Home हिन्दी यूपीकोका : वंचित समाज पर संगठित हमले की साज़िश में योगी सरकार

यूपीकोका : वंचित समाज पर संगठित हमले की साज़िश में योगी सरकार

TwoCircles.net News Desk

लखनऊ : संगठित अपराध, माफ़िया और आतंकवाद के ख़िलाफ सख्त कार्रवाई के लिए यूपी के योगी सरकार ने महाराष्ट्र की तर्ज पर यूपीकोका (यूपी कंट्रोल ऑफ़ ऑर्गेनाइज्ड क्राइम ऐक्ट) लाने की तैयारी पूरी कर ली है. विधानसभा के शीत सत्र में यूपीकोका पर विधेयक लाने की तैयारी है. 12 दिसंबर को होने वाली कैबिनेट बैठक में इसका प्रस्ताव आएगा.

इस क़ानून के तहत तीन साल से लेकर उम्रकैद व फांसी की सज़ा और पांच लाख से 25 लाख तक जुर्माने का प्रावधान करने की तैयारी है. बताया जा रहा है कि इस क़ानून के जरिए अपराधियों और नेताओं के नेक्सस पर भी लगाम कसी जाएगी. पुलिस और स्पेशल फोर्स को स्पेशल पावर दी जाएंगी.

लेकिन योगी सरकार द्वारा यूपीकोका लाने पर प्रतिक्रिया देते हुए रिहाई मंच अध्यक्ष एडवोकेट मुहम्मद शुऐब ने कहा कि इस तरह के क़ानून पुलिस को खुली छूट देकर निरंकुश बना देते हैं, जिससे आम नागरिकों के मौलिक अधिकारों का हनन होता है.

वो कहते हैं कि, साक्ष्य के क़ानून में पुलिस के समक्ष दिया गया किसी भी अभियुक्त का बयान महत्वहीन होता है तथा उसे न्यायालय साक्ष्य के तौर पर स्वीकार नहीं करता. लेकिन कन्ट्रोल आॅफ आर्गनाइज क्राइम वह चाहे किसी भी प्रदेश का हो, पुलिस अधिकारियों को यह अधिकार देता है कि वह अभियुक्त का बयान जिस तरह चाहें दर्ज कर लें, न्यायालय उसे स्वीकार करेगा.

एडवोकेट शुऐब के मुताबिक़, यह क़ानून पुलिस को मनमाने तरीक़े से अभियुक्तों को प्रताड़ित करने का भी पूरा अधिकार देता है. यह किसी से छुपा नहीं है कि स्वीकारोक्ति के लिए पुलिस अधिकारी अभियुक्तों के साथ थर्ड डिग्री टार्चर का इस्तेमाल करते हैं. यह क़ानून पुलिस अधिकारियों को पूरी तरह से निरंकुश बना देगा और उनके द्वारा थर्ड डिग्री टार्चर के विरुद्ध किसी तरह की कार्रवाई नहीं की जा सकेगी.

वो कहते हैं कि, प्रचारित किया जा रहा है कि इस क़ानून का इस्तेमाल भू-खनन माफियाओं के ख़िलाफ़ किया जाएगा, जबकि ऐसे अपराधियों को राजनीतिक संरक्षण प्राप्त होता है और हर सत्ता के साथ उसका व्यवसायिक गठजोड़ हो जाता है. अब तक आतंकवाद के मामले में जितने भी मुक़दमे क़ायम किए गए हैं, किसी में भी पुलिस द्वारा साक्ष्य नहीं जुटाया जा सका है. इस क़ानून से पुलिस को विवेचना के लिए मेहनत नहीं करनी होगी और वह स्वीकारोक्ति के आधार पर बेगुनाहों को सज़ा दिलाने में सफल होगी.

एडवोकेट मुहम्मद शुऐब कहते हैं कि, इस तरह के काले क़ानून वंचित समाज पर राज्य द्वारा संगठित हमले की साज़िश है, जिसके चलते आदिवासी समाज को नक्सलवाद-माओवाद के नाम पर जेल में ठूंसा जाएगा तो वहीं मुसलमान को आतंकवाद के नाम पर.

मंच अध्यक्ष ने जागरुक नागरिकों से अपील की है कि इस तरह के काले क़ानूनों का विरोध संगठित होकर किया जाए ताकि वचिंत समाज का उत्पीड़न रोका जा सके.