शाहनवाज़ नज़ीर, TwoCircles.net के लिए
बीते साल 31 अक्टूबर 2016 को भोपाल सेन्ट्रल जेल में बंद 8 विचाराधीन क़ैदी भोपाल के बाहरी इलाक़े ईंटखेड़ी इलाक़े में एक एनकाउंटर में मार गिराए गए थे. मध्यप्रदेश पुलिस ने इन क़ैदियों की गिरफ़्तारी के वक़्त दावा किया था कि सभी प्रतिबंधित संगठन स्टू़डेंट इस्लामिक मूवमेंट ऑफ इंडिया (सिमी) के सदस्य यानी आतंकवादी हैं. मगर मारे गए सभी क़ैदी विचाराधीन थे. उन पर सिमी का सदस्य होने का आरोप साबित नहीं हो सका था.
मध्यप्रदेश पुलिस का यह एनकाउंटर शुरू से ही विवादों में है. हाई सिक्योरिटी जेल के एक मुख्य प्रहरी रमाशंकर यादव की हत्या, जेल तोड़कर भागने और फिर एक ही जगह पर सभी के एनकाउंटर में ढेर हो जाने की थ्योरी को हर किसी ने सही नहीं माना. इसके बाद कंट्रोल रूम से लीक हुए ऑडियो, वीडियो और सार्वजनिक हुई तस्वीरों ने इसकी प्रमाणिकता को और संदिग्ध बना दिया.
मध्यप्रदेश सरकार पर जब दबाव बढ़ा तो भोपाल जेल ब्रेक और एनकाउंटर समेत कई पहलुओं की जांच के लिए एक रिटायर्ड जज एस.के. पांडेय की अगुवाई में न्यायिक जांच का आयोग बनाया गया. मध्यप्रदेश पुलिस की क्राइम ब्रांच और गांधी नगर पुलिस स्टेशन में दो एफ़आईआर दर्ज की गई. क्राइम ब्रांच और स्थानीय पुलिस की जांच के दायरे में भी प्रहरी रमाकांत यादव की हत्या, जेल तोड़ने और फिर वहां से भाग निकलने की वारदात शामिल है.
इस मुठभेड़ की जांच चल रही है. वहीं दूसरी ओर भोपाल सेंट्रल जेल में बंद अन्य विचाराधीन क़ैदी जेल प्रशासन पर अमानवीय उत्पीड़न का आरोप लगा रहे हैं. क़ैदियों ने वीडियो कांफ्रेंसिंग के ज़रिए हुई अपनी पेशी के दौरान अदालत के सामने भी अपने साथ की जा रही सख़्ती का ब्योरा पेश किया है. जेल में परिजनों से होने वाली मुलाक़ात के दौरान भी कई बार क़ैदियों ने अपने साथ हो रहे दुर्व्यवहार का ज़िक्र किया है. इनका कहना है कि एनकाउंटर के बाद से जेल में उनकी ज़िन्दगी नरक बना दी गई है.
कुछ क़ैदियों का परिवार इसी सवाल को लेकर दिल्ली आकर राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग का दरवाज़ा खटखटा चुका है, जबकि कईयों ने चिट्ठी लिखकर आयोग से मदद मांगी है.
इनकी शिक़ायतों पर कार्रवाई करते हुए आयोग की एक टीम ने जून में भोपाल सेन्ट्रल जेल का दौरा किया था. इस दौरान क़ैदियों, जेल अधिकारियों, इनके परिवारवालों और वक़ीलों के बयान दर्ज कर एक रिपोर्ट भी तैयार की. हालांकि यह रिपोर्ट अभी जारी नहीं की गई है.
इन क़ैदियों के वक़ीलों का आरोप है कि जेल प्रशासन उन्हें उनके मुवक्किलों से मुलाक़ात नहीं करने दे रहा. जेल के अधिकारी कह रहे हैं कि जिस तरह क़ैदियों के परिजन एक शीशे की दीवार के आर-पार बैठकर फोन से बात करते हैं, उसी तरह वकीलों की बातचीत भी हो सकती है.
मगर वक़ीलों की दलील है कि क़ैदी उनके मुवक्किल हैं और अकेले में उनसे बात करके डिफेंस की तैयारी संवैधानिक अधिकार के दायरे में आता है. जेल प्रशासन जेल मैनुअल का उल्लंघन कर रहा है, लेकिन जेल अधिकारी इन वक़ीलों को अकेले में बात-मुलाक़ात की सहूलियत देने से साफ़ मना कर रहे हैं.
2001 में सिमी पर प्रतिबंध की कार्रवाई के बाद उत्तर भारत के अलग-अलग हिस्सों से सिमी के कथित सदस्यों को उठाया गया था. मध्यप्रदेश पुलिस भी तभी से छापेमारी और गिरफ़्तारी की कार्रवाई कर रही रही है, मगर वकीलों की दलील है कि एमपी पुलिस अदालत में सिमी से जुड़ा एक भी आरोप साबित नहीं कर पाई है.
30 अक्टूबर 2017 को भोपाल जेल ब्रेक और एनकाउंटर को एक साल पूरा हो जाएगा. इस मौक़े पर TwoCircles.net एक विशेष सीरीज़ #BhopalEncounter के ज़रिए इस केस में हुई तफ़्तीश और ताज़ा हालात का ब्योरा पेश करने जा रहा है, जिसे आप कल से पढ़ सकते हैं…