार नहीं है. इस कड़ी में आगे हम स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद का साक्षात्कार पढ़ेंगे. लेकिन ‘कवन ठगवा नगरिया लूटल हो’ का प्रश्न लगातार बना हुआ है. सोशल मीडिया पर अपने राजनीतिक सम्बन्ध और लक्ष्य साधे जा रहे हैं, और यह कहना किसी शर्म से कम नहीं कि इसमें नेता, कार्यकर्ता, एक्टिविस्ट और पत्रकार तक शामिल हैं.