आस मोहम्मद कैफ, TwoCircles.net
सहारनपुर: 2014 के लोकसभा चुनाव में इमरान मसूद ने भाजपा के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार और उस समय के गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को ललकार दिया. एक गांव में वे चुनाव प्रचार के लिए गए थे, जहां भाषण देते वक़्त मोबाइल फोन से उनका वीडियो बना लिया गया.
यह वीडियो वायरल हो गया. इस वीडियो में इमरान मोदी के खिलाफ बातें कह रहे थे. इमरान की हेटस्पीच पर तुरंत राजस्थान की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने प्रतिक्रिया दी और यह चुनावी मुद्दा बन गया. इमरान के खिलाफ मुक़दमा दर्ज़ हो गया और वो जेल भेज दिए गए. उनके जेल में होने के बावजूद राहुल गांधी उनका चुनाव प्रचार करने पहुंचे. इमरान को 4 लाख से ज्यादा वोट मिले लेकिन फिर भी हार गए. चुनाव पूरी तरह से साम्प्रदायिक हो गया था. इमरान मसूद को इससे पूरे भारत में प्रचार मिला और नरेंद्र मोदी तक ने एक सभा मे उनका जिक्र कर दिया. इस एक विवाद ने इमरान की कट्टर छवि बना दी, जो उनके राजनीतिक जीवन से बिल्कुल इतर थी.
लोग आज भी जानने के लिए उत्सुक हैं कि इमरान का वह भाषण का वीडियो चोरी था या किसी योजना के तहत उसे लाया गया था? दरअसल इमरान पहली बार चर्चा में तब आये थे जब उन्होंने मुजफ्फराबाद विधानसभा से जीते कैबिनेट मंत्री रहे जगदीश राणा को अपनी ही पार्टी से बग़ावत कर हरा दिया था. इमरान तब समाजवादी पार्टी में थे और यहां से टिकट मांग रहे थे, मगर उस समय जगदीश राणा मुजफ्फराबाद से विधायक और मंत्री थे. मुलायम सिंह यादव ने जगदीश राणा का टिकट काटने से इनकार कर दिया और आश्चर्यजनक रूप से इमरान ने पार्टी से बग़ावत कर दी और निर्दलीय पर्चा भर दिया. इमरान विधायक मुजफ्फराबाद (अब बेहट) से बने और जश्न सहारनपुर में मना. राजनीतिक हलके को उनकी ताक़त का अहसास हो गया. यह 2007 की बात है जब मायावती मुख्यमंत्री थीं. इस दौरान वे सहारनपुर के चेयरमैन भी बने. मगर सत्ता के विरुद्ध अड़े रहे. 2014 में पहले उन्हें समाजवादी पार्टी ने प्रत्याशी बनाया था मगर उनके चाचा पूर्व केंद्रीय मंत्री क़ाज़ी रसीद मसूद ने पुत्र मोह में उनके साथ विश्वासघात करते हुए उनका टिकट कटवाकर अपने पुत्र शादान को प्रत्याशी बनवा दिया. पूरी ताकत लगाने के बावजूद इमरान को शादान से 8 गुना ज्यादा वोट मिले. शादान 50 हजार पर सिमट गए मगर इतने ही वोटो से इमरान सांसद नही बन सके. 5 साल बसपा शासन में इमरान मसूद ने पहले सहारनपुर से ही विधायक रहकर मुख्यमंत्री बनी मायावती का पूरी ताक़त से विरोध किया और डंडे खाये. 2012 मे पूरे जिले में बढ़िया असर होने के बावजूद नेता जी से उनकी टिकट वितरण को लेकर बात बिगड़ गयी, जिसके बाद इमरान कांग्रेस मे चले गए एक हिसाब से मरी हुई कांग्रेस को ज़िंदा कर दिया.
इस प्रकार जिले में ग्रेस को दो विधायक मिले जबकि समाजवादी पार्टी के पास अब एक भी नहीं है. सबसे मज़ेदार नतीजा देवबंद विधानसभा उपचुनाव में आया, जहां उनके प्रत्याशी माँविआ अली ने दिवंगत मंत्री राजेन्द्र राणा की पत्नी मीना राणा को सहानभूति की लहर के बावजूद हरा दिया. इससे पहले सहारनपुर सीट पर उन्होंने मुकेश चौधरी को प्रत्याशी बनाया था जहां उनको नीचा दिखाने के लिए सरकार ने 17 मंत्री भेज दिए थे. इमरान का प्रत्याशी यहां तीसरे नम्बर पर रहा.
इमरान कांग्रेस में प्रदेश उपाध्यक्ष बनाये गए और राहुल गांधी के साथ कंधे से कंधा मिलाकर खाट सभा और सभी रोड शो में शिरकत की. सचाई तो यह है कि इमरान अपनी वर्तमान छवि के विपरीत बिल्कुल भी साम्प्रदायिक नहीं है, जैसा मुकेश चौधरी, नरेश सैनी, विशदयाल छोटन और शशि वालिया को टिकट दिलवाने के उनके प्रयास से समझा जा सकता है. इमरान नए दौर के नेता हैं और अब उनके समर्थक उन्हें नेताजी ही कहते है. उनकी लोकप्रियता का आलम यह है कि हाल ही में वे एक शादी में परिवार के साथ शिरकत करने मध्य प्रदेश के विदिशा गए थे, जहां लोगों के अनुरोध पर उन्हें सभा करनी पड़ी और 50 हजार लोग जुट गए. इमरान ने पश्चिमी उत्तर प्रदेश के कांग्रेस मे जान फूंक दी है. और वे मुस्लिम समुदाय में भी लोकप्रिय हैं, ऐसा देखकर लगता है कि इतने में कम से कम 20 विधानसभा सीटों के नतीजे प्रभावित कर सकते हैं.
इमरान मसूद को हर आसान चीज़ को मुश्किल बनाकर हासिल करने की आदत है. जानकार बताते हैं कि सपा में बेहट विधानसभा के टिकट को लेकर जिद पर अड़े काजी़ रशीद मसूद भतीजे की जिद के आगे झुक गये. (बाद में यहां के सपा प्रत्याशी की जमानत जब्त हो गयी) परिवार कांग्रेस में गया ओर काजी जी जेल. ऐसी हालत में जब इमरान को परिवार के साथ खडा होना चाहिए था तो दंगा पीडित के तौर पर इमरान सत्ताधारी समाजवादी पार्टी के लोकसभा प्रत्याशी बन गए. इस बात को बडे काजी दिल पर ले गए. उनकी बेटे शाजान मसूद की चाहत ने इमरान को धूल चटा दी. यह इमरान मसूद के लिए ज्यादती थी. तभी मुस्लिम वोटों को समेटने के लिए ‘बोटी-बोटी काटने’ का बयान सामने किया गया. इमरान अपने मकसद मे कामयाब हुए और साढ़े तीन लाख वोटो वोटों से जीत गए.
इमरान को जानने वाले यह बात आसानी से मानते हैं कि इमरान सांम्प्रदायिक नेता बिल्कुल नहीं हैं, यदि ऐसा होता तो उनके घरेलू विधानसभा सीट गंगोह शरीफ से प्रदीप चौधरी विधायक न होते. प्रदीप के चुनाव में इमरान के पूरे परिवार ने प्रचार किया था. संघर्षक्षमता, दीवानगी और राजनैतिक कुशलता के दम पर इमरान एक स्वीकार्य नेता लगते है. सच यह है कि शाजान मसूद उनके सामने कहीं नहीं टिकते.
हालांकि इमरान गलतियां भी खूब करते हैं, जैसे विधानसभा उपचुनाव में मुकेश चौधरी को लड़वाना एक बडी गलती थी. इमरान का बुरा दौर उनके अहंकार की वजह से भी आया, यही कारण है कि कई राजनीतिक अर्थों में वे बहुत कमजोर हो चुके हैं और उन पर सांप्रदायिकता का ठप्पा भी लगाया जा चुका है. अब उनके चाहने वालों में भी पहले जैसी बात नहीं रही. बहरहाल, इमरान मसूद का करियर तबाह करने की साजिश रची जा रही है.
साजिश की तह में जाने के लिए यह जानना जरूरी है कि शाजिया सादात मसूद फेसबुक से कहां गयीं? इमरान मसूद को सपा में वापस लाने के प्रयास जारी हैं. एक खेमा उन्हें बसपा में ले जाना चाहता है. कह सकते हैं कि सहारनपुर को इमरान की ज़रुरत है, विरासत की इस सियासत पर हक भी इमरान का है.