खुर्रम मल्लिक, TwoCircles.net के लिए
इस वक़्त बिहार में राजनीती की राजनीतिक हालात बेहतर नहीं हैं. कौन सा नेता किस पल किस पार्टी में चला जाए, ये शायद ऊपर वाला भी नहीं जानता होगा. इतना तो गिरगिट भी अपना रंग नहीं बदलता, जितना यहां के नेता पार्टी बदल रहे हैं.
और मज़े की बात तो यह है कि ये नेता इस अदला-बदली पर बड़े गर्व से सीना फुलाकर कहते नज़र आ रहे हैं कि हम उस पार्टी की विचारधारा से सहमत नहीं थे, इसलिए छोड़ दिया.
समझ नहीं आता कि यह कैसी विचारधारा है, पार्टी में आप जब तक जुड़े थे, उस पार्टी का हर नेता आपको भगवान नज़र आता था. लेकिन जैसे ही आपकी अपनी स्थिति डांवाडोल नज़र आने लगी, झट से आप दूसरी पार्टी का दामन थाम लिया. और अब यही नेता उसी पार्टी को मन भर गाली दे रहे हैं, जिस पार्टी का मुखिया उनके लिए भगवान था. जिस पार्टी में उसने क़सम खाई थी कि मर जाएंगे, लेकिन उस पार्टी में नहीं जाएंगे. मगर अब इन्होंने उसी पार्टी का दामन थाम लिया है.
आख़िर ऐसा करते समय इन नेताओं की अंतरात्मा कहां चली जाती है?इनकी संवेदनाएं क्यों मर जाती हैं? आख़िर ये नेता अपने विचारधारा को किस क़ब्र में दफ़न कर देते हैं? और सबसे महत्वपूर्ण सवाल कि क्या सच में विचारधारा नाम की कोई चीज़ आज की सियासत में बची है? आख़िर ऐसा कौन सा चोर दरवाज़ा है, जो हमेशा खुला रहता है और जिसे जब दिल करता है उस दरवाज़े में इंट्री मार देता है.
ये कितना अजीब है कि जो नीतिश कुमार प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को पानी पी-पीकर कोस रहे थे, वो अब उन्हीं के साथ हैं. इन्होंने तो यहां तक कहा था कि, ‘मिट्टी में मिल जाएंगे, मगर मोदी के साथ नहीं जाएंगे.’ लेकिन एक 26 साल के लड़के के एक केस को बुनियाद बनाकर महागठबंधन से ख़ुद को अलग कर लिया और उस इंसान को अपने बग़ल की कुर्सी थमा दी जिसके ऊपर एक नहीं पूरे पांच केस हैं.
अब ताज़ा ख़बर मांझी जी का ही लीजिए. कल तक लालू प्रसाद यादव को देश का सबसे भ्रष्ट राजनेता बता रहे थे. आज इसी मांझी को लालू की विचारधारा से प्रेम हो गया है. उनका बयान आया है कि वह लालू की विचारधारा को आगे बढ़ाएंगे.
जब मांझी मुख्यमंत्री थे तो नीतिश से बढ़कर कोई सज्जन व्यक्ति था ही नहीं, लेकिन जैसे ही उनकी कुर्सी गई, वही नीतिश उनको गद्दार नज़र आने लगे. और अब जब एनडीए में उनकी दाल नहीं गल रही थी तो फिर से बिहार में सबसे बड़ी पार्टी होने के नाते राष्ट्रीय जनता दल का दामन थाम लिया. और जो तेजस्वी उन्हें बेईमान नज़र आता था, आज उसी के साथ हंस हंसकर ऐसे बातें कर रहे थे कि जैसे बरसों का याराना हो.
ठीक इसी तरह बरसों कांग्रेस की लाठी पकड़ कर राजनीती का ककहरा सीखने वाले अशोक चौधरी को आज अचानक सपने में नीतिश जी आए और बोला कि तुम एक भ्रष्ट पार्टी में क्यों पड़े हो, आओ और मुझसे हाथ मिलाकर अपनी आत्मा को स्वच्छ कर लो. फिर क्या था इस सपने को सच करते हुए जनाब चले गए जदयू में. मौसम वैज्ञानिक को तो अब पूरा देश पहचानता है. हालांकि सियासत के बदलते इस मौसम में ख़बर आ रही है कि ये मौसम वैज्ञानिक साहब भी जल्द ही पाला बदलने वाले हैं. हवा में तैर रही ये ख़बर कितना सही है, ये तो आने वाला मौसम या वक़्त ही बताएगा.
बताते चलें कि अभी तक तो नेताओं पर जूता-चप्पल फेंकने के इक्का-दुक्का मामले सामने आ चुके हैं, लेकिन अगर नेताओं का यही हाल रहा तो वो दिन दूर नहीं जब जनता आपसे तंग आकर आपको आपकी कुर्सी से पकड़ कर खींच देगी और घसीटते हुए आपका हर चौक-चौराहों पर स्वागत करेगी, वह भी स्वैग से.
मैं चुनाव आयोग से यह अपील करना चाहूंगा कि इससे पहले कि आम लोगों का राजनीति से मोहभंग हो जाए, आप कोई ऐसा क़ानून बनाएं कि नेतागण चाहकर भी यह अदला-बदली का खेल ना खेल सकें.
(लेखक पटना में एक बिजनेसमैन हैं.)