आम बजट : महिलाओं व बच्चों को क्यों भूल गई सरकार?

अफ़रोज़ आलम साहिल, TwoCircles.net


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नई दिल्ली: देश में बजट को लेकर लंबी-लंबी बहसे चल रही हैं. लेकिन इस बहस में देश की आधी आबादी पूरी तरह से ग़ायब नज़र आ रही है. बजट कटौती का सबसे अधिक गाज इसी अाधी आबादी के स्कीमों पर पड़ा है.

महिला एवं बाल कल्याण मंत्रालय के प्रस्तावित बजट में इस बार भारी कटौती की गई है. सबसे पहले इस मंत्रालय के सचिवालय का बजट पिछले साल की तुलना में  47.80 करोड़ से 43.62 करोड़ कर दिया गया है.

फूड एंड न्यूट्रीशन बोर्ड का बजट साल 2017-18 में 15.16 करोड़ प्रस्तावित था, लेकिन अब इसे 14 रखा गया है.

नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ पब्लिक को-ऑपेरेशन एंड चाईल्ड डेवलपमेंट का बजट भी पिछले साल के मुक़ाबले 70.08 करोड़ से 59.41 करोड़ कर दिया गया है. वहीं सेन्ट्रल अडॉप्टेशन रिसोर्स एजेंसी का बजट भी 10.50 करोड़ से घटकर 9 करोड़ हो गया है.

इस बार के चुनावी बजट में नेशनल कमीशन फॉर प्रोटेक्शन ऑफ़ चाईल्ड राईट्स और नेशनल कमीशन फॉर वूमेन जैसे महत्वपूर्ण आयोगों का भी ध्यान नहीं रखा गया है.

नेशनल कमीशन फॉर प्रोटेक्शन ऑफ़ चाईल्ड राईट्स का बजट पिछले साल की तुलना में 26.50 करोड़ से घटाकर 18 करोड़ कर दिया गया है. वहीं नेशनल कमीशन फॉर वूमेन का बजट 25.60 करोड़ से 24 करोड़ हो गया है. 

सेन्ट्रल सोशल वेलफेयर बोर्ड का बजट 83.38 से घटकर 71.50 हो गया है. राष्ट्रीय महिला कोष का बजट भी एक करोड़ से घटाकर एक लाख रूपये कर दिया गया है. 

प्रधानमंत्री मातृ वंदना योजना का बजट भी पिछले साल की तुलना में 2594.55 करोड़ से 2400 करोड़ कर दिया गया है.

निर्भया फंड से चलने वाली स्कीमों में कटौती की गई है. पिछले साल की तुलना में 400 करोड़ के प्रस्तावित बजट को इस बार 359.09 करोड़ कर दिया गया है. वहीं Capital Outlay on Social Security and Welfare जैसे महत्वपूर्ण स्कीम का बजट 38.65 करोड़ से  सीधे एक लाख रूपये कर दिया गया है.

इतना नहीं, इस बार महिला एवं बाल कल्याण मंत्रालय के Gender Budgeting  और Research, Publication and Monitoring के लिए कोई भी फंड आवंटित नहीं किया गया है.

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