तारिक़ इक़बाल, TwoCircles.net के लिए
पटना : सौ साल गुज़र गया. और हम सब उस बीते हुए समय को चम्पारण सत्यग्रह शताब्दी वर्ष के मौक़े पर आज फिर से जीना चाह रहे हैं.
देश में इस वक़्त सबसे ज़यादा ख़तरा सच बोलने पर है. दाभोलकर हो या गौरी लंकेश सबके लिए कहीं न कहीं से कोई गोडसे निकल आता है. मारे जाने की धमकियों का डर है. ख़ौफ़ का साया बना हुआ है. ऐसे समय में गांधी के विचारों को जीना कितना मुश्किल है. वो भी उस दौर में जब कोई बत्तख मियां मौजूद नहीं है, जो हमें बता सके कि दूध के गिलास में ज़हर है.
चम्पारण सत्याग्रह भारत ही नहीं, बल्कि पुरे विश्व में ब्रिटिश साम्राज्य के लिए एक चुनौती थी. 1917 का चम्पारण सत्याग्रह मोहनदास को महात्मा बना रहा था, तब बापू के क़ातिल गोडसे का पता तो नहीं था, पर ब्रिटिश हुकूमत ने कई बार गांधी को ख़त्म करने की कोशिश ज़रूर की थी.
चम्पारण सत्याग्रह शताब्दी वर्ष के अवसर पर सरकार द्वारा बहुत सारे आयोजन और कार्यकर्म जारी हैं.
पटना स्थित ए.एन. सिन्हा इंस्टीच्यूट ऑफ सोशल स्टडीज के पूर्व निदेशक और गांधीवादी डॉ. डीएम दिवाकर कहते हैं, नेताओं की कोशिश इन आयोजनों के ज़रिए जनता में अपनी भ्रम वाली छवि पैदा करना है. इसके ज़रिए वे सत्ता हासिल करते हैं और फिर इसे बनाए रखने की कोशिश करते हैं.
हालांकि इसके साथ वे इस तरह के आयोजनों को इस मायने में महत्वपूर्ण बताते हैं कि इनके ज़रिए गांधीवादी विचारधारा की मूल बातों को लोगों तक पहुंचाया जा सकता है.
सरकार द्वारा प्रायोजित आयोजनों से इतर देश के कुछ प्रबुद्ध लोगों और समाजिक संगठनों ने बीते 05 सितम्बर से चम्पारण सत्याग्रह शताब्दी यात्रा की शुरुआत मुज़फ्फ़रपुर से की है, जो अगले 24 सितम्बर को मोतिहारी में ख़त्म होगी.
इस यात्रा का उद्देश्य बताते हुए अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी ओल्ड बॉयज़ एसोसिएशन महाराष्ट्र के अध्यक्ष और सेवक फाउन्डेशन के चेयरमैन तनवीर आलम बताते हैं कि, गांधी जिस अंतिम आदमी की बात करते थे, वह आज भी उतना ही जूझ रहा है जितना आज़ादी से पहले. इसलिए आज ये ज़्यादा ज़रूरी हो गया है कि जन मानस के बीच जाकर उनकी समस्याओं को देखे-समझे जाने के साथ जन भागीदारी से हल करने की कोशिश ही न की जाए बल्कि मौजूदा राजनीति के उदासीन स्वरुप में मुखरता से आवाज़ भी बुलंद की जाए.
5 सितम्बर को मुज़फ्फ़रपुर में यात्रा के पूर्व आयोजित कार्यक्रम को संबोधित करते हुए जाने माने एक्टिविस्ट और राष्ट्र सेवा दल के अध्यक्ष सुरेश खैरनार ने कहा कि, गांधी का चम्पारण सत्याग्रह भारत में अंग्रेज़ों के ख़िलाफ़ किया गया पहला सफल आन्दोलन था, लेकिन विडंबना ये है कि आज सौ साल बाद भी किसानों की हालत में कोई ठोस सुधार नहीं आया है. अंग्रेज़ों की गुलामी से आज़ाद होने के बाद भी देश में पांच लाख किसानों की आत्महत्या कोई साधारण बात नहीं है.
बिहार विधान परिषद के पूर्व सदस्य प्रोफ़ेस्सर सफ़ी अहमद इस बात पर चिंतित हैं कि, शिक्षा की हालत न केवल बद से बदतर होती जा रही है, बल्कि सरकारी शिक्षण संस्थानों की लगातार बिगड़ती सूरत ही प्राईवेट शिक्षण संस्थानों को फलने-फूलने में मददगार साबित हो रहा है, जिसे सरकार सुनियोजित तरीक़े से मदद कर रही है.
प्रोफ़ेसर वसी अहमद ने गौतम बुद्ध का उदाहरण देते हुए कहा कि, बुद्ध कहते थे कि शिक्षा मनुष्य के लिए उतना ही ज़रूरी है, जितना भोजन और जो सबके लिए अनिवार्य हो, वही सही है.
यात्रा के कंवेनर राष्ट्र सेवा दल के महामंत्री शाहिद कमाल के पास 19 दिन की यात्रा का विस्तृत विवरण है. हर दिन विभिन्न जगहों पर लोगों से संवाद के साथ स्थानीय समस्या के बारे में बात करते हुए शहीद कमाल कहते हैं, 70 साल की आज़ादी के बाद भी हमारी सरकारों ने कभी स्थायी निदान का उपाय नहीं सोचा और राहत के लूट का खेल चलाती रही. अब समय आ गया है कि राहत नहीं बाढ़ के स्थायी निदान के सम्बन्ध में सोचें. बाढ़ का कारण नेपाल है, ऐसा कहकर लोगों को बेवकूफ़ बनाने का काम बंद होना चाहिए.
समाजवादी समागम, जनआंदोलनों के राष्ट्रीय समन्यवय, नशा मुक्त भारत के राष्ट्रीय संयोजक पूर्व विधायक डॉ. सुनीलम ने कहा कि, अब समय आ गया है कि झूठ को झूठ कहा जाए. देश के प्रधानमन्त्री ने जगह-जगह झूठ बोला है. नोटबंदी पर झूठ, जनधन पर झूठ, जनता से हज़ारों झुठे वादे. देश में कुल 24 करोड़ परिवार जो जनधन खाते के दायरे में आते हैं और प्रधानमन्त्री ने 30 करोड़ जनधन खाते खुलवाने का ऐलान कर दिया. फ़सल बीमा को किसान क्रांति की योजना बताया, लेकिन इस योजना के नाम पर 22,000 करोड़ का प्रीमियम किसानों से वसूला गया और केवल 8,000 करोड़ का मुआवजा किसानों को दिया गया. सुनीलम ने कहा की मोदी के झूठ को पूरी मज़बूती से झूठ कहा जाना चाहिए.
चम्पारण सत्याग्रह शताब्दी यात्रा की एक सभा को संबोधित करते हुए सोशलिस्ट पार्टी ऑफ़ इंडिया के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. प्रेम सिंह ने कहा कि, देश में आपसी भाईचारा को ख़त्म कर सामाजिक भेदभाव को मज़बूत करके तरक़्क़ी नहीं कर सकते, इसलिए गांधी के विचारों को हर तरफ़ पहुंचाना हमारी ज़िम्मेदारी है, ताकि ये देश गांधी के सपनों का हो.
देश भर में सरकार द्वारा प्रायोजित कार्यकर्म जारी हैं. ऐसे में पूरी तरह से जन-भागीदारी के साथ आम लोगों तक पहुंच कर गांधी के विचारों को ख़ास तौर पर युवा पीढ़ी तक पहुंचाने का प्रयास कहां तक कामयाब होगा, इसका जवाब देते हुए समाजसेवी तनवीर आलम कहते हैं कि, हमारा उद्देश्य सरकार की तरह खानापूर्ति नहीं है, हम साफ़ मंशा से निकले हैं और लोगों के बीच जाकर संवाद कर रहे हैं.
ये यात्रा मुज़फ्फ़रपुर से 5 सितम्बर को आरंभ हुई है जो उत्तर बिहार के सभी ज़िलों से होते हुए 24 सितम्बर को मोतिहारी में समाप्त होगी. इस यात्रा का दूसरा चरण नवम्बर के महीने में शुरू होगा.