दलित, आदिवासी और पिछड़ो के हज़ारों पद ख़ाली, संसदीय समिति ने मोदी सरकार को फटकारा

Image used for representational purposes only ( Courtesy: Newscentral)
यूसुफ़ अंसारी, TwoCircles.net
 
देश में 2014 में मोदी सरकार बनने के बाद से ही उस पर आरक्षण विरोधी होने आरोप लगते रहें हैं। लगातार कहा जा रहा है कि मोदी राज में दलित, आदिवासी और पिछड़े वर्गों के आरक्षण पर ख़तरा मंडरा रहा है। हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक फैसले में कहा है कि प्रमोशनन में आरक्षण मौलिक अधिकार नहीं है। इस पर देश भर में बवाल मचा हुआ है। देश भर के दलित संगठन इस फ़ैसले का विरोध कर रहे हैं। वो सरकार पर संसद में विधेयक लाकर इस फैसले को पलटने की लगातार मांग कर रहे हैं। इसी मांग को लेकर 23 फरवरी को भीम आर्मी ने अन्य संगठनों के साथ मिलकर भारत भी बंद रखा था।   
 
इस बीच चौंकाने वाली ख़बर आई है कि केंद्र सरकार के छह अहम मंत्रालयों में अनुसूचित जाति के 7,000 से ज़्यादा, अनुसूचित जनजाति या आदिवासियों के 6,000 से ज़्यादा और ओबीसी वर्ग के 10,000 से ज़्यादा पद ख़ाली पड़े हैं। इन्हें भरने के लिए मोदी सरकार की तरफ़ से कोई क़दम नहीं उठाया गया है। कार्मिक, लोक शिकायत, क़ानून और न्याय मामलों की संसदीय समिति ने हाल ही में संसद में पेश की गई रिपोर्ट में यह ख़ुलासा हुआ है। समिति के अध्यक्ष बीजेपी के राष्ट्रीय महासचिव और राज्यसभा सांसद भूपेंद्र यादव हैं। समिति ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि ये आंकड़े गंभीर गड़बड़ियों की तरफ़ इशारा करते हैं। संसदीय समिति ने आरक्षण नीति पर सही ढंग से अमल नहीं करने के लिए मोदी सरकार को फटकार लगाई है।
 
समिति ने केंद्र सरकार को बिना देर किए विशेष भर्ती अभियान चलाकर इन ख़ाली पदों भरने का निर्देश दिया है। समिति ने कहा है कि सरकार को बरसों से ख़ाली पड़े इन पदों पर भर्ती नहीं करने की वजहों का पता लगाकर इन्हें भरने की इस दिशा में फ़ौरन ज़रूरी क़दम उठाने चाहिए। समिति ने जिन छह अहम मंत्रालयों में पदों के रिक्त होने की बात कही गई है, उनमें डाक विभाग, परमाणु ऊर्जा, रक्षा, रेलवे, आवास और शहरी मामले और गृह मंत्रालय  शामिँ हैं। समिति की रिपोर्ट कज मुताबिक़ सबसे ज़्यादा बैकलॉग गृह मंत्रालय के आरक्षित वर्ग में है। ईनमें अनुसूचित जाति के 5,850, अनुसूचित जनजाति के 5,383 और पिछड़े वर्गों के 6,260 पद ख़ाली हैं। इससे पता चलता है कि मोदी सरकार की अहम मंत्रालयों दलित, आदिवासी और पिछड़े वर्गों के लोगों की भर्तियों में दिलचस्पी नहीं है।  
 
समिति ने देश मे भर में क़रीब डेढ़ हज़ार आईएएस अधिकारियों की कमी पर चिंता जताई है। समिति ने कहा है कि नौकरशाहों की कमी से होने वाली समस्याओं की ओर ध्यान दिया जाना चाहिए। बता दें कि देश में 1,494 आईएएस अधिकारियों की कमी है। समिति इस कमी को भई जल्द पूरा करने को कहा है। समिति ने आईएएस अफ़सरों की बिना सोचे-समझे या बेतरतीब ढंग से पोस्टिंग नहीं करने की भी सिफ़ारिश की है। समिति ने सरकार से सिफ़ारिश की है कि आईएएस अफ़सरों की नियुक्तियों में उनकी कुशलता, योग्यता और उनकी रूचि का ख़ास ध्यान रखा जाना चाहिए।
 
ग़ौरतलब है कि आरक्षण को लेकर सुप्रीम कोर्ट  के हाल ही मे आए एक फ़ैसले पर विवाद चल रही है। कोर्ट ने अपने फ़ैसले मं कहा है  राज्य सरकारें अनुसूचित जाति और जनजाति के लोगों को सरकारी नौकरियों में  प्रमोशन में आरक्षण देने के लिए बाध्य नहीं हैं क्योंकि यह मौलिक अधिकार नहीं है। कोर्ट ने कहा कि ऐसा कोई मूल अधिकार नहीं है, जिसके आधार पर कोई व्यक्ति प्रमोशन में आरक्षण का दावा कर सके। ऐसे में एससी-एसटी और ओबीसी वर्ग की नौकरियों का बढ़ता बैकलॉग निश्चित रूप से बेहद गंभीर विषय है। सरकार को ख़ाली पदों को भरने की दिशा में जल्द और ठोस क़दम उठाने चाहिए। ताकि संविधान के हिसाब से इन वर्गों के लोगों को दिये गये आरक्षण का सही लाभ उन्हें मिल सके। 
 
दलित संगठन इसकी पहले सेही मांग कर रहे हैं। अब समिति की रिपोर्ट आने के बाद मोदी सरकार पर निश्चित तौर पर आरक्षित वर्गों के ख़ाली पड़े पदों पर भर्तियों का  दबाव बढ़ेगा। संसद में दलित सासंदों का फोरम इस बारे में मोदी सरकार पर दबाव बढ़ा सकता है। सरकार और पार्टी के भीतर से भी सरकार पर दबाव वढ़ सकता है। 

SUPPORT TWOCIRCLES HELP SUPPORT INDEPENDENT AND NON-PROFIT MEDIA. DONATE HERE