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CAA के ख़िलाफ़ धरने पर बैठी महिलाओं ने नेताओं पर कर दी चूड़ियों की बारिश

सांकेतिक तस्वीर

आसमोहम्मद कैफ़, Twocircles.net

देवबंद। दारुल उलूम से लगभग 100 मीटर दूर ईदगाह के मैदान में एक लड़की बेहद प्यारी आवाज़ में ‘केसरी’ फ़िल्म का लोकप्रिय गाना ‘ऐ मेरी ज़मीं अफ़सोस मुझे’ गा रही है। इस लड़की का नाम अलीना है और इसकी क़ाबलियत और दर्द से भरी आवाज़ मंच के सामने बैठी हजारों महिलाओं के रोंगटे खड़ा कर देती है। बार-बार यहां तालियां बजती रहती है। यहां नागरिकता संशोधन कानून के ख़िलाफ़ तमाम महिलाएं जुटी है।ख़ास बात यह है यह 26 जनवरी को शुरू हुआ था और उसके बाद तीन दिन -रात मौसम बेहद बेरहम बना रहा। तेज़ बारिश और सर्दी भी इन ख़्वातीनो का हौसला नही डिगा सकी। टेंट टपकने लगा और अधिकतर महिलाएं बीमार हो गई। धरने के 18 वे दिन यहां लगातार भीड़ बढ़ती जा रही है। प्रदर्शन के दौरान दिन रात सिर्फ क़ौमी तराने और राष्ट्र को समर्पित देशभक्ति से ओतप्रोत भाषण दिए जाते हैं।

देवबंद का दुनिया भर मे इस्लामी शिक्षा का महत्वपूर्ण केंद्र है। अगर देवबंद में कोई बड़ा एहताज़ाज़ हो रहा है तो यह बड़ी बात है। पिछले कुछ समय से इस प्रदर्शन को ख़त्म कराने की कोशिशें कई तरह से हुईं।  इनमे से एक अत्यंत चर्चा में है। दरअसल धरने के बारहवें दिन देवबंद के ज्यादातर बड़े नेता इसे ख़त्म कराने पहुंचे थे तो महिलाओ ने एकजुट होकर उनपर चूडियों की बारिश कर दी थी।

प्रदर्शन की मुख्य संचालक इरम उस्मानी बताती हैं, “उस दिन हमारे धरने के बारहवां दिन था। हमारे पास देवबंद के चेयरमैन ज़ियादुदीन और पूर्व विधायक माविया अली सहित कई मोआज़्ज़िज़ हज़रात आए। इन्होंने हमसे अनुरोध किया कि हमें धरने से उठ जाना चाहिए। इनका  कहना था कि गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय ने सदन में लिखकर दे दिया है कि फिलहाल सरकार एनआरसी लाने नही जा रही है। इसलिए हम सभी को धरने से उठ जाना चाहिए। हमारे कुछ सवाल थे जिनका जवाब हमें नही मिले। हमें जानकारी हुई कि प्रशासन के कुछ लोग उसी समय देवबंद में थे और इन नेताओं ने वहीं से गाइन्डेस मिली थी। नेताओं की बातचीत के दौरान ही अचानक से महिलाओं में नाराज़गी होने लगी और उन्होंने अपनी चूड़ियां निकालकर उनके ऊपर फेंकने शुरू कर दी। मैंने भी अपनी चूड़ियां उनके ऊपर फेंक दी। हमें नाराज़गी थी कि वो कम से कम हमारा साथ नही दे सकते तो हमारी राह में रोड़े तो न अटकाएँ।”

देवबंद में पिछले 18 दिन-रात से चल रहे सीएए, एनपीआर और एनआरसी के विरोध प्रदर्शन की मंच संचालक इरम उस्मानी बिना चूड़ियों वाले अपने हाथ भी दिखाती है। 38 साल की इरम देवबंद में एक स्कूल चलाती हैंं। वो कहती है, “हिम्मत बहुत है यहां से वापस जाने के लिए नही आएं, जिस दिन हमनें यहां आने का इरादा किया था उसी दिन तेज़ बारिश हुई और हमारा टेंट भी टपकने लगा। यह हाल तीन दिन तक रहा। हमनें वो वक़्त भी झेल लिया। तब तो सैकड़ो महिलाएं हमारे साथ खड़ी थी अब हजारों है।”

देवबंद के ईदगाह मैदान में केंद्र सरकार के नागरिकता संशोधन कानून, एनपीआर और एनआरसी की संभावना के बीच देवबंद की महिलाएं विरोध प्रदर्शन कर रही है। इस विरोध प्रदर्शन को देवबंद सत्याग्रह का नाम दिया गया है। शाहीन बाग़ की तर्ज़ पर हो रहे इस प्रदर्शन में बेहद करीने से व्यवस्था की गई है। ख़ासकर महिलाओं की सुरक्षा की दृष्टि से बेरिकेडिंग की गई। ईदगाह के मैदान के चारों तरफ़ ईंट की दीवार खड़ी हुई है और प्रवेश द्वार पर ‘हिन्दू, मुस्लिम, सिख, ईसाई, आपस में हैं भाई भाई’ वाला कटआउट लगा हुआ है।

इस देवबंद सत्याग्रह को शुरू हुज 18 दिन पूरे हो गए हैं। इसके आयोजकों में से एक फ़ौजिया कहती हैंं, “यह सही है कि हमारे धरने को 18 दिन हो गए हैं। मगर हमारी तैयारी एक महीने से चल रही थी। हमनें घर-घर जाकर मुस्लिम महिलाओं को समझाया कि यह क़ानून उनके बच्चों की जिंदगी को काला कर देगा। यही वजह है अब यहाँ देवबंद के हर परिवार की औरत बैठी है। यह हमारी निजी लड़ाई नही है बल्कि क़ौम के मुस्तक़बिल की लड़ाई है।”

इस्लामी शिक्षा का केंद्र होने के चलते देवबंद की दुनियाभर में एक प्रतिस्ठा है। देवबंद सत्याग्रह की यह जगह दारुल उलूम से मात्र 100 मीटर दूरी है। यहां बड़ी संख्या में आ रही महिलाओं को मैनेज कर व्यवस्था संभालने का ज़िम्मा अलमास फ़ातिमा पर है। 34 साल की अलमास एक घरेलू महिला हैंं। वो कहती है, “यह सब करने के लिए मुझे मेरी 13 साल की बेटी ने प्रोत्साहित किया। उसने कहा, ‘अम्मी यह सब बहुत ग़लत हो रहा है क्या आप ऐसा कर सकती है मेरे भाई को रोटी दे और मुझे न दें, कोई भी सरकार अपने ही मुल्क को लोगोंं मेंं भेदभाव कैसे कर सकती है ? यह तो सरासर ग़लत है।” अलमास कहती हैं, “बच्चों तक के दिल मे यह बात बैठ गई है कि सरकार मुसलमानों के साथ भेदभाव से पेश आ रही है। अब मैं सत्याग्रह वाली जगह पर 25 वॉलंटियर वाली लड़कियों की टीम को निर्देशित करती हूँ। हमारा काम व्यवस्था बनाना है और किसी भी तरह के बाहरी दख़ल को रोकना है। मैं पहले दिन से यह कर रही हूं। मुझे लगता है कि अब मैं आख़री वक़्त तक लड़ूंगी। जब तक सरकार यह कानून वापस नही ले लेती। यह मेरे बच्चों के मुस्तक़बिल का सवाल है।”

देवबंद से देवबंद प्रोटेस्ट के दौरान इस बेटी को जरूर सुनिये, कमाल का हुनर है !

देवबंद में इस प्रदर्शन के दौरान स्थानीय प्रशासन ने 140 से ज्यादा लोगों को नोटिस भेजे हैं। कई महत्वपूर्ण लोगोंं के ख़िलाफ़ मुक़दमें भी लिखे गए हैं। कमाल यह है कि कई पत्रकारों के ख़िलाफ़ भी मुक़दमे लिख दिए गए है। इस सत्याग्रह आंदोलन की सक्रिय सदस्य फ़ौज़िया उसमान कहती है, “उनका भाई लोकल रिपोर्टर है। उसके ख़िलाफ़ मुक़दमा लिखा गया है। पहले उससे कहा गया की वो हमें प्रदर्शन से हटाए। अब उस पर दबाव था कि वो प्रदर्शनकारियों को हटवाने में मेरी मदद ले। उसने दोनों ही बात नही मानी। एक और पत्रकार के ख़िलाफ़ भी मुक़दमा दर्ज हुआ है। इसकी वजह यह है कि उनकी पत्नी रुबीना प्रदर्शन में शामिल रही है।”

अलमास हमें बताती है, “सरकार डराने की कोशिश कर रही है मगर डर अब हमारे दिलों से निकल चुका है। अब हम जेल जाने और मर जाने से नही डरते। इस सबके बजाय मोदी जी को हमारा विश्वास जीतने की कोशिश करनी चाहिए क्योंकि यह हमारा भी देश है।”

ईदगाह के मैदान में आयोजित इस प्रदर्शन के दौरान दिन रात सिर्फ क़ौमी तराने और राष्ट्र को समर्पित देशभक्ति से ओतप्रोत भाषण होते हैं। मंच से अलीना नाम वाली एक लड़की “ऐ मेरी ज़मीं”गा रही है और लगातार तारीफ़ें बटोर रही है। हज़ारों महिलाएं यहां रोज़ आती है। दोपहर 2 बजे के बाद और शाम में 8 बजे के बाद यहां सबसे भारी तादाद में भीड़ जुटती है।

सत्याग्रह में पुरुषों की एंट्री पूरी तरह बंद है। तमाम व्यवस्था सिर्फ़ महिलाएं संभालती है। मैदान के चारों तरफ़ दारुल उलूम के छात्रों की भीड़ इकट्ठा रहती है। मगर इनमें से कोई मैदान के भीतर नही जा सकता।इरम उस्मानी कहती है, “प्रशासन के तौर तरीक़ो के देखते हुए अब हमने 18 साल से कम उम्र के बच्चों को भी यहां आने की मनाही कर दी है।कुछ महिलाएं अपने दुधमुंहे बच्चों को लेकर आती है। वो उनका निजी मामला है”।

एक और वॉलंटियर सलमा कहती हैं, “मोदी जी कहते हैं कि उन्हें मुस्लिम महिलाओं की बहुत फ़िक्र है।वो उनके लिए तीन तलाक़ वाला क़ानून लाए। ताकि हम खुली हवा में सांस ले सकें मगर उन्होंने यह हवा ज़हरीली कर दी है। अब हमारे बच्चें भी सांस नही ले पा रहे। उनके फ़ैसले उनके जूनियर बदल देते हैं। यह लड़ाई सिर्फ़ एक क़ानून की नहीं है। हमारे अस्तित्व की है। एक क़ानून से बहुत बड़ी है। दरअसल लड़ाई देश का संविधान और लोकतंत्र को बचाने की लड़ाई है।”