दौड़ने से पहले ही पंक्चर हो गई अल्पसंख्यक मंत्रालय की ‘साइकिल’ योजना

Afroz Alam Sahil, TwoCircles.net

अल्पसंख्यक तबक़े से ताल्लुक़ रखने वाली लड़कियों पढ़ाई-लिखाई में प्रोत्साहन देने के मक़सद से शुरू की गई केन्द्र सरकार की ‘साइकिल योजना’ अपने शुरूआत के पहले ही साल पूरी तरह से फ्लॉप हो चुकी है.


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आलम यह है कि आप किसी भी गांव, तहसील, शहर या ज़िले में पढ़ाई कर रही किसी भी छात्रा से इस बाबत कुछ पूछ लें तो उसे इस योजना की हवा तक नहीं है. और हो भी कैसे, क्योंकि योजना का बजट बस कागज़ों पर आया और चला गया. लेकिन मंत्रालय की ये ‘साइकिल’ कहीं दौड़ती हुई नज़र नहीं आ सकी.

स्पष्ट रहे कि केन्द्र सरकार ने नौवीं क्लास में पढ़ने वाली अल्पसंख्यक तबक़े से संबंध रखने वाली लड़कियों के लिए यह योजना साल 2012-13 में शुरू किया गया था. इस योजना का असल मक़सद यह था कि उन गरीब अल्पसंख्यक छात्राओं को मदद की जाए जो सिर्फ़ स्कूल दूर होने की वजह से पढ़ाई छोड़ देती हैं.

दरअसल, अल्पसंख्यक छात्राएं खासतौर मुस्लिम छात्राएं आठवीं कक्षा के बाद महज़ इसलिए पढ़ाई छोड़ देती हैं, क्योंकि उनका स्कूल दूर है या फिर वहां तक आने-जाने के लिए उनके पास पर्याप्त संसाधन नहीं हैं.

TwoCircles.net के पास मौजूद दस्तावेज़ बताते हैं कि अल्पसंख्यक कार्य मंत्रालय का यह महत्वपूर्ण योजना सिर्फ़ कागज़ों पर बनी और वहीं समाप्त हो गई. यानी केन्द्र सरकार की साइकिल की ये सौगात महज़ एक लोकलुभावन घोषणा से अधिक कुछ भी रहा.

आंकड़े बताते हैं कि नौवीं कक्षा की लड़कियों के लिए फ्री साइकिल योजना (scheme of Free Cycles to girl students of class IX) के लिए साल 2012-13 में केन्द्र सरकार ने सिर्फ 5 करोड़ का बजट रखा था, जिसमें से चार लाख रुपया रिलीज़ भी कियी गया लेकिन इस चार लाख में से भी एक भी पैसा मंत्रालय द्वारा खर्च नहीं किया गया. उसके अगले साल भी इस योजना पर कोई फंड आवंटित नहीं हुआ.

सच तो यह है कि तालीम के मामले में अल्पसंख्यक छात्राओं की हालत दिन प्रतिदिन बदतर होती जा रही है, लेकिन उनकी बेहतरी के नाम पर खर्च किया जा रहा अच्छा-खासा फंड सरकारी लाल फीताशाही के आगे दम तोड़ रहा है. जबकि मुस्लिमों की सामाजिक, आर्थिक और शैक्षिक स्थिति पर सच्चर कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में लड़कियों की स्थिति को लड़कों से भी बदतर बताया था. बीच में पढ़ाई छोड़ने के मामलों में मुस्लिम लड़कियों की स्थिति और भी ख़राब है. ऐसे में ‘सबका साथ –सबका विकास’ का दावा करने वाली मोदी सरकार से यह उम्मीद जगी थी कि वो इस योजना को आगे बढ़ाएगी, लेकिन इस सरकार ने भी इस योजना पर कोई ध्यान नहीं दिया.

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