आस मोहम्मद कैफ, TwoCircles.net
मुजफ्फरनगर: हाल ही में कैराना लोकसभा उप चुनाव में राष्ट्रीय लोक दल की उम्मीदवार तबस्सुम हसन की जीत ने एक उम्मीद की किरन दिखाई हैं. साल 2013 मुज़फ्फरनगर दंगो में अपने घरो से पलायन कर चुके मुसलमान इस उम्मीद में हैं कि इस बार ईद शायद अपने गाँव में मना सके.
मुजफ्फरनगर दंगो में मुसलमानों ने सैकड़ो गाँव छोड़ दिए थे जिनमे से लगभग दो दर्जन गाँवों में अब भी मुसलमान वापस नही गये.यहाँ मस्जिदे वीरान है और ईदगाह सुनसान है. अब यहाँ ईद नही मनाई जाती. लेकिन 4 साल पहले मनाई जाती थी.इन गाँवों में से एक दर्जन से ज्यादा गाँव कैराना लोकसभा में पड़ते है जहाँ हाल ही में जाटो ने एक तरफ़ा वोटिंग करके मुस्लिम प्रत्याशी तब्बसुम हसन को जिताया है.जिससे जाट मुस्लिम रिश्तो में सुधार हुआ है.इसी लोकसभा के गाँव लांक ,बहावडी और लिसाढ़ में बड़े पैमाने पर हिंसा हुई थी इन गाँवों के जाटो ने भी तब्बस्सुम हसन को वोट की है. कैराना के परिणाम ने जाट और मुस्लिमो के बीच रिश्ते बेहतर करने का काम किया है और मुस्लिमो की इन गाँवों में वापस लौटने की संभावना बढ़ गई है.पूर्व राज्यसभा सांसद हरेन्द्र मलिक कहते है “यह हमारी जिम्मेदारी है हम इन्हें उन्ही गाँवों में वापस लेकर जायेंगे उन्ही मस्जिदों में अज़ान होगी एक बार फिर ईद और दीवाली मिलजुलकर बने गी.”
मुजफ्फरनगर दंगो में पीडितो के लिए काम करने वाले पैग़ाम ए इंसानियत नाम की संस्था के अध्यक्ष हाजी आसिफ राही कहते है “मुसलमानों को अब इन गाँवों में वापस चले जाना चाहिए क्यूंकि जाट समाज को सचमुच में पछतावा है उन्हें एहसास है कि जो कुछ हुआ वो नही होना चाहिए था.बीजीपी के नेतागणों ने षड्यंत्र करके अमन चैन को पलीता लगा दिया.पैग़ाम ए इंसानियत ऐसे गाँवों ईद मिलन कार्यक्रम करा रही है.इन मस्जिदों में फिर अज़ान पढ़ी जाये इससे अच्छा है.
जोला गाँव के पूर्व प्रधान जब्बार दंगो के दौरान पीडितो को कुछ गाँवों से बचाकर लाये थे और जोला में ही सबसे बड़ा कैंप लगा था.वो कहते है “दंगा पीड़ित गाँव की मस्जिदे और ईद को कभी नही भूल सकते 2013 में हुए दंगे के बाद केम्प में ईद नही मनाई गई थी हर तरफ मातम था. शीर नही बनी और बच्चो ने नये कपडे नही पहने थे मगर अब हालात बदल गये बल्कि आप यह कहिये की उन गाँवों से बेहतर हो गये है”.
भारतीय किसान मजदुर संघ के अध्यक्ष गुलाम मोहम्मद जोला पिछले कुछ दिनों से जाट मुस्लिम एकता के लिए प्रयास कर रहे थे वो कहते है “ज्यादातर लोग वापस चले गये है कुछ अभी भी बचे है अगर वो गाँव वापस नही जाना चाहते और ईद पर उन्हें गाँव की याद आती है तो वो ईद मनाने गाँव चले जाये करे जिस तरह शहर से लोग अपने घर वापस आते है वैसे असली बात तो दिलो के मेल की है वो दूर होना चाहिए”.
नदीम (18) हाल ही में बारहवी में पास हुआ है.मुजफ्फरनगर दंगो के दौरान वो नवी में था एक साल उसकी पढाई छुट गई और एक साल वो फ़ैल हो गया.नदीम अपने परिवार के साथ अब शाहपुर के पलड़ा गाँव में दंगा पीडितो की कोलानी में रहता है.पांच साल पहले कुटबा गाँव से वो परिवार के साथ जान बचाकर भाग आया था तब वो 13 साल का था. कुटबा कुट्बी मुजफ्फरनगर दंगो में सबसे चर्चित गाँव है .यहाँ सबसे पहले मुसलमानों पर सामूहिक हिंसा की शुरुवात हुई और 8 बेगुनाह मारे गये.केंद्र में मंत्री सत्यपाल सिंह और सांसद संजीव बालियान यहीं के है.
नदीम को गाँव की ईद आज भी याद है.गाँव में ईद की नमाज कुटबा की मस्जिद में पढ़ते थे अब वो वीरान है नदीम बताता है “ईद पर मेरा दोस्त सचिन पूरे दिन मेरे साथ रहता था वो दिन अलग होता था.गाँव के कई जाट लोग हमारे घर आते थे और अम्मी मुझे पड़ोस में शीर बांटने भेजती थी.जाट लड़के पूछते थे नदीम तेरी ईद कब है ! अब उनसे बात नही होती कभी होगी तो जरुर सवाल करूँगा मेरे ईद तुमने छीन ली थी मुझे वापस लौटा दो,मै फिर से वो ईद चाहता हूँ क्यूंकि अब ईद में वो बात नही रही.”
दंगो के बाद कैराना में आकर बस गये मीरहसन (47)कहते है”उन्हें वापस जाने में कोई ऐतराज नही मगर बहुत मुश्किल से नई जगह कारोबार खड़ा किया है वैसे मेरे दिल में अब जाटो से कोई मेल नही मै ईद पर उन्हें अपने घर बुलाने की दावत दूंगा.” हालाँकि मस्जिदों के सवाल पर वो चुप हो जाते है.एक दर्जन से ज्यादा गाँवों में मस्जिदों में ताला लगा है.
शाहपुर की मुनीजा(46)कहती है “जाटों ने वापस गाँव में बुलाने की बहुत कोशिश की है अब भरोसा भी हो गया है पहले भी सब मिलकर ही रहते थे मगर यहाँ मजदूरी अच्छी मिलती है काम अच्छा है और बच्चे बिल्कुल नही जाना चाहते हाँ अगर त्यौहार मनाने गाँव में जाने में कोई बुरी बात नही है ईद पर जाकर ईदगाह पर भी नमाज पढ़ सकते है अभी हमारे घर भी वहीँ है और मस्जिदे भी है अब खतरा तो नही है मगर वक़्त का कुछ पता भी नही चलता.