मुसलमान के बाद अब आदिवासी भी गो-रक्षकों का शिकार

अफ़रोज़ आलम साहिल, TwoCircles.net


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रांची : गाय के नाम पर अब तक मुसलमानों व दलितों के साथ ही मारपीट होती रही है, लेकिन अब झारखंड के आदिवासी भी गोरक्षकों के शिकार बनने लगे हैं.

रांची से क़रीब 40 किलोमीटर दूर ज़िले के नारो गांव में एक आदिवासी अलमा खलको की कहानी काफ़ी दुखद है. यहां बजरंग दल के कार्यकर्ताओं ने खलको पर घर में गाय का गोश्त बेचने के आरोप में बुरी तरह पीट दिया जबकि अलमा खलको मज़दूर हैं और सीपीआई (माले) से जुड़ी हैं.

TwoCircles.net के साथ बातचीत में अलमा खलको बताती हैं कि क्योंकि मैं मज़दूरों को जागरूक कर रही हूं. ये बात गांव के कुछ बड़े लोगों को अच्छी नहीं लगी. मुझे तरह-तरह से धमकी दी जाने लगी.

वो आगे बताती हैं, ‘इसी साल 24 अगस्त को गांव में बजरंग दल के लोगों ने मेरे घर को घेर लिया. मेरे पति के साथ मारपीट की और मुझे जान से मारने की धमकी दी. उन्होंने मुझ पर झूठा आरोप लगाया कि मैं गाय का गोश्त बेचती हूं. जब मैंने इस संबंध में पुलिस थाना में शिकायत की तो थानेदार ने उल्टा मेरे ही ऊपर चढ़ाई कर दी.’

8 दिसंबर को जब अलमा खलको की पिटाई की गई तो शिकायत के बावजूद पुलिस की ओर से कोई कार्रवाई नहीं की गई.

अलमा का आरोप है कि दरअसल, बजरंग दल के लोग चाहते हैं कि हम मज़दूर गांव छोड़ दें ताकि वो हम आदिवासियों की ज़मीनों पर क़ब्ज़ा कर सकें.

बता दें कि नारो वही गांव है, जहां साल 2015 के नवम्बर महीने में सईद अंसारी (48 वर्ष) नाम के एक शख़्स को गोली मारकर उसके पास से 8.75 लाख रुपये की लूट ली गई थी.

अलमा खलको की दास्तान झारखंड में कोई पहली कहानी नहीं है. इससे पहले झारखंड के गढ़वा ज़िले में बरकोल गांव में भी दर्जनों आदिवासियों की पिटाई की गई. इसी घटना में 40 साल के रमेश मिंज की मौत भी हुई है. ये मामला यहां के भंडरिया थाना में दर्ज है. ये घटना 19 अगस्त की रात की है.

इस घटना पर क़रीब से नज़र रखने वाले रांची में नेशनल कैम्पेन ऑन दलित ह्यूमन राईट से जुड़े सुनील मिंज बताते हैं, गांव के ही एक व्यक्ति ने एक हज़ार रूपये में अपने बूढ़े बैल को गांव के ईसाई आदिवासी को बेचा. बेचने वाले अच्छी तरह से जानते थे कि ईसाई आदिवासी बूढ़े जानवरों को ख़रीद कर उसके साथ क्या करते हैं. मगर जब आदिवासी ने बैल को मार दिया, तब ग्रामीणों ने गांव में बसे 6 आदिवासी परिवारों पर हमला कर दिया. महिला-पुरुष के साथ मारपीट की गई. 8-10 साल की बच्चियों को भी नहीं बख़्शा गया. इसी बीच ग्रामीणों ने बग़ल के गांव के रमेश मिंज को भी अपने क़ब्ज़े में कर लिया. उन्हें खूब मारा. वह मोटरसाईकिल से मांस लेकर अपने गांव लौट रहे थे.

इन असामाजिक तत्वों ने न सिर्फ़ इन आदिवासियों की पिटाई की, बल्कि उसी हालत में 10 ईसाई आदिवासी पुरुषों को पुलिस पिकेट को सौंप दिया. जबकि उनमें से कई चलने लायक़ भी नहीं बचे थे. हैरानी की बात यह है कि पुलिस ने बैल का पूंछ लाकर उनका फोटो खिंचवाया और उन्हें सभी को जेल भेज दिया. पुलिस ने जेल भेजने से पहले उनका इलाज भी नहीं कराया. जिस कारण रमेश मिंज की मौत हो गई.

गांव के बाक़ी घायल आदिवासी

बताते चलें कि रमेश मिंज की मौत के बाद पुलिस ने उनकी पत्नी के बयान पर अज्ञात लोगों के ख़िलाफ़ प्राथमिकी दर्ज की. साथ ही प्रशासन ने रमेश मिंज की पत्नी को 20 हज़ार रुपये का चेक, पांच हज़ार रुपया नगद व 35 किलो राशन बतौर मुआवज़ा दिया. साथ ही रमेश मिंज की पत्नी को विधवा पेंशन देने का आश्वासन दिया है.

लेकिन TwoCircles.net के साथ बातचीत में रमेश मिंज की पत्नी अनीता मिंज बताती हैं, ‘सरकार ने जितने वादे किए, उनमें से कोई भी पूरा नहीं हुआ है. पुलिस अपराधियों को बचाने का काम कर रही है.’

वो आगे कहती हैं, पुलिस दिखावे के लिए तो इस मामले में 9 लोगों को गिरफ़्तार किया है, लेकिन जिन्होंने इस घटना को अंजाम दिया है वो खुलेआम घूम रहे हैं. पुलिस उनका कुछ बिगाड़ नहीं पा रही है. आख़िर उनका संबंध मोदी के पार्टी से जो है. 

रमेश मिंज की पत्नी अनीता मिंज

रमेश मिंज के पैर व गर्दन की हड्डी टूट चुकी थी

रमेश मिंज की पत्नी अनीता मिंज अभी भी सदमे में हैं. घटना वाले दिन को याद करते हुए बताती हैं कि, घटना से एक दिन पहले रमेश मिंज छतीसगढ़ गए थे. घटना के दिन अपने घर लौटे. सुबह में वो हमसे 200 रुपये लेकर कोच्ली गए, खेत में खाद डालने. इसके बाद हम भी दातून लाने के लिए जंगल चले गए. शाम में जब मैं घर लौटी तब तक वो वापस नहीं लौटे थे. हमें लगा कि शायद मेरे मयका में रूक गए होंगे. अगले दिन हमें सूचना मिली कि उन्हें गांव के कुछ लोगों ने पीटा है. लोगों ने बताया कि वह प्रतिबंधित मांस लेकर आ रहे थे. तब हमलोग भागे-भागे थाना पहुंचे. उनको थाने में खाना खिलाया. वह सिर्फ़ एक रोटी ही खा पाए. उस वक़्त उनके पैर से खून निकल रहा था. उन्होंने खुद बताया कि उनका पैर टूट गया है. हाथ की अंगूली और गर्दन भी टूटा हुआ है. फिर पुलिस उन्हें गढ़वा ले गई. 22 अगस्त को पुलिस ने ख़बर भेजा कि गढ़वा चले आएं, आपके पति को सेवा की ज़रूरत है. जब हम वहां गए तो हमें वहां उनकी लाश मिली.

गौरतलब है कि इस परिवार में सिर्फ़ रमेश मिंज ही कमाने वाले थे. उनकी मौत के बाद उनकी बेटी सुप्रिया मिंज (16 साल), बेटा रूपेश मिंज (12 साल), बेटी नेहा मिंज (10 साल), बेटा रविकांत मिंज (03 साल) के सामने खाने-पीने की समस्या उत्पन्न हो गई है. घर में अनीता मिंज के अलावा कोई नहीं है.

अनीता मिंज कहती हैं कि अब हम बच्चों को कैसे पालेंगे. फिर वो रो पड़ती हैं. उनका आरोप है कि रमेश मिंज का मोबाईल तो मिल गया है, लेकिन मोबाईल में लगा सिम व मेमोरी कार्ड अब तक वापस नहीं मिला है. सरकार व प्रशासन हम गरीबों की सुनती कहां है. वो उनकी ही सुनती है, जो उन्हें पैसा खिलाते हैं…

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