ये हैं आज़ाद समाज पार्टी के मुस्लिम चेहरे, उठने लगे सवाल!

haji shabeel with chndrashekhar
आस मोहम्मद कैफ़, TwoCircles.net
सहारनपुर। भीम आर्मी का राजनीतिक दल सामने आ चुका है। चंद्रशेखर आज़ाद को इसका राष्ट्रीय अध्यक्ष चुना गया है। आज़ाद समाज पार्टी के रूप में बनाये गए इस राजनीतिक दल को भविष्य में बहुजन समाज पार्टी का विकल्प माना जा रहा है। पार्टी की आइडियोलॉजी दलितों के आधुनिक युग के पथ प्रदर्शक कांशीराम के सिद्धांतों पर काम करेगी। यह बात स्पष्ट कर दी गई है। पार्टी का मुख्य नारा है, “कांशीराम तेरा मिशन अधूरा, आज़ाद समाज पार्टी करेगा पूरा।”
आज़ाद समाज पार्टी के गठन के साथ ही मुसलमानोंं की नजरें इस पर गड़ गई हैंं। पार्टी में मुसलमानों के बहुजन पसमांदा मुसलमानों के रुख को लेकर भी उत्सुकता है। पहली नज़र में आज़ाद समाज पार्टी के मुस्लिम नेताओं के चेहरे एक बार जान लेते है। मुस्लिम समुदाय से इन्हींं लोगो की आज़ाद समाज पार्टी में मुख्य भूमिका में रहने की संभावना है।
mohammad ghaji
मोहम्मद गाज़ी,46 साल, पूर्व विद्यायक, बिजनोर 
मोहम्मद गाज़ी के समर्थक दावा कर रहे हैं कि वो पार्टी के संभावित प्रदेश अध्यक्ष हो सकते हैं। एक वर्ग ओबीसी समाज से गुर्जर और दूसरा वर्ग दलित समुदाय से प्रदेश अध्यक्ष बनाये जाने की वक़ालत कर रहा है ताकि सामंजस्य साधा जा सके। मोहम्मद गाज़ी की विधानसभा शेरकोट के रहने वाले हैं। यहां से वो दो बार विधायक रहे हैं और इस समय उनकी पत्नी चेयरपर्सन है। मोहम्मद गाज़ी कभी बसपा के ख़ास सिपहसलार हुआ करते थे। वो इस बार चुनाव हार गए। तीनों बार उन्होंने बसपा के टिकट पर चुनाव लड़ा। बिजनौर के कुछ स्थानीय अख़बारों ने उन्हें “आज़ाद समाज पार्टी’ का किंगमेकर लिखा है। उनके समर्थक दावा कर रहे हैं कि मोहम्मद गाज़ी ने ही इस नई पार्टी में 28 पूर्व विद्यायक शामिल कराए हैं।
मोहम्मद गाज़ी भीम आर्मी में दो साल पहले सक्रिय हुए और बिजनोर में मजबूत संगठन खड़ा किया। मगर पार्टी का एक वर्ग उनका कड़ा विरोध कर रहा है। दलील दी जा रही है कि वो पसमांदा मुसलमानों के विरोधी है। जबकि मुसलमानों का बहुजन समाज पसमांदा है जिसकी आबादी 85 फीसद है। बिजनौर के शमीम अंंसारी कहते हैं उन्होंने एक बार नारा दिया था कि “ये चारों हैंं उम्मत की शान, शेख़, सय्यद, मुग़ल पठान”, तो क्या वो दूसरे मुसलमानों को उम्मत पर लानत समझते हैं। पार्टी के अंदर भी इसी तरह की आवाज़ें है। गाज़ी का यह अतीत उनको नुकसान पहुंचा सकता है।
मोहम्मद शबील, 58 साल, पूर्व बसपा प्रभारी, हापुड़
 हापुड़ के सिम्भवली के रहने वाले हाजी शबील को कभी बसपा सुप्रीमो मायावती का क़रीबी समझा जाता था। वो पश्चिमी उत्तर प्रदेश के प्रभारी रहे।हाजी शबील बाबू मुनक़ाद अली और बसपा सांसद कुँवर दानिश अली के प्रिय माने जाते रहे हैं। तीनों राजपूत मुस्लिम बिरादरी से आते हैं और आपस में रिश्तदार भी है। हाजी शबील भी आज़ाद समाज पार्टी में आ चुके हैं। कुँवर दानिश अली भी हापुड़ के रहने वाले हैं। किठौर हापुड़ से 30 किमी की दूरी पर है जहां बाबू मुनक़ाद अली और समाजवादी पार्टी के नेता शाहिद मंजूर का घर है। कुँवर दानिश अली को चुनाव जितवाने में हाजी शबील की भी अच्छी भूमिका रही है। बसपा सुप्रीमो पिछले कुछ समय से कुँवर दानिश अली के पर कतरने पर लगी है। फ़िलहाल कुँवर दानिश अली को सदन में बसपा सांसद दल के नेता पद से हटा दिया गया। हाजी शबील के आज़ाद समाज पार्टी में शामिल होने को एक बड़ी योजना का हिस्सा माना जा रहा है।
वसीम अकरम त्यागी, 31 साल, लेखक, किठौर 
भीम आर्मी में वो प्रवक्ता की भूमिका निभा रहे हैं। उम्मीद है आज़ाद समाज पार्टी के प्रवक्ता के तौर वो नज़र आएंगे। इसकी संभावना दिखती है। वसीम अकरम मुस्लिम हितों पर लिखते हैं और एक चर्चित पत्रकार है। वो भी मेरठ जनपद के किठौर विधानसभा के रहने वाले हैं। फ़िलहाल दिल्ली में रहते हैं। वसीम अकरम मुस्लिम युवाओं में काफ़ी लोकप्रिय है। उन्हें चंद्रशेखर का विश्वासपात्र माना जाता है।
wasim akram tyagi
अहसान क़ुरैशी, 56 साल, बेहट, सहारनपुर
अहसान क़ुरैशी बहुजन समाज पार्टी के टिकट पर बेहट विधानसभा से चुनाव लड़ चुके हैं। चंद्रशेखर के साथ मिलकर वो प्रदेशभर में 40 सभाएं कर चुके हैं। अहसान क़ुरैशी बसपा के नम्बर 2 की हैसियत में रहने वाले नसीमुद्दीन सिद्दीक़ी के सबसे क़रीबी लोगों में शुमार रहे हैं। नसीमुद्दीन अब कांग्रेस में है।अहसान के बेटे अब्दुल रहमान इस समय बेहट के चेयरमैन है। नसीमुद्दीन सिद्दीकी से नजदीकी के चलते अहसान क़ुरैशी की पूरे प्रदेश में जान पहचान है। बसपा से नाराज़ नेताओं को आज़ाद समाज पार्टी की तरफ़ मोड़ने में इनकी भूमिका सबसे महत्वपूर्ण मानी जा रही हैं। मेरठ के बसपा के पूर्व लोकसभा प्रत्याशी हाजी नूर इलाही जैसे नेता उन्ही के प्रयासों से आज़ाद समाज पार्टी में पहुंचे हैं।
ahsan qureshi
बदर अली, 32 साल, मेरठ
युवा सेवा समिति के अध्यक्ष बदर अली को आज़ाद समाज पार्टी में युवाओं को संभालने की जिम्मेदारी दी जा सकती है। वो भी मुस्लिम राजपूत बिरादरी से आते हैं। आज़ाद समाज पार्टी में पांच पार्षदो के साथ शामिल हुए। हाल ही में वो जेल से लौटे हैं।उनपर भी रासुका लगाया गया था। तबरेज अंसारी की लिंचिंग के ख़िलाफ़ उनके प्रदर्शन के बाद बवाल का दोषी उन्हें बना दिया गया था। चंद्रशेखर उनसे मिलने जेल भी गए थे। वो इन्हें पसंद करते है दोनों की समान विचारधारा है। बदर अली मेरठ के युवाओं में काफी लोकप्रिय है। निश्चित तौर पर उन्हें अज़ाद समाज पार्टी का लम्बी रेस का घोड़ा माना जा सकता है।
निज़ाम चौधरी, 45 साल, मोदीनगर 
निज़ाम चौधरी अक्सर चंद्रशेखर के साथ कंधे से कंधे मिलाकर दिखाई देते हैं वो मुखर है। काफी सक्रिय है। उनके बड़े भाई वहाब चौधरी बसपा से विधायक रह चुके हैं। एक दूसरे भाई परवेज़ समाजवादी पार्टी के नेता है। एक और भाई ताज चौधरी पसमांदा मूवमेंट के जाने पहचाने चेहरा है।यह गद्दी समाज से आते हैं जो दूध के कारोबार से जुड़ा है। इस समाज का मेरठ के आसपास काफी दबदबा है। निज़ाम चौधरी भीम आर्मी की कोर कमेटी के मेंबर है। समझा जा रहा है कि वो आज़ाद समाज पार्टी की कोर कमेटी भी रहेंगे।
nijam choudhary
उठने लगे हैंं सवाल !
रविवार के दिल्ली दंगा और कोरोनो के संकट के बीच नॉएडा बेहद अव्यवस्था के बीच यह पार्टी लॉन्च हुई थी। यहां बताया गया कि 28 पूर्व विद्यायक और चार पूर्व सांसद भी पार्टी में शामिल हुए हैं हालांकि इसकी सूची अब तक नही मिली है।पार्टी के सूत्र बताते हैं कि इस पर काम चल रहा है और 21 मार्च के आसपास इसे जारी किया जाएगा।
पार्टी के गठन के बाद से ही यह ख़ासकर दलितों और मुसलमानों में चर्चा का विषय बन गई है।ओबीसी में खासकर गुर्जर समुदाय के एक समूह में इसका स्वागत हुआ है। दलितों के एक वर्ग में इसकी आलोचना भी हुई है मगर यह वर्ग बहुजन समाज पार्टी से जुड़ा है। युवाओं में इस पार्टी को लेकर उत्साह है। उनका मानना है कि आना वाला कल चंद्रशेखर का ही है। ख़ासकर जाटव समाज दो समूह में बंटता नजर आया है। चंद्रशेखर और बीएसपी प्रमुख मायावती दोनों जाटव समाज से आते हैं। चंद्रशेखर के मुताबिक बहुजन समाज पार्टी अपने उद्देश्य से भटक गई इसके इसकी ज़रूरत पड़ी।
पार्टी को लेकर सबसे ज्यादा हलचल मुसलमानों में है। पिछले कुछ समय से चंद्रशेखर के प्रति मुसलमानों का रुझान काफी बढ़ गया है। देश मेंं दलित मुस्लिम एकता उफ़ान पर है। मुसलमानों में उनके प्रति रुझान से समाजवादी पार्टी में चर्चा का दौर चल रहा है। हालांकि आज़ाद समाज पार्टी में जाने वाले ज्यादातर मुस्लिम नेता बसपाई रह चुके हैं। पार्टी में पसमांदा हिस्सेदारी को लेकर सवाल है।
आज़ाद समाज पार्टी की घोषणा के समय से लेकर पहले भी चंद्रशेखर यह स्पष्ट कर चुके हैं। यह बहुजनो का दल है। पार्टी के जानकारों की अगर मान ले तो अलग पार्टी बनाने की भीम आर्मी की यह प्रेरणा बहुजन समाज पार्टी में बढ़ते ब्राह्मण वर्चस्व से निकली है। दलितों का बहुत बड़ा वर्ग बसपा में बढ़ते ब्राह्मण वर्चस्व से नाराज़ है।

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