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हाईकोर्ट ने यूपी सरकार को दिया करारा झटका, 94 रासुका रद्द,सिर्फ गोकशी के 41 मामलों में लगा दी थी एनएसए

विशेष संवाददाता। Twocircles.net

उत्तर प्रदेश की योगी सरकार को इलाहाबाद हाईकोर्ट से बड़ा इटका लगा हैं। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने उत्तर प्रदेश सरकार के 94 मामलों में रासुका लगाने के आदेश को निरस्त कर दिया है। रासुका के आदेश को रद्द करते हुए हाईकोर्ट ने जमानत भी दे दी है। यह आदेश इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 120 मामलों में सुनवाई के दौरान दिया है। साथ ही हाईकोर्ट ने यह भी माना है कि उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा रासुका का दुरुपयोग किया जा रहा है। यह मामले प्रदेश के 32 जिलों से आए थे।

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने जनवरी 2018 और दिसंबर 2020 के बीच योगी सरकार द्वारा लगाए गए राष्ट्रीय सुरक्षा कानून के मामलों में सुनवाई करते हुए 120 रासुका के आदेशों में से 94 आदेश रद्द कर दिए हैं और बंदियों की रिहाई के आदेश दिए हैं। हाईकोर्ट ने यह भी माना है कि प्रदेश सरकार रासुका का गलत इस्तेमाल भी कर रहीं हैं। कोर्ट ने कहा कि पुलिस की एफआईआर में जानकारियों को कट पेस्ट कर दिया जाता है। साथ ही जमानत रद्द करने के लिए बार-बार रासुका का उपयोग किया जाता है।

रासुका लगाने के मामले में गोहत्या का मामला पहले नंबर पर है, जिसमें 41 मामले दर्ज किए गए हैं। इस मामले में सभी आरोपी अल्पसंख्यक समुदाय के हैं जिन पर डीएम की ओर से FIR में गोहत्या का आरोप लगाया गया था। गोकशी के 41 रासुका के मामलों में 30 मामलों में यूपी सरकार की ओर से लगाए गए रासुका के आदेश को कोर्ट ने रद्द कर दिया। इसके अलावा गोहत्या के 11 मामलों में एक को छोड़कर बाकी को हिरासत को सही ठहराया उनमें निचली अदालतों और हाईकोर्ट ने आरोपी को यह कहते हुए हुए जमानत दी कि न्यायिक हिरासत आवश्यक नहीं हैं।

रासुका 13 अन्य मामले में कोर्ट ने कहा है कि रासुका लगाए जाने के खिलाफ उन्हें खुद को प्रभावी तरीके से पेश नहीं किया जाने दिया गया है। वहीं 7 अन्य मामलों में कोर्ट ने कहा कि इन मामलों में रासुका लगाए जाने की जरूरत नहीं थी। रासुका के अन्य 6 मामलों में कोर्ट ने पाया का आरोपी की कोई आपराधिक पृष्ठभूमि ही नहीं है।

इलाहाबाद हाईकोर्ट के अनुसार योगी सरकार द्वारा रासुका का ग़लत इस्तेमाल किया जा रहा है। लोगों को जमानत देने से रोकने और आरोपियों को कानूनी प्रक्रिया से वंचित रखने के लिए रासुका का दुरुपयोग किया जा रहा है। हाईकोर्ट ने कुछ मामलों में यहां तक कहा हैं कि प्रशासन द्वारा रासुका की कार्रवाई करते वक्त दिमाग का इस्तेमाल नहीं किया है।