अफ़रोज़ आलम साहिल, TwoCircles.net
बस्तर(छत्तीसगढ़): बस्तर में जगह-जगह आपको ऐसे कई स्तंभ नज़र आएंगे, जो छत्तीसगढ़ में ‘अटल चौक’ के नाम से जाने जाते हैं. यह अटल चौक छत्तीसगढ़ की लगभग हर पंचायत में बना है.
दरअसल अटल चौक छत्तीसगढ़ की हर पंचायत में इसलिए बनाया गया है कि ताकि यहां रहने वाले लोगों के ज़ेहन में हमेशा यह बात ताज़ा रहे कि छत्तीसगढ़ राज्य निर्माण में पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की भूमिका सबसे अहम रही है.
यानी उनके प्रति आभार जताने व सुशासन के प्रतीक के रूप में सन 2004-05 तत्कालीन पंचायत एवं ग्रामीण विकास मंत्री अजय चंद्राकर के कार्यकाल में छत्तीसगढ़ के लगभग सभी ग्राम पंचायतों में अटल चौक का निर्माण कराया गया. हर चौक के निर्माण पर 50 हज़ार रूपये खर्च किए गए.
यहां यह भी स्पष्ट रहे कि हर साल 25 दिसंबर यानी पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के जन्मदिन को भारतीय जनता पार्टी द्वारा छत्तीसगढ़ में सुशासन दिवस के रूप में मनाया जाता है. इस ख़ास दिन बाक़ायदा अटल चौक की सफ़ाई का कार्यक्रम का आयोजन भी होता है.
इन सबके बावजूद इन ‘अटल स्तंभ’ की अटल हक़ीक़त यह है कि बनने के कुछ सालों के बाद अधिकतर स्तंभों की हालत काफी जर्जर है. कहीं अटल चौक लोगों के लिए गोबर के कंडा रखने या कपड़ा सुखाने के काम आता है, तो कहीं इन अटल स्तंभों में मवेशी बांधे जाते हैं. कुछ स्तंभ ढह चुके हैं और कुछ ढहने की कगार पर हैं.
कुछ जगहों पर असामाजिक तत्त्वों द्वारा इन अटल स्तंभों को तोड़कर फेंक दिए जाने की भी ख़बर भी आई है. बावजूद इसके इस ‘अटल निशानी’ को बचाने की ओर पंचायत का कोई ध्यान नहीं है. जबकि इसके रख-रखाव की ज़िम्मेदारी यहां की पंचायतों को दी गई है. इसके लिए शासन स्तर पर स्तंभ की देख-रेख और मरम्मत कार्यों के लिए पंचायत को प्रतिवर्ष राशि भी उपलब्ध कराई जाती है.
स्थानीय पत्रकारों की मानें तो प्रशासन की योजना यहां पर पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के नाम पर स्मारक तैयार करने की है. ऐसे स्मारक जो छत्तीसगढ़ में जगह-जगह देखें जाएं. मगर दिलचस्प बात यह है कि यहां ये स्मारक तब तैयार किए जाएंगे, जब पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी इतिहास का हिस्सा हो चुके होंगे.
सच पूछे तो यह ऐसी प्लानिंग की ओर इशारा करता है जो पूर्व प्रधानमंत्री की न सिर्फ़ अवमानना करती है, बल्कि एक जीवित व्यक्ति को उसके न रहने के बाद भी स्मृतियों के आईने में देखने की कोशिश करती है. यह हाल उस छत्तीसगढ़ का है, जहां पिछले 13 सालों से भारतीय जनता पार्टी की सरकार है.
हालांकि यहां के आदिवासी समुदाय की यह भी शिकायत है कि इस सरकार ने उनके अपने आदिवासी नेताओं को कभी तवज्जो नहीं दी. उनके नाम पर कहीं कोई चौक या स्तंभ का निर्माण नहीं कराया गया. जबकि यहां जगदलपुर व नकुलनार में महाराणा प्रताप सिंह की मूर्तियां ज़रूर नज़र आती हैं, जिनका छत्तीसगढ़ के साथ दूर-दूर तक कोई लेना-देना नहीं है.
खैर, अटल चौक पर लगा अटल स्तंभ एक ऐसे अटल सत्य की तरह है जिसकी नींव ही दिखावे और प्रदर्शन पर टिकी हुई है. सच तो यही है कि छत्तीसगढ़ के आदिवासियों को भला इससे क्या हासिल हो सकता है और यहां की आदिवासी संस्कृति को भी इससे क्या लेना-देना?