Afroz Alam Sahil, TwoCircles.net
भारत और विश्व में पारसियों एवं ज़ोरोएस्ट्रियनिज़्म के योगदान का यशोगान के तहत ‘दि एवरलास्टिंग फ्लेम अंतर्राष्ट्रीय कार्यक्रम’ शनिवार को आरंभ हो चुका है.
19 मार्च से लेकर 27 मार्च, 2016 तक चलने वाले इस ‘द एवरलास्टिंग फ्लेम इंटरनेशनल कार्यक्रम’ में तीन प्रकार की प्रदर्शनियों का आयोजन किया गया है, जो विश्व भर में फैली पारसी संस्कृति की शुरूआत और भारत, ब्रिटेन, ईरान, रूस, उज्बेकिस्तान और अन्य प्राइवेट डोनर्स से ऐतिहासिक, कलात्मक तथा सभ्यता संबंधी वस्तुओं के माध्यम से समुदायों के बीच परंपराओं की निरंतरता का बयान करेंगी.
यह कार्यक्रम अल्पसंख्यक मंत्रालय की ‘हमारी धरोहर’ स्कीम के अंतर्गत संस्कृति मंत्रालय और परजोर फाउंडेशन के साथ मिलकर आयोजित किया गया है.
बताते चलें कि मुल्क में तमाम अल्पसंख्यकों की समृद्ध संस्कृति और विरासत को बचाने के मक़सद के तहत मोदी सरकार ने ‘हमारी धरोहर’ स्कीम की शुरूआत साल 2014-15 में की. यानी यह स्कीम अल्पसंख्यक पहचान की सलामती मुक़र्रर करने के ख़ातिर चलाई जा रही है. इस योजना का उद्देश्य पुराने दस्तावेज़ों, खत्ताती, अनुसंधान और विकास को समर्थन देना भी है. फिलहाल इस स्कीम के तहत सबसे पहली प्राथमिकता पारसी समुदाय को दी गई है.
‘हमारी धरोहर’ स्कीम को लेकर सरकार कई बड़े दावे हैं. अल्पसंख्यक मंत्रालय के मुताबिक़ ‘द एवरलास्टिंग फ्लेम इंटरनेशनल कार्यक्रम’ के अलावा उसने दायरतुल मारिफुल उस्मानिया, उस्मानिया विश्वविद्यालय तेलंगाना के संबंध में एक परियोजना को मंजूरी दी है, जिसके तहत दस्तावेज़ों का अरबी से अंग्रेजी में अनुवाद किया जाएगा. इसमें औषधि, गणित, साहित्य आदि से संबंधित मुग़लकाल के 240 मूल्यवान दस्तावेज़ों को दोबारा प्रकाशित करना और उनका डिजीटलीकरण शामिल है. लेकिन हक़ीक़त यह है कि यह प्रोजेक्ट फिलहाल सिर्फ़ कागज़ों पर है.
अल्पसंख्यक मंत्रालय से हासिल दस्तावेज़ बताते हैं इस ‘हमारी धरोहर’ स्कीम के तहत साल 2014-15 में 5 करोड़ का बजट आवंटित किया गया और 5 करोड़ में से 4.99 करोड़ रूपये खर्च कर दिया गया.
साल 2015-16 में इस स्कीम का बजट दोगुना करके 10.01 करोड़ कर दिया गया,लेकिन जून 2015 तक मौजूद दस्तावेज़ बताते हैं कि इस स्कीम के तहत एक पैसा भी खर्च नहीं किया गया है, ये अलग बात है कि शायद ये सारे फंड 19 मार्च से लेकर 27 मार्च, 2016 तक चलने वाले इस ‘द एवरलास्टिंग फ्लेम इंटरनेशनल कार्यक्रम’ में ज़रूर खर्च हो जाएंगे.
आने वाले नए वित्तीय साल में भी सरकार इस योजना को लेकर काफी सजग नज़र आ रही है. इस स्कीम के लिए साल 2016-17 में 11 करोड़ का बजट आवंटित किया गया है.
बहरहाल, सरकार द्वारा पारसी समुदाय से जुड़ी धरोहरों को संरक्षित करने की पहल सराहना के क़ाबिल है. इससे अल्पसंख्यक तबक़े में न सिर्फ़ भरोसा बढ़ेगा, बल्कि उनकी सहेजी गई धरोहरें आने वाली पीढ़ी को रास्ता भी दिखाएगी. लेकिन यह भी ज़रूरी है कि सरकार ऐसी ही पहल सभी अल्पसंख्यक तबक़ों के लिए करे ताकि ‘सबका साथ –सबका विकास’ के दावे को सही अर्थों में ज़मीन पर उतारा जा सके.
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