लॉकडाउन में जब आप घरों में क़ैद हैं। ऐसे में गुड़गांव में अमेरिकन कंपनी फेयर पोर्टल (Fareportal) ने अपने 800 कर्मचारियों को कंपनी से निकाल दिया है। इसी कंपनी ने गुड़गांव के अलावा पुणे में भी कर्मचारियों को निकाला है। यह कंपनी ट्रेवल बिज़नेस यानी फ्लाइट और होटल बुकिंग की बहुत बड़ी अमेरिकी कंपनी है। कर्मचारियों को निकाले जाने का सिलसिला कई दिनों से चल रहा है और मजाल है कि केंद्र सरकार, हरियाणा सरकार या उसके श्रम विभाग गुड़गांव ने इस पर कोई ऐतराज़ किया हो।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जब देश को नौकरियां जाने का आश्वासन दे रहे थे, ऐसे समय में केंद्र सरकार भी फेयरपोर्टल के इस घटनाक्रम पर चुप है। कर्मचारियों का कहना है कि गुड़गांव की मल्टीनैशनल कंपनियों (एमएनसी) में अभी ये शुरुआत भर है। जल्द ही कुछ और कंपनियां भी इसी रास्ते पर चलेंगी।
कंपनी के एचआर डिपार्टमेंट ने बिना कोई नोटिस दिए फोन पर कर्मचारियों को अलग-अलग समय देते हुए दफ्तर बुलाया और उसने इस्तीफ़ा देने को कहा। हर कर्मचारी से कहा गया कि अगर उन्हें वेतन चाहिए तो इस्तीफ़ा देना होगा। अन्यथा वेतन भी रुक जाएगा। कर्मचारियों को मार्च का वेतन चाहिए था, उन्होॆने इस्तीफ़ा लिख दिया।
जो नए कर्मचारी थे यानी जिनको लगभग एक साल पूरा होने को था, उन्हें बर्ख़ास्त करने के लिए कॉन्ट्रैक्ट कर्मचारी धारा 10ए का इस्तेमाल किया गया। इसके तहत कंपनी कभी भी उन्हें बर्ख़ास्त कर सकती है। बर्ख़ास्त कर्मचारियों को अभी तक मार्च का वेतन भी नहीं दिया गया। कंपनी से बर्ख़ास्त की गई एक महिला कर्मचारी ने बताया कि उसके पास रखा पिछला सारा पैसा खत्म हो गया। अब उसके पास परिवार के साथ नेपाल लौटने तक के लिए पैसे नहीं हैं। तमाम कर्मचारियों का लगभग यही हाल है।
हटाए गए कर्मचारियों में 8 और 10 साल तक सेवा देने वाले भी शामिल हैं। लेकिन ऐसे कर्मचारियों के मामले में किसी भी सेवाशर्त को लागू नहीं किया गया। सूत्रों का कहना है कि सबसे ज्यादा 500 कर्मचारी गुड़गांव दफ्तर से हटाए गए हैं। इसी तरह पुणे से 300 कर्मचारी हटाए गए हैं। पुणे में काम करने वाले अधिकतर कर्मचारी पुराने हैं। चार साल तक काम कर चुके एक टिकटिंग एग्जेक्यूटिव राजू प्रसाद ने बताया कि उसे और उसके कुछ साथियों को बर्ख़ास्तगी का लेटर ईमेल पर मिला है।
आल इंडिया सेंट्रल काउंसिल आफ ट्रेड यूनियनंस ने फेयरपोर्टल के कर्मचारियों को हटाए जाने के ख़िलाफ़ हरियाणा के सीएम मनोहर लाल खट्टर को पत्र लिखा है। पत्र में कहा गया है कि कोरोना आपदा के दौरान कंपनी की यह हरकत कानून का खुला उल्लंघन है। इससे कर्मचारियों की दिक्कत बढ़ेगी। मुख्यमंत्री से इस मामले में फ़ौरन दखल देने और कार्रवाई की मांग करते हुए कहा गया है कि इससे पहले हालात नाज़ुक हों, हरियाणा सरकार को फौरन ऐक्शन लेना चाहिए। इसी तरह का पत्र महाराष्ट्र सरकार को भी लिखा गया है।
फेयरपोर्टल ने अपने पुराने कर्मचारियों को जो पत्र भेजा है, उसमें उन्हें हटाने की कोई वजह नहीं बताई गई है। कई अधिकारी स्तर के कर्मचारियों ने कंपनी के वाइस प्रेसीडेंट विनय कांची को संपर्क करने की कोशिश की लेकिन उन्होंने अपना मोबाइल बंद कर रखा है। इसी तरह कई और अफसरों से संपर्क की कोशिश भी बेकार गई। निकाले गए कर्मचारियों का कहना है कि सहानुभूति के तौर पर भी कोई अधिकारी बात नहीं कर रहा है।
अपने काम से काम का मतलब रखने वाले कर्मचारियों को अब कुछ समझ में नहीं आ रहा है कि वे किस तरफ जाए। अभी तक किसी ने पुलिस में कोई रिपोर्ट तक नहीं दर्ज कराई है। गुड़गांव के श्रम विभाग, डीएम, पुलिस कमिश्नर से लेकर डिविजनल कमिश्नर तक इस घटना की जानकारी हो चुकी है, लेकिन कर्मचारियों के आंसू पोंछने के लिए कोई आगे नहीं आ रहा है।
देश का टीवी मीडिया जब हिंदू-मुसलमानों को लड़ाने और देश को बांटने की कोशिश में लगा हुआ है, उसकी नजर इन कर्मचारियों की बर्खास्तगी पर नहीं गई। एक कर्मचारी ने बताया कि उन लोगों ने तमाम चैनलों को जानकारी दी लेकिन कहीं से कोई हमारी कहानी सुनने नहीं पहुंचा। इस मीडिया के पास मुसलमानों को टारगेट करके फर्जी खबरें दिखाने का समय तो है लेकिन हमारा दर्द सुनने के लिए कोई समय नहीं है।
कर्मचारियों को उम्मीद थी कि टीवी मीडिया देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और सीएम मनोहर लाल खट्टर से इस संबंध में सवाल करेगा लेकिन उनकी उम्मीदों पर पानी फिर गया है। लॉकडाउन की घोषणा किए जाते समय मोदी ने आश्वासन दिया था कि किसी की नौकरी पर संकट नहीं आएगा लेकिन न सिर्फ मोदी बल्कि खट्टर के आश्वासन भी फर्जी साबित हुए।
गुड़गांव का निकम्मा श्रम विभाग इस मामले में कंपनी के खिलाफ एफआईआर दर्ज तो करवा ही सकता है। क्योंकि कंपनी ने नोटिस देकर कर्मचारियों को बर्खास्त करने जैसा मामूली कदम भी नहीं उठाया है। इसी तरह श्रम विभाग डीएम को इस कंपनी के बैंक खाते फ्रीज करने, चल-अचल संपत्ति कुर्क करने के लिए सुझाव दे सकता था। इसी तरह डीएम भी श्रम विभाग का सुझाव मिले बिना ये सारे कदम बतौर जिला मजिस्ट्रेट ये सारे क़दम खुद से उठा सकते थे।