बाबरी मस्जिद में मूर्ति रखवाने से लेकर मंदिर के हक़ में फ़ैसला देने वाले तक, सब पर हुई ‘रामलला’ की कृपा

यूसुफ़ अंसारी, twocircles.net

अयोध्या विवाद का फ़ैसला राम मंदिर के हक़ में सुनाने वाली संविधान पीठ के अध्यक्ष रहे देश के पूर्व चीफ जस्टिस रंजन गोगोई को मोदी सरकार ने राज्यसभा के लिए मनोनीत कर दिया है। मोदी सरकार के इस फैसले पर पर सियासी बवाल मच गया है। ऑल इंडिया इत्तेहादुल मुसलमीन के अध्य़क्ष असदुद्दीन ओवेसी ने गंभीर सवाल उठाए हैं। वहीं अटल बिहारी वोजपेयी की सरकार में वित्तमंत्री और विदेशमंत्री रह चुके भाजपा नेता यशवंत सिंहा ने कहा है कि अगर उन्होंने इस ऑफ़र को नहीं ठुकराया तो उनकी छवि को इतना नुक़सान होगा जिसकी भरपाई कभी नहीं हो पाएगी।


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वैसे रंजन गोगोई कोई पहले रियायर्ड चीफ़ जस्टिस नहीं है जिन्हें राज्यसभा में मनोनीत कियी गया हो। उस पहले पूर्व राष्ट्रपति मोहम्मद हिदायतुल्लाह और रंगनाथ मिश्रा भी चीफ जस्टिस के पद से रिटायर होने के बाद राज्यसभा के लिए मनोनीत हो चुके हैं। राज्यसभा में उनके मनोनय पर भी सवाल उठे थे। रंगनाथ मिश्रा पर आरोप था कि उनकी अध्यक्षता में बने जांच आयोग ने सिख विरोधी हिंसा में कांग्रेस को क्लीनचिट दी थी। अब भी अगर सवाल उठ रहे हैं तो इसके पीछे भी राजनीति ही है। कांग्रेस के मुख्यप्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला ने इस पर कहा है कि मोदी का संदेश एकदम साफ़ है। यातो राज्यसभा, राज्यपाल या फिर चोयरमैन वर्ना तबादले झेलो और इस्तीफ़ा देकर घर जाओ।

वैसे अयोध्या विवाद पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने के बाद से ही क़यास, लग रहे थे कि गोगोई का अगली मंज़िल राज्यसभा हो सकती है। सोमवार को ये क़यास सही साबित हो गए। सही होते भी क्यों नहीं। रामलला की कृपा जो होनी थी। हो गई। उनसे पहले भी रामलला की कृपा उन सब पह हुई है जिन्होंने अयोध्या में बाबरी मस्जिद का वजूद ख़त्म करने और विवादित ज़मीन पर राम मंदिर निर्माण का रास्ता साफ़ करने में अहम भूमिका निभाई है। इसमें मस्जिद के भीतर मूर्ति रखवाने वाले फ़ैज़ाबाद के तात्कालीन डीएम से लेकर मस्जिद का ताला खुलवाने वाले जज और मस्जिद गिराते वक़्त फैज़ाबाद के एसएसपी रहे डीबी राय तक रामलला की कृपा से संसद तक पहुंचे हैं।

सबसे पहले बात करते हैं 1949 में फैज़ाबाद के डीएम रहे केके नायर की। केरल के अलेप्पी के रहने वाले केके नायर 1930 बैच के आईसीएस अफ़सर 1 जून1949 को फ़ैज़ाबाद के डीएम नियुक्त हुए थे। उन्हीं के ज़िलाधिकारी रहते बाबरी मस्जिद में रामलला का मूर्तियां रखी गईं थी। कहा जाता है कि उन्होंने ही रखवाई थीं। उस वक्त के प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने दो बार आदेश दिए लेकिन अयोध्या के डीएम ने दोनों बार उनके आदेश का पालन करवाने में हिंदू भावनाएं भड़कने का डर दिखाकर मस्जिद के अंदर रखी गईं मूर्तियां हटाने से साफ़ इंकार कर दिया।

जब नेहरू ने दोबारा मूर्तियां हटाने को कहा तो नायर ने सरकार को लिखा कि मूर्तियां हटाने से पहले मुझे हटाया जाए। देश के सांप्रदायिक माहौल को देखते हुए सरकार पीछे हट गई। बाबरी मस्जिद-राम जन्मभूमि विवाद से जुड़े आधुनिक भारत के वे ऐसे शख्स थे जिनके कार्यकाल में इस मामले में सबसे बड़ा टर्निंग प्वाइंट आया और देश के सामाजिक-राजनीतिक ताने-बाने पर इसका दूरगामी असर पड़ा। डीएम नायर ने 1952 में स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति ले ली। चौथी लोकसभा के लिए वे उत्तर प्रदेश की बहराइच सीट से जनसंघ के टिकट पर लोकसभा पहुंचे। इस इलाक़े में नायर हिंदुत्व के इतने बड़े प्रतीक बन गए कि उनकी पत्नी शकुंतला नायर भी कैसरगंज से तीन बार जनसंघ के टिकट पर लोकसभा पहुंचीं। उनका ड्राइवर भी उत्तर प्रदेश विधानसभा का सदस्य बना।

इस विवाद का दूसरा अहम पड़ाव था मसजिद का ताला खुलना। एक फरवरी1986 को मस्जिद का ताला खोलन का आदेश देने वाले फ़ैज़ाबाद के तात्कालीन ज़िला जज केएम पांडे संसद तो नहीं पहुंचे लेकिन बाद में हाईकोर्ट का जज ज़रूर बने। इसकी कहानी भी दिलचस्प हैं। वरिष्ठताक्रम को देखते हुए न्यायपालिका की ओर से उन्हें हाईकोर्ट का न्यायाधीश नियुक्त करने की सिफारिश हुई। लेकिन 1988 से लेकर जनवरी 1991 तक उनका नाम लटका रहा। उन्हें प्रमोशन नहीं दिया गया। इस बारे में 13 सिंतबंर 1990 को विश्व हिन्दू परिषद अधिवक्ता संघ की ओर से महासचिव हरिशंकर जैन ने इलाहाबाद हाईकोर्ट में याचिका दाखिल करके केएम पांडेय को हाईकोर्ट प्रोन्नत करने का आदेश मांगा। इस याचिका में जैन के अलावा 10 अन्य वकील भी याचिकाकर्ता थे।

याचिका में साफ तौर पर आरोप लगाया गया कि तात्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह ने फ़ाइल पर एक नोट लिख कर पांडेय को हाईकोर्ट जज बनाने पर आपत्ति की थी और उनकी सिफारिश करने से इन्कार दिया था। याचिका में मुलायम सिंह के कथित नोट को शब्दश: कोट करने का दावा है और उसमें कहा गया था कि ‘पांडेय जी सुलझे हुए ईमानदार एवं कर्मठ न्यायाधीश हैं, फिर भी 1986 में राम जन्मभूमि का ताला खुलवाने का आदेश देकर उन्होंने साम्प्रदायिक तनाव की स्थिति पैदा की थी, लिहाजा मै उनके नाम की संस्तुति नहीं करता।’

उस वक़्त वीपी सिंह प्रधानमंत्री थे। याचिका लंबित थी कि तभी सरकार बदल गई। चंद्रशेखर प्रधानमंत्री बन गए। उस सरकार में सुब्रमण्यम स्वामी क़ानून मंत्री बने। स्वामी ने केएम पांडेय को इलाहाबाद हाईकोर्ट का न्यायाधीश नियुक्त करने को मंजूरी देदी। वो 24 जनवरी 1991 को इलाहाबाद हाईकोर्ट के न्यायाधीश बने। एक महीने के अंदर उनका मध्य प्रदेश हाईकोर्ट तबादला कर दिया गया। वहां चार साल न्यायाधीश रहने के बाद 28 मार्च 1994 को रिटायर हुए। इस तरह एमके पांडे को भी बाबरी मसजिद का ताला खोलने का इनाम मिला।

बाबरी मसजिद-रामजन्म भूमि विवाद काअगला पड़ाव 6 दिसंबर1992 को बाबरी मसजिद का बलपूर्वक गिराया जाना था। उस वक़्त डीबी राय फ़ैज़ाबाद के एसएसपी थे। उन पर अपन ड्यूटी में लापरवाही बरतने का आरोप लगा था। उन्हें उसी दिन उनके पद से हटा दिया गया था। लेकिन बाद में रिटायरमेंट के बाद वो दो बार भाजपा के टिकट पर सांसद रहे। बाबरी मस्जिद गिराए जाने के बाद 1996 में हुए पहले ही लोकसभा चुनाव में भाजपा ने उन्हें सुल्तानपुर से टिकट दिया। वो जीते भी। 1998 में भी वो जीते। संसद में वो बाबर मस्जिद गिराए जाने के क़िस्से औऱ उसमे अपनी भूमिका को को बड़े ही गर्व के साथ सुनाते थे।

यह अलग बात है कि बाद में डीबी राय का भाजपा से मोहभंग हो गया था। उन्होंने 6 दिसंबर को लबाबरी मस्जिद तोड़े जाने की घॉन पर किताब लिखी तो उसमें भाजपा के बड़े नेताओं पर गंभीर आरोल लगाए। 2007 में अपनी किताब ‘अयोध्याःछह दिसंबर का सत्य’ के विमोटन के मौक़े पर उन्होंने कहाथ कि भाजपा और विहिप के नेता विदेशी आक्रांता महमूद गज़नवी और औरंगज़ेब से भी बड़े मूर्तिभंजक है। ये लोग मंदिर के नाम पर अरबो रूपए बैंक मे जमा करके दुनिया का हर सुख भोग रहे हैं। उन्होंने यहा तक आरोप लगाया था कि इन नेताओं ने जनता से सोने का राम दरबार अपन ही जमात को भेंट करवाया और बाद में उसे तोड़कर सोने के बिसकुट और गिन्नियां बनवाई।

इस तरह बाबरी मसजिद-रामजन्म भूमि विवाद खी शुरुआत से लेकर आख़िर तक जो भी अपने पद पर रहते हुए हिंदू पक्ष में खड़ा रहा उसे किसी न किसी तरह इनाम मिलता रहा। इस पुराने रिकॉर्ड को देखते हुए ही पूर्व चीफ़ जस्टिस रंजन गोगोआ को राज्यसभा भेजे जाने के क़यास लग रह थे। अब ये उन पर निरभर करता हैं कि वो इन आरोपों के साथ खुद को राज्यसभा में बैठा देखना चाहेंगे या फिर सरकार के इस ऑफ़र को ठुकरा कर ख़ुद की निष्ठा पर उठाने वालों का मुंह बंद करेंगे।

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