फ़हमिना हुसैन, TwoCircles.net
दिल्ली:देश के गरीब परिवारों की महिलाओं के चेहरों पर खुशी लाने के मक़सद से 1 मई 2016 को केंद्र सरकार द्वारा शुरू की गई ‘प्रधानमंत्री उज्जवला योजना’ सरकार के ही अजीबो-ग़रीब नियमों में उलझ कर रह गयी है.
इस योजना के तहत बीपीएल परिवार की महिलाओं को मुफ्त एलपीजी कनेक्शन दिए जाने का प्रावधान है. हालांकि उस महिला को 990 रुपए के गैस चूल्हे और एक गैस सिलेंडर के लिए 618 रुपए ज़रूर देने होंगे. अगर कनेक्शनधारी यह राशि देने की स्थिति में नहीं है, तो उसे लोन की सुविधा भी मिलेगी. लेकिन इस तरह के उपभोक्ताओं को लोन चलने तक कोईं सब्सिडी नहीं मिलेगी.
मीडिया में इस योजना की जमकर तारीफ़ भी हुई. पहली बार देखने व सुनने में यह स्कीम यक़ीनन बेहतर लगेगी लेकिन जब हमने बिहार के गांवों की महिलाओं से बात की, तो जो बात निकलकर सामने आ रही है, उससे स्थिति काफी चिंताजनक मालूम होती है.
मालती देवी की समस्या भी काफी गंभीर है. वे बातचीत में बताती हैं, ‘दो महीने पहले मैंने योजना के तहत गैस कनेक्शन के लिए आवेदन दिया. फिर से जाने पर वहां के अधिकारियों ने बताया कि फॉर्म के साथ जिस महिला के नाम पर कनेक्शन चाहिए, उसका बैंक खाता भी चाहिए.’
मालती आगे बताती हैं कि खाता खुलवाने में उनको बहुत भागदौड़ करनी पड़ी. खाता खुलवाने में 15 दिन से अधिक लग गए. लेकिन अब मालती की समस्या यह है कि उसके पास गैस कनेक्शन लेने के लिए पैसे नहीं हैं. अब जब मालती के पास क़रीब 1600 रूपये आ जाएंगे तब उन्हें दोबारा आवेदन भरना पड़ेगा.
शबनम खातून को इस योजना के तहत कनेक्शन तो मिल चुका है लेकिन वे बताती हैं कि इस गैस कनेक्शन लेने के लिए उन्हें बहुत मशक्क़त करनी पड़ी है. नियमों के अनुसार कागज़ बनवाने में ही इन्हें 10-12 दिन लगे फिर कनेक्शन मिलने में एक हफ्ते से ज्यादा समय लगा और इसके लिए उन्हें हर रोज़ दफ़्तर के कई चक्कर लगाने पड़े.
लोगों के घरों में साफ़सफाई करने वाली मनेसर देवी बताती हैं, ‘मोदी जी के इस योजना के शुरू करने पर बहुत खुश हुई थी. लेकिन अब जब कनेक्शन के लिए एजेंसी के दफ़्तर का चक्कर लगा रही हूं. तो एजेंसी के लोग हर रोज़ पेपरों में कुछ न कुछ कमी बताकर लौटा देते हैं. लेकिन अब उनके पास कागज़ पूरे हो गए हैं, आवेदन भी जमा हो गया है. लेकिन कनेक्शन अभी तक नहीं मिला. पता नहीं कितने दिन और लगेंगे कनेक्शन मिलने में?’
इसी तरह रमाशंकर ने भी अपनी पत्नी के नाम पर कनेक्शन के लिए आवेदन किया हुआ है. लेकिन राशन कार्ड के नए नियम इलेक्ट्रॉनिक वितरण लागू होने पर एक महीने से मामला लटका हुआ है. इसके पीछे मूल कारण यह है कि उनकी पत्नी का राशन कार्ड का एएचएलटी नंबर अभी तक नहीं मिला है.
इस तरह इस योजना में कई सारी पेचीदगियां हैं जो इस योजना का लाभ उठाने वाली महिलाओं से बात करने पर सामने आती हैं. महिलाओं का कहना है इस योजना के तहत बड़ी समस्या इस बात को लेकर है कि गैस कनेक्शन उसी परिवार को मिलेगा, जिसके घर में रसोई की छत पक्की हो. अगर रसोई की छत पक्की नहीं है तो उस परिवार की महिला को आवेदन-पत्र भी भरने का अधिकार नहीं है. यानी जिनके घर की छत पक्के न हों, जो झोपड़ी जैसे कच्चे मकानों में रहते हों उनके जीवन ‘उज्ज्वला’ की कोई उजाला नहीं है.
यही नहीं, रसोई में गैस चूल्हा रखने के लिए ऊंचा प्लेटफॉर्म चाहिए. इसके अलावा पहचानपत्र, परिवार के सभी बालिका सदस्यों के आधार कार्ड के साथ इतने दस्तावेज़ मांगे जा रहे हैं कि कई महिलाओं ने ‘उज्ज्वला’ की उम्मीद ही छोड़ दी है.
दरअसल उज्जवला योजना की नियमावली और शर्तों में इस तरह के नियमों का कोई ज़िक्र नहीं है. लेकिन इस किस्म की शर्तों को सरकार ने सिर्फ गैस एजेंसियों को मुहैया कराया है. इन शर्तों के बाबत यह आदेश जारी किए गए हैं कि योजना के तहत बांटे जा रहे कनेक्शनों का पहले शर्तों को पूरा करना अनिवार्य है.
पूर्वी बिहार की कई एजेंसियों में अधिकारी बात करने पर नाम न प्रकाशित करने के शर्त पर बताते हैं, ‘हमारे हाथ में कुछ भी नहीं है, जो नियम लिखे होते हैं, हम उन्हीं को फार्म के साथ मांगते हैं. अब नियम में है कि जिनके घर छप्पर के हैं, उनको ये सुविधा नहीं मिल सकती. तो अब हम इसमें क्या करें? अब अगर कनेक्शन लेना है तो इसके लिए घर की छत पहले पक्की करनी पड़ेगी क्योंकि छत कच्ची होने से आगजनी का ख़तरा ज्यादा रहता है.
इस योजना के अनुसार कनेक्शन पाने वाले ग्रामीणों को बताया जा रहा है कि गांवों में मुफ्त होम डिलेवरी की कोई सुविधा नहीं है. इसका फ़ायदा सिर्फ़ शहरी इलाकों में रहने वालों तक ही सीमित है.
स्पष्ट रहे कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 1 मई को उत्तर प्रदेश के बलिया जिले में आठ हज़ार करोड़ की इस योजना को पूरे तामझाम के साथ लांच किया था. इस योजना के अंतर्गत तीन साल के अंदर पांच करोड़ बीपीएल परिवार को गैस कनेक्शन मिलना है. लेकिन ज़्यादातर ज़िलों से मिलने वाली ख़बर के मुताबिक़ लोग इस योजना के तहत आवेदन ही नहीं कर रहे हैं.