गौ-सेवा के लिए बने मुस्लिम गो-रक्षक दल भी हैं गो-रक्षकों के आतंक का शिकार

अफ़रोज़ आलम साहिल, TwoCircles.net


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रांची : कभी झारखंड के मुसलमानों ने गाय की रक्षा के ख़ातिर ‘मुस्लिम गो-रक्षक दल’ बनाई थी. लेकिन यहां बजरंग दल आदि द्वारा बनाए गए तथाकथित गो-रक्षक दलों की लूटपाट व मारपीट को देखकर ‘मुस्लिम गो-रक्षक दल’ के लोगों ने अपने क़दम पीछे खींच लिए हैं.

रांची में ‘भारतीय मुस्लिम गो-रक्षा दल’ से जुड़े क़मर सादीपुरी बताते हैं कि, जब हमारे हिन्दू भाई गाय के प्रति इतनी श्रद्धा रखते हैं, तो हमारा भी दायित्व है कि उसका सम्मान किया जाए. साथ ही इसके नाम से मुल्क की गंगा-जमुनी तहज़ीब को नुक़सान पहुंचाने वाली शक्तियों पर लगाम लगे. लेकिन यहां तो ये शक्तियां जान लेने पर तुली हुई हैं. अब हम गाय बचाए या अपनी जान?

वो बताते हैं कि, हम तो शहर की सड़कों व गलियों में इधर-उधर भटकती गायों की सेवा करना चाहते थे. गायों को फूल-माला पहनाकर उन्हें खाना-पानी देते थे. हमारे इस काम की तारीफ़ कामधेनु गुरुकुल पीठम गो अनुसंधान केंद्र, बनवासी सेवा आश्रम और सप्तऋषि वसुंधरा भारती ट्रस्ट के संचालक गोभक्त सुरेंद्र भारती महाराज ने भी की थी. उन्होंने कहा था कि वे दल को हर प्रकार का सहयोग करने को तैयार हैं. लेकिन अब तो लगता है कि तथाकथित गो-रक्षकों के आतंक से सारे सच्चे गोभक्त खुद ही डरे हुए हैं.

‘भारतीय मुस्लिम गो-रक्षा दल’ के प्रमुख आज़म अहमद TwoCircles.net के साथ ख़ास बातचीत में बताते हैं कि, हम इस दल के माध्यम से चाहते थे कि किसानों से कमज़ोर व बूढ़े हो चुके जानवरों को लेकर सरकार को दें, क्योंकि ये गरीब किसानों के ये जानवर किसी काम के नहीं हैं और वो इन्हें बेच भी नहीं सकते हैं.

आज़म आगे बताते हैं कि, हमने क़रीब 700-800 जानवरों को खरीदा. लेकिन जब देखा कि स्थिति नाजुक बनती जा रही है, तो हमने सबको उनके जानवर वापस कर दिए. क्या पता कहीं हमें भी गो-हत्यारा समझ कर मार दिया जाए, जिस तरह हर जगह मुसलमानों, आदिवासियों व दलितों को मारा जा रहा है.

आज़म का कहना है कि, चूहे की भी रक्षा होनी चाहिए. ये भगवान गणेश की सवारी है. कितने अफ़सोस की बात है कि उसे मारने के लिए बाज़ार में खुलेआम ज़हर बेची जा रही है. ये कहां का इंसाफ़ है.

जमशेदपुर में अनवार बताते हैं कि, पूरे झारखंड में आप देख लीजिए तो आपको हर ग्रामीण मेले व हाट में गो-वंश के जानवर बिकते हुए मिल जाएंगे. आख़िर ये जानवर कौन बेचता है. अब जब 1958 से यहां गो-मांस प्रतिबंधित है तो मुसलमान या आदिवासी इसे खेती या दूध के लिए ही इस्तेमाल करते हैं. अब जब इन्हें बेचने के धंधे में भी आ गए तो संघी व्यापारियों ने इन्हें मारना शुरू कर दिया ताकि उनका बिजनेस ख़राब न हो. आप देख लीजिए, झारखंड में गाय के नाम पर ज़्यादातर मौतों में व्यापार ही मूल कहानी है.

वो आगे बताते हैं कि, ये तथाकथित गो-रक्षक गरीब किसानों, मुसलमानों व आदिवासियों से उनके महंगे जानवर लूटते हैं और फिर उन्हें खुद ही बेचने का काम करते हैं. सोचने की बात है कि झारखंड में गाय के नाम पर सैकड़ों घटनाएं घटी, लेकिन सब में जानवर गायब है. आखिर ये जानवर गए कहां? 

जमशेदपुर में ऑल इंडिया माइनॉरिटी सोशल वेलफेयर फ्रंट के राष्ट्रीय महासचिव बाबर खान का भी मानना है कि गो-रक्षा के नाम पर गुंडागर्दी अब बंद होनी चाहिए. गो-हत्या पर क़ानूनन प्रतिबंध है, तो सरकारी महकमा उसका पालन कराए.

उनका कहना है कि, दूध के लिए कोई गाय ले जाता है, तो उसके साथ भी मारपीट होती है. गो-हत्या प्रतिबंध अधिनियम को लागू कराना है, तो हाट में गाय की बिक्री पर रोक लगानी चाहिए. न कोई खरीदेगा, न कोई कहीं ले जा सकेगा. क्योंकि गो-रक्षा दल के कुछ लोग गाय खरीदने वालों पर नज़र रखते हैं. जब लोग गाय लेकर जाते हैं, तो उनके साथ मारपीट कर पैसे छीन लेते हैं.

बता दें कि रांची व जमशेदपुर सहित झारखंड के कई शहरों में ‘मुस्लिम गो-रक्षक दल’ बनाए गए थे. इस दल का मक़सद राष्ट्रीय एकता था. साथ ही यह भी नियम बनाया गया था कि अगर कोई घर में रखकर गाय की सेवा करना चाहता है तो रक्षा की लिखित गारंटी लेकर उसे गाय सौंप दी जाएगी या फिर ऐसी गायों को गोशाला के सुपुर्द कर दिया जाएगा. दल के कार्यकर्ता गो-रक्षा के लिए जन-अभियान भी चला रहे थे. लेकिन हत्याओं के बढ़ते सिलसिला के कारण अब इस काम पर विराम लग चुका है. 

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