सपा छोड़ अब कांग्रेस के पाले में खड़े हो गए शाहनवाज़ राणा

आस मोहम्मद कैफ, TwoCircles.net

मीरापुर/मुज़फ्फरनगर : 2004 में 25 साल की उम्र मे धमाकेदार राजनीतिक करियर का आगाज करने वाले मुज़फ्फरनगर के कद्दावर मुस्लिम घराने के शाहनवाज़ राणा अब कांग्रेस मे आ गए हैं. उनको समाजवादी पार्टी ने मीरापुर विधानसभा से अपना प्रत्याशी घोषित किया था, मुलायम सिंह यादव ने अपने प्रत्याशियों की सूची में उनके नाम का मीरापुर से चुनाव किया था, जिस पर मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने कोई ऐतराज़ नहीं किया था.


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अब गठबंधन की चर्चा होने पर मीरापुर सीट के कांग्रेस के पाले में जाने की संभावना देखते हुए हालात को भांपकर शाहनवाज़ राणा कांग्रेस में दाखिल हो गए हैं. मुज़फ्फरनगर जनपद की मीरापुर विधानसभा में सिर्फ मुसलमानों की आबादी एक लाख 15 हजार है.

यहां बसपा ने पूर्व सांसद अमीर आलम के विधायक पुत्र नवाज़िश आलम को अपना प्रत्याशी बनाया है. नवाज़िश आलम सपा के टिकट पर बुढ़ाना से विधायक चुने गए थे मगर दंगों में अखिलेश यादव उनके पिता की कथित भूमिका से नाराज़ हो गए और उनकी अनदेखी की जाने लगी. फिर वे बसपा मे चले गए, जहां उन्हें मीरापुर से बसपा ने अपना प्रत्याशी बना दिया. समाजवादी पार्टी ने पहले यहां इलियास कुरैशी को लड़ाने की हामी भरी थी मगर वो नवाज़िश आलम के सामने अपेक्षाकृत कमजोर प्रत्याशी थे. बाद में शाहनवाज़ राणा को शिवपाल सिंह यादव ने हरी झण्डी दिखा दी. शाहनवाज़ राणा की आमद से मीरापुर सीट पर रोचक हालात बन गए और किसी एक की भी जीत की स्पष्ट संभावना खत्म हो गयी.

समाजवादी पार्टी में बड़े पैमाने पर हुए बदलाव के बाद शाहनवाज़ राणा के टिकट कटने की संभावना बढ़ गयी. ऐसा इसलिए क्योंकि वे पवन पाण्डेय द्वारा एमएलसी आशु मालिक को थप्पड़ मारने के बाद आशु मालिक खेमे में खड़े हो गए थे. अखिलेश खेमे में उन्हें नापसंद करने वाले लोग ज़्यादा हैं.

मीरापुर सीट पर इस समय बसपा के मौलाना जमील विधायक हैं. सपा का इतिहास इस सीट पर अच्छा नहीं रहा है. पिछली बार यहां सपा ने मेराजुदीन तेवड़ा को प्रत्याशी बनाया था, जिन्हें 20 हजार वोट मिले थे. अब मेराजुद्दीन हत्या के एक पुराने मामले में जेल में बंद है.

शाहनवाज़ राणा पश्चिमी उत्तर प्रदेश की मुस्लिम सियासत में एक चर्चित चेहरा हैं. 2004 में 25 साल की उम्र में उन्होंने रालोद की महासचिव अनुराधा चौधरी के सामने कैराना लोकसभा से जोरदार आमद दर्ज़ करायी और 2 लाख 88 वोट लेकर सबको चौंका दिया. इसके बाद 2005 में शाहनवाज़ बार काउंसिल के उपाध्यक्ष बने और 2007 में उन्होंने बिजनौर से बसपा के टिकट पर विधानसभा चुनाव में भाजपा के कुंवर भारतेंदु सिंह को जोरदार पटखनी दे दी, मगर 2012 में वो कुंवर भारतेंदु सिंह से ही हार गए.

मगर इस दौरान उन्होंने मुज़फ्फरनगर जिला पंचायत चुनाव मे अध्यक्ष पद पर अपनी पत्नी इंतखाब राणा को काबिज करा दिया. मुज़फ्फरनगर के इतिहास में पहली बार कोई मुसलमान इस पदवी पर पहुंचा.

2014 में समाजवादी पार्टी ने उन्हें बिजनौर लोकसभा से अपना प्रत्याशी बना दिया, जिसमें 3 लाख से ज्यादा वोट लेकर भी शाहनवाज़ भाजपा के कुंवर भारतेंदु सिंह से हार गए.

शाहनवाज़ राणा मुज़फ्फरनगर के ताक़तवर राणा परिवार से हैं. बसपा ने उनके चाचा क़ादिर राणा की पत्नी सईदा राणा को बुढ़ाना से व दूसरे चाचा नूरसलीम राणा को चरथावल से प्रत्याशी बनाया है. अब इस बात की संभावना हो गयी है कि कांग्रेस उनको मीरापुर से टिकट देगी. शाहनवाज़ राणा पश्चिम उत्तर प्रदेश का एक बडा नाम हैं. उनके चाचा क़ादिर राणा कांग्रेस से एमएलसी रह चुके है और लंबे समय तक कांग्रेस जिलाध्यक्ष भी रहे हैं. शाहनवाज़ राणा के कांग्रेस में आने से मुज़फ्फरनगर व बिजनौर सहित कई जिलों में कांग्रेस को फायदा होगा.

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