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युवाओं में निराशा और हताशा बढ़ा रही है बेरोजगारी, दलित-मुस्लिम बहुल गांव से ग्राउंड रिपोर्ट

PC: Reuters

आस मोहम्मद कैफ़

मोदी सरकार के कार्यकाल के दौरान बेरोज़गारी एक गंभीर समस्या बनकर उभरी है। बेरोज़गारी की इस समस्या का ग्रामीण भारत पर क्या असर पड़ रहा है! एक गांव की इस रिपोर्ट के ज़रिए हम इस तक़लीफ़ को जान सकते है!

सम्भलहेड़ा। मुज़फ़्फ़रनगर जनपद के जानसठ क़स्बे से 6 किमी मीरापुर थाना क्षेत्र के अंतर्गत आने वाले इस गाँव का बड़ा महत्व है। ऐसा इसलिए भी है कि 12 हजार की आबादी वाले इस गांव में आसपास के गांवों से अधिक संपन्न लोग रहते हैं। मुस्लिम और दलित बहुल इस गांव से हाल ही में हुए लोकसभा चुनाव में सपा-बसपा गठबंधन के प्रत्याशी को रिकॉर्ड वोट मिले थे। गांव में चार सरकारी स्कूल हैं। इनमें छात्राओं के लिए एक उच्चतर माध्यमिक विद्यालय भी है। एक अनाज मंडी बनी है जो अब तक शुरू नहीं हुई है। पानी टंकी भी है। प्रथमा ग्रामीण बैंक भी है। सबसे ख़ास बात यह है कि इस गांव के मुख्य रास्ते पर पोलियो द्वार बनाया गया है। गांव का अपना ऐतिहासिक महत्व है। ऐसा इसलिए भी है कि गांव में विश्व के तीन पंचमुखी शिवलिंग में से एक इसी गांव में है। गांव में अच्छी हैसियत वाले बड़े किसान रहते है।

इतने महत्वपूर्ण गांव में भी उदासियों का बसेरा है। बेरोज़गारी से नोजवानों में निराशा है।अधिकतर गांव से बाहर रोज़गार के लिए चले जाते थे। गांव के एक कपड़े की फेरी करने वाले युवक को त्रिपुरा में बच्चा चोरी में अफ़वाह के बाद लीचिंग करके मार दिया था।  इस घटना के बाद अब युवकों ने बाहर जाना कम कर दिया है।

बीएड की डिग्री लिए कई नौजवान बेरोज़गार घूम रहे हैं। युवा ख़ालिद समीर बताते हैं कि इस गांव में पचास से ज़्यादा ग्रेज्युएट लड़के बेरोज़गार है। ज़ाहिर है यह संख्या मामूली नही है। पूर्व प्रमुख अनार सिंह रवि के मुताबिक़ गांव की संपन्नता को नज़र लग गई है अब लोग अक्सर तनावग्रस्त दिखते हैं। हालांकि गांव में किसी तरह का कोई साम्प्रदयिक माहौल कभी नहीं रहा और अब भी नही है लोग बेहद प्रेम से रहते हैं। मगर लोग आर्थिक कारणों से सचमुच परेशान हैं। वो बताते हैं अक्सर शाम में उनके घर पर पड़ोस के लोग जुट जाते हैं और गांव पर चर्चा करते रहते हैं। पहले किसी न किसी लड़के की नौकरी लगने की ख़बर आती रहती थी। अब ऐसी ख़बर सुनने को कान तरस गए हैं। बेरोज़गारी एक गंभीर समस्या बन गई है।

गांव के पूर्व प्रधान अख़लाक़ अहमद भी इससे सहमत दिखते है वो कहते हैं, “पढ़े लिखे लोगो को रोज़गार की समस्या तो अपनी जगह है ही मगर सामान्य मजदूरों की हालात इससे भी ज़्यादा ख़राब है। उन्हें पांच साल पहले तक 300 रुपए मज़दूरी मिलती थी। अब वो 250 रुपए में भी काम करने को तैयार है। सच यह है कि ग्रेजुएट लड़के मजदूरी भी नही कर सकते। लिहाज़ा मजबूरी में वो 8-10 हजार में ही काम कर रहे हैं।

रमेश कहते हैं, “गांव के खेतों में लड़के अक्सर नशा करते हुए दिख जाते हैं। अक्सर वो आपस मे झगड़ते रहते हैं। गांव के लड़कों में नशे की लत बढ़ गई है वो भांग का नशा कर रहे हैं। बेरोज़गारी उन्हें तनावग्रस्त कर रही है।”

गांव के बड़े किसान और बॉलीवुड के गीतकार एएम तुराज़ के पिता अब्दुल वहीद अपने बड़े से घर मे हुक्का गुडगुड़ाते हुए गांव में आए बदलाव पर बात करते हैं। वो कहते हैं हमें हमारी फसलों को वाज़िब दाम मिलना चाहिए और गन्ना बकाया पेमेंट भी। सरकार क़र्ज़ के लिए धनराशि बढ़ाने का काम न करें। यह तो किसानों के लिए और भी अधिक तकलीफ़देह है। क़र्ज़ को लेकर किसान पर दबाव बनता है वो मानसिक तनाव में आता है। लौटा न पाने स्थिति में वो आत्महत्या तक कर लेता है।वहीद बताते हैं बिजली महंगी होने से भी किसान बहुत अधिक परेशान है। वो बताते हैं पहले बिजली का बिल 1000 रूपए का आता था।अब 1360 रूपए का आ रहा है। गांव में चर्चा होती रहती है कि सरकार अब ट्यूबवेल पर भी बिजली का मीटर लगाने जा रही है। यह तो किसानों के लिए और भी अधिक तकलीफ़देह होगा। यहां पढ़ें लिखे लड़के आवारा घूम रहे हैं।

गांव की प्रधान सलमा राव हैं। उनके पति अब्दुल क़ादिर के मुताबिक़ गांव की सबसे बड़ी समस्या बेरोज़गारी ही है। उज्जवला योजना और शौचालय का लाभ सभी लोगो तक नही पहुंच पाया है। कुछ ऐसे परिवार भी है जहां उज्जवला योजना का लाभ तो लिया गया मगर उन्होंने उसके बाद गेस नही भरवाई। गांव की सड़कें अब टूटने लगी है। पानी की निकासी के चार तालाब हैंं। इनमे गंदगी अलग नजर आती है।

एमए तक पढ़ लिख लेने के बाद मुकेश कुमार रोज़गार के लिए जूझ रहे है। बीएड कर लेने के बाद एजाज़  मानसिक तनाव में हैं। एक और बीएड किए हुए अमित कुमार सफाई कर्मचारी के तौर पर काम कर रहे हैं। पूछने पर कहते हैं। जीवन यापन के लिए कुछ तो करना ही है। बेरोज़गारी से लोगों की मुश्किलें लगातार बढ़ती जा रहीं हैं। इसे लेकर लोगों के अंदर ग़ुस्सा लगातार बढ़ता जा रहा है। एक सुर में सबकी शिकायत यही है कि सरकारें बेरोज़गारी जैसे मुद्दे पर ध्यान न देकर सत्ता में बने रहने के लिए लोगों का भावनात्मक शोषण कर रही हैं।