फ़हमिना हुसैन, TwoCircles.net
कुमार गौरव, रोहतास, बिहार में पिछले लगभग तीन महीने से प्राथमिक विद्यालय, मथुरी जाता है और लौट आता हैं. पढाई के नाम पर उसके पास करने को ज्यादा कुछ नहीं हैं. कारण सिर्फ एक, कुमार के पास कोई किताब नहीं हैं जिससे वो पढाई कर सके. अभी अगले कुछ महीने भी किताब मिलने की कोई उम्मीद नहीं हैं.
कुमार की तरह बिहार में लाखो बच्चे प्राथमिक स्कूलों में ऐसे हैं जिनके पास अभी तक कोई किताब नहीं हैं और उनकी पढाई ठप हैं. वैसे सरकार की तरफ से इन बच्चो को मुफ्त किताब दिए जाने का प्रावधान हैं, लेकिन फिलहाल इन तक कुछ नहीं पहुँचा.
स्कूलों का नया सत्र दो अप्रैल से शुरू हो गया और किताब का अता पता नहीं है. इधर केंद्रीय मंत्री उपेंद्र कुशवाहा ने कुछ सरकारी स्कूलों के बच्चों को अपनी पार्टी रालोसपा के द्वारा इकठ्ठा किए गए चंदे से किताबें बाँटना शुरू कर दी हैं. लोग इस को सियासत कह रहे हैं क्यूंकि अगले साल लोक सभा चुनाव हैं.
पिछले कई वर्षों से लगातार सरकारी स्कूलों में समय पर किताबें नहीं पहुंच सकी है. आधे से अधिक साल किताबों के इंतजार में बीत जाते हैं.
सोचने में ये बड़ी बात लगे. लेकिन बिहार में पिछले कई सत्र से ऐसा ही हो रहा हैं. सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों को अभी तक पाठ्यक्रम की किताब तक नहीं पहुंची है. कभी कागज की कमी के कारण किताब नहीं छपी तो किताब छपने में कभी सत्र ही समाप्त हो गया. हालांकि बाद में बिहार सरकार ने इस समस्या के निदान के लिए ही सरकार ने किताबों को स्वयं ना छाप कर 54 प्रकाशकों को जिम्मेवारी दी और किताब की राशि बच्चों के खाते में डालने का फैसला लिया जिससे बच्चे किताब खरीद लें. ये राशि डायरेक्ट बेनिफिट ट्रान्सफर के तहत बच्चो के खाते में भेजने का फैसला लिया हैं.
लेकिन महीनो बीत जाने के बावजूद अब तक किसी भी स्कूल में बच्चों तक ना तो राशि पहुंची है और ना ही किताब.
इस सम्बन्ध में शिक्षा विभाग के प्रवक्ता अमित कुमार ने बताया कि, शिक्षा विभाग खासकर सर्व शिक्षा अभियान की ओर से पुस्तक खरीदने के लिए बच्चों के खातों में राशि डालने के लिए 284 करोड़ की राशि जिलों में भेजी गई है. विभाग के अनुसार यह राशि बच्चों तक पहुंचने में अभी एक सप्ताह से अधिक समय लग सकता है.
उधर दूसरी ओर सरकारी स्कूलों में पढ़ाये जाने वाली किताब बाजार में अभी उपलब्ध नहीं हैं क्यूंकि किसी भी प्रकाशक ने किताब अभी छापी नहीं हैं.
बिहार के शिक्षा विभाग के एक कर्मचारी ने बताया कि पच्चीस से तीस हज़ार किताबें छपने की तैयारी में हैं. दो महीने तक बाजार में पुस्तक बाजार में पहुंच जायगी.
इस मामले में दूसरी अड़चन और भी हैं. बिहार के सोनपुर जिले में प्राथमिक स्कूल के शिक्षक धनजीत कुमार बताते है कि,” बच्चों तक राशि पहुंचाने में सबसे बड़ी परेशानी बैंकों में खाता ना होना है. बच्चों के आधारकार्ड भी नहीं है. कई बच्चे तो इतने छोटे उम्र के हैं जिन्हें योजनाओं के नियम को उनके अभिभावक तक पहुंचना की मुश्किल होता है. ऐसे में ना तो सरकार नियम बनाते वक़्त समझती है और ना ही अभिभावक.”
बच्चों के खाता न खुलवाने के सवाल पर चेनारी के अभिभावक अल्ताफ आलम बताते हैं, “बैंक वाले जीरो बैलेंस पर खाता खोलने को तैयार नहीं होते. वही अगर छोटे बैंक शाखा खाता खोलते भी हैं तो अलग से 100 रूपए लेते हैं. सरकार की तरफ से किताबों के लिए 250 रूपए की राशि दी जा रही है ऐसे में इतना पैसा लगा कर खाता कौन खुलवाना चाहेगा.”
बैंकों के नए नियम की बात करें तो 10 साल से कम उम्र के बच्चों का खाता ग्राहक सेवा केंद्र में नहीं खुल सकता है. यही नहीं बड़े शाखा में बच्चे के अभिभावक के साथ ज्वाइंट खाता खोलना मज़बूरी बन जाती है. बड़े बैंकों में कम से कम दो हज़ार की राशि खाते में रखना ज़रूरी होता है. अब ऐसे में गरीब बच्चों के अभिभावक अपने बच्चों को मिलने वाली सरकारी योजनाओं का लाभ लेने से भी कतराने लगे हैं.
ग्राहक सेवा केंद्र के कर्मचारी ने बताया कि, “सबसे बड़ी समस्या खातों में पैसे का ना होना होता है. सरकारी योजनाओं के द्वारा खुले खाते में साल में एक बार निर्धारित राशि दी जाती है, जिसे पैसे निकासी के बाद खाते में जीरो राशि रह जाती है. जिससे खाता या तो बंद हो जाता है या तो होल्ड पर चला जाता है. ऐसे में जहाँ शिक्षक परेशान होते हैं वही हमे भी दिक्कतों को झेलना पड़ता है.”
इस मामले में बिहार के प्राथमिक विधलाय के शिक्षक नाम ना प्रकाशित करने की शर्त पर बताते हैं, सरकार की तरफ ने एक निर्धारित समय सीमा पर बच्चों के खातों में पैसे डालना होता है. जिन बच्चों के खाते नियमित नहीं चलने से होल्ड या बंद खाते की राशि वापस स्कूल प्रबंधक को आ जाती है जिसके बाद वो राशि पुनः सरकार के पास ही लौट जाती है.
2015-16 के सरकारी आकड़ें की बात करें तो बिहार में बिहार में 80,000 प्राथमिक विद्यालय और 22,000 माध्यमिक विद्यालय हैं. जिसमे करीब 2 करोड़ से अधिक बच्चे पढ़ते हैं. बिहार में 85,000 पंचायतें हैं और लगभग 5,500 पंचायतों में हाई स्कूल नहीं है.
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