फ़हमिना हुसैन, TwoCircles.net
नासरीगंज (रोहतास, बिहार) : शायद आपको सोशल मीडिया पर वायरल वो तस्वीर याद होगी, जिसमें एक शख्स अपनी बीवी की लाश कंधे पर रखकर 12 किलोमीटर पैदल चला था. दाना मांझी नाम के इस शख़्स के पास गाड़ी करने को रुपए नहीं थे, इसलिए ज़िला अस्पताल प्रशासन ने उसे गाड़ी देने से मना कर दिया. ऐसे में ये शख़्स आंसुओं में डूबी अपनी बेटी के साथ बीवी की लाश को कंधे पर लेकर गांव की ओर बढ़ चला था.
हाल ही में बिहार के मुज़फ़्फ़रपुर सदर अस्पताल की वो तस्वीर भी सामने आई, जहां महिला के शव को कूड़ा उठाने वाले ट्रॉली में रखकर पोस्टमार्टम के लिए ले जाया गया. तो वहीं पूर्णिया में जब अस्पताल ने एम्बुलेंस देने से इंकार कर दिया तो परिवार वालों को शव मोटरसाइकिल में बांधकर ले जाना पड़ा.
राज्य सरकार के द्वारा विकास के बड़े-बड़े दावों के बीच बिहार की ये तस्वीर भी हैरत में डाल देगी. आप सोचने पर मजबूर हो जाएंगे कि आख़िर बिहार सरकार विकास का जो दावा कर रही है, उसके दावे में कितनी सच्चाई है.
यह बिहार के रोहतास ज़िले के नासरीगंज की तस्वीर है. यहां आज भी सड़क के अभाव में बीमार लोगों को एम्बुलेंस के बजाए खाट पर अस्पताल पहुंचाया जाता है. यहां ऐसी तस्वीरें लगभग हर दिन ही नज़र आती है. हद तो तब हो जाती है जब भारी बारिश में प्रखण्ड मुख्यालय से गांवों का संपर्क टूट जाता है.
राजपुर गांव के रहने वाले भोला कहते हैं कि अगर कोई बीमार हुआ तो सरकारी अस्पताल 8 किलोमीटर पैदल जाना पड़ता है. यहां के अस्पताल में एम्बुलेंस सेवा नहीं है.
वो आगे कहते हैं, रात के समय सबसे ज्यादा मुश्किलें बढ़ जाती हैं. निजी वाहन तो दूर ठेला भी नहीं मिलता है. लेकिन ज़िन्दगी बचने के लिए खाट पर अस्पताल ले जाना भी ज़रूरी है.
दावथ के रहने वाले अभय कुमार कहते हैं कि, यहां से अस्पताल में एम्बुलेंस तो दूर डॉक्टर भी वक़्त पर नहीं मिलते हैं.
वहीं मेदनीपुर-मंगराव के शैलेन्द्र पासवान कहतें हैं कि, सड़क का हाल सबसे बुरा है. गांव में बरसात में कोई वाहन नहीं आ सकता है. कोई बीमार हुआ भी तो खाट या ठेला से 10-12 किलोमीटर विक्रमगंज या नासरीगंज अस्पताल जाना पड़ता है. कभी-कभी तो ज्यादा तबीयत ख़राब होने पर ले जाते हुए रास्ते में ही मृत्यु हो जाती है.
स्पष्ट रहे कि बिहार की स्वास्थ्य व्यवस्था को मज़बूत बनाने के लिए सरकार ने कई ज़िलों को एम्बुलेंस मुहैया कराया है. ‘102 एम्बुलेंस सेवा’ के तहत मुख्यमंत्री ने 51 नए एम्बुलेंस अलग-अलग ज़िलों को दिए गए हैं, लेकिन रोहतास ज़िला इससे महरूम रहा.
यानी सकरार द्वारा सूबे के ज़िलों में एम्बुलेंस बांटने की इस प्रक्रिया में एक भी एम्बुलेंस रोहतास ज़िले को नसीब नहीं हो सका. पहले के 11 एम्बुलेंसों से पूरे ज़िले के अस्पतालों का काम चल रहा है. हालांकि ये 11 एम्बुलेंस भी धीरे-धीरे खुद भी बीमार होते जा रहे हैं.
ज़िला स्वास्थ्य अधिकारी रितेश जी बताते हैं कि, 5 एम्बुलेंस बिहार सरकार की तरफ़ से 2011 में और 5 एम्बुलेंस 2014 में मिली थीं. इसमें कुछ एम्बुलेंस चलने के हालत में नहीं हैं, इसलिए उसका इस्तेमाल नहीं किया जा रहा है. उन्होंने भी इस बात की पुष्टि की कि इस बार के आवंटन में रोहतास ज़िला को कोई भी एम्बुलेंस प्राप्त नहीं हुआ है.
यहां बताते चलें कि अगर कोई व्यक्ति बीमार पड़ जाए तो उसे काफी दूर ले जाना पड़ता है, क्योंकि इलाक़े में एक भी प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र नहीं है. सड़कों की हालत इतनी ख़राब है कि आपातकालीन स्थिति में भी कोई 4 पहिया वाहन आ-जा नहीं सकता. यानी ऐसी स्थिति में ज़्यादातर मरीज़ों को मौत ही नसीब होती है और सरकार के पास इन मौतों का कोई हिसाब-किताब नहीं है.