Afroz Alam Sahil, TwoCircles.net
देश के सरकारी नौकरियों में अल्पसंख्यकों का रिप्रेज़ेन्टेशन दिनों-दिन घटता जा रहा है. इसकी वजहों को जानने के लिए यदि तह तक जाएं तो कई चौंकाने वाले तथ्य सामने आएंगे.
मसलन केन्द्र सरकार की ‘नई उड़ान’ योजना जो संघ लोक सेवा आयोग, कर्मचारी चयन आयोग, राज्य लोक सेवा आयोगों इत्यादि द्वारा आयोजित प्रारंभिक परीक्षाओं को उतीर्ण करने वाले अल्पसंख्यक छात्रों को वित्तीय सहायता पहुंचाने का दावा करती है. मगर इस दावे की हक़ीक़त यह है कि अल्पसंख्यक तबक़े से ताल्लुक़ रखने वाले छात्र प्रतियोगी परीक्षाओं का सपना पाले हुए बेरोज़गारी के रास्ते पर चलने को मजबूर हो रहे हैं और न कोई देखने वाला है और न कोई सुनने वाला…
TwoCircles.net को अल्पसंख्यक मंत्रालय से हासिल महत्वपूर्ण दस्तावेज़ बताते हैं कि इस ‘नई उड़ान’ (Support for students clearing Prelims conducted by UPSC, SSC, State Public Services Commission etc) योजना की शुरूआत साल 2012 में किया गया.
साल 2012-13 में इस योजना के लिए 4 करोड़ का बजट रखा गया, लेकिन इसके नाम पर महज़ 2 लाख रूपये रिलीज़ किया गया और यह दो लाख रूपये भी खर्च नहीं किया जा सका. साल 2013-14 में इस महत्वपूर्ण योजना का बजट घटाकर 3 करोड़ कर दिया गया. लेकिन रिलीज़ 1.96 करोड़ रूपये ही किया गया और इस रिलीज़ पैसे में 1.95 करोड़ खर्च हुआ.
साल 2014-15 में इस योजना पर सरकार ने थोड़ा ध्यान दिया. इस साल फिर से इसका बजट 4 करोड़ रूपये थे. रिलीज़ 2.50 करोड़ रूपये किया गया और खर्च 2.96 करोड़ हुआ. साल 2015-16 में भी इस योजना के लिए 4 करोड़ का बजट तय किया गया. लेकिन अब कितना पैसा खर्च हुआ है, अभी इसकी जानकारी अल्पसंख्यक मंत्रालय को भी नहीं है.
स्पष्ट रहे कि इस योजना के तहत हर साल उन 800 छात्रों को आर्थिक सहायता दी जाती है, जो संघ लोक सेवा आयोग, कर्मचारी चयन आयोग, राज्य लोक सेवा आयोगों इत्यादि द्वारा आयोजित प्रारंभिक परीक्षाओं को पास कर लेते हैं.
इस योजना का लाभ उन्हीं छात्रों को मिलता है, जिनका सभी स्त्रोतों से कुल पारिवारिक आय 4.5 लाख प्रतिवर्ष से अधिक न हो. यह आर्थिक सहायता सिर्फ़ एक साल के लिए ही दी जाती है.
मंत्रालय ने 2001 के जनगणना के आधार पर 800 अल्पसंख्यक छात्रों को बांटकर अलग-अलग धर्म के छात्रों की संख्या पहले से ही तय कर दी है. साथ ही यह भी कहा है कि यह संख्या 2011 के धार्मिक जनगणना आने तक जारी रहेगी. मंत्रालय के मुताबिक़ इस योजना का लाभ 568 मुस्लिम छात्रों को मिलेगा. इसके अलावा 96 ईसाई, 80 सिक्ख, 32 बौद्ध, 17 जैन और 07 पारसी समुदाय के छात्र इस योजना का लाभ हासिल करेंगे.
लेकिन छात्रों की सूची में सिर्फ़ नामों को देखकर ही यह सच्चाई सामने आ जाता है कि अल्पसंख्यक मंत्रालय अपने खुद के द्वारा तय किए गए इस संख्या संबंधित नियम पर कोई खास ध्यान नहीं दे रही है.
ख़ैर, ज़रा सोचिए! इस योजना का यह चार करोड़ रुपये खर्च हो जाते तो हो सकता था कि कुछ अल्पसंख्यक छात्र खास तौप पर गरीब मुसलमान छात्र इस आर्थिक सहायता के कारण सिविल सेवा परीक्षा पास कर पाते. लेकिन कभी आपने किसी रहनुमा से इस स्कीम का ज़िक्र सुना. क्या कभी किसी अल्पसंख्यक नेता ने यह बयान दिया कि इस योजना पर जो बजट आवंटित किया जाता है, सरकार वो खर्च क्यों नहीं कर रही है? शायद नहीं !
सच तो यह है कि सरकार की बात कौन कहे, मुस्लिम परस्त होने का दावा करने वाले नेताओं को भी शायद यह पसंद नहीं है कि मुस्लिम बच्चे सरकारी नौकरी करें, क्योंकि यदि गरीब मुसलमान के बच्चे नौकरी पा गए तो फिर इन नेताओं के फूहड़ भाषणों पर ताली कौन बजाएगा?
तब ही तो मुस्लिम कल्याण के उनके नारे सभा-स्थलों में हवा हो जाते हैं और मुसलमानों के हाथ आती ही सिर्फ मायूसी और बेबसी…
अब आज़म खां, गुलाम नबी आज़ाद, जावेद अख़्तर या असदउद्दीन ओवैसी जैसे नेता से इस बारे में सवाल मत कर लेना. वरना उनकी आंखे लाल हो जाएंगी और वे वही आडंबर करने लगेंगे जो संसद में करते हैं. इनके लिए ‘भारत माता की जय’ का कहा जाना या न कहा जाना तो मु्द्दा है, लेकिन मुस्लिम छात्रों के लिए फंड आवंटित व रिलीज़ होकर भी खर्च न होना शायद कभी मुद्दा न हो.
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