बिहार यथार्थ : रिपोर्ट्स तो बदतर बताती है बाकी सुशासन बाबू जाने !

Pic credit: Nehal Ahmad

नेहाल अहमद। Twocircles.net 

बिहार की राजनीति से बहुत से लोग परिचित हैं. लोग आम तौर पर राजनीति की बात जब आती है तो उस राजनीति में बिहार को और बिहार में उस  राजनीति को ढूंढना पसंद करते हैं. बिहार का गौरवशाली इतिहास ऐसा है जिसने देश भर में बिहार को एक अलग ही मकाम दिया है और बिहार के महत्व को दर्शाता है. बिहार का सांस्कृतिक एवं सामाजिक जीवन, अल्हड़पन एवं जन चेतना इसकी राजनीति को हमेशा से प्रभावित करता आया है लेकिन देखना ये दिलचस्प होगा कि क्या बिहार की राजनीति अब जनता को आखिर किस प्रकार प्रभावित करती है.


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चुनाव से पहले जब बिहार को लेकर ख़बरों एवं प्रोपैगैंडा का सिलसिला जारी है वहीं दूसरी ओर हमारी ज़िम्मेदारी है कि बिहार के उन पहलूओं पर भी नये सिरे से बात की जाये जिन पर आम तौर पर मीडिया के बड़े हिस्से में बात नहीं हो रही है. बॉलीवुड अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत पर अगर बहस का सिलेबस पूरा हो चुका हो तो ‘नया पेपर’ बिहार की स्थिति जानने के लिए तैयार कीजिये और उसके ज़रिये से जानने की कोशिश कीजिये कि आखिर बिहार का सच क्या है ? बिहार अपने किस-किस सच से पीछा छुड़ायेगा ? आज़ादी के इतने बरसों बाद भी बिहार की स्थिति दयनीय है और वो राज्य जो कभी बिहार का हिस्सा हुआ करते थे, कई मामलों में इस वर्तमान बिहार से बेहतर है. वो कौन सी नीतियां हैं जो उन्हें आगे ले गई और बिहार पिछड़ता ही चला गया. हमें नये सिरे से इस बात पर ग़ौर करने की ज़रूरत है.

चुनाव के मद्देनज़र नेताओं का इधर से उधर  आना-जाना आम बात हो गया है. देखना दिलचस्प होगा कि पीढ़ी दर पीढ़ी किसी ख़ास नेता या पार्टी को चाहने वालों की सोंच कितनी बदली है और इस बदलते वक़्त में वो खुद के नज़रिये में परिवर्तन कर बिहार को कितना बदलने की कोशिश करते हैं.

सरकारी रैंकिंग व रिपोर्ट्स में बिहार की स्थिति 

हाल ही में वित्त मंत्रालय द्वारा 5 सितंबर को जारी ‘बिज़नेस रैंकिंग’ डेटा के अनुसार बिहार 36 में से 26वें नम्बर पर है जहाँ धंधा-व्यापार आसानी से, आराम से किया जा सके. हालांकि देखा जाये तो वहीं झारखंड जो पहले बिहार का हिस्सा था वो 5वें नम्बर पर है.

नीति आयोग द्वारा ‘सस्टेनेबल डेवलपमेंट गोल्स इंडेक्स-19, दिसम्बर 2019 में जारी किया गया जिसमें बिहार सबसे निचले स्थान पर है.

बिहार में शिक्षा क्षेत्र की स्थिति देखी जाये तो पता चलेगा कि मानव संसाधन विकास मंत्रालय (नवीन नामकरण शिक्षा मंत्रालय) द्वारा जारी नेशनल इंस्टीट्यूशनल रैंकिंग फ्रेमवर्क (एनआईआरएफ) के अनुसार इंजीनियरिंग संस्थानों में आईआईटी पटना वर्ष 2016 में 10वां, 2017 में 19वां, 2018 में 24वां, 2019 में घट कर 22वां और 2020 में 26वां स्थान रखता  है. आईआईएम (गया) और एम्स (पटना) को भी कहीं पर जगह नहीं मिली है.

नेशनल स्टेटिकल ऑफिस की शिक्षा पर जारी रिपोर्ट के अनुसार बिहार में शिक्षा की 70.9% गिरावट है. भारत में शिक्षा के बुरे स्तर के आधार पर राज्यों की स्थिति देखें तो तीसरे नम्बर पर बिहार है.नेशनल इंस्टिच्यूट्स ऑफ ट्रांस्फोर्मिंग इंडिया 2019-20 के अनुसार ग़रीबी सबसे ज़्यादा बिहार में है.

स्वास्थ्य के मामलों में देखें तो इंडिया स्टेट लेवल डिज़ीज़ बर्डेन इनिशिएटिव, मई 2020 की रिपोर्ट के अनुसार बिहार में 5 वर्ष से कम उम्र के बच्चों की सबसे ज़्यादा मौत (1 लाख, 41 हज़ार, 5 सौ) बिहार में है जिसमें 75,300 मौत जन्म के वक़्त ही, पैदा होते ही हो जाती है.

मिनिस्ट्री ऑफ वूमेन एंड चाइल्ड डेवलपमेंट जिसकी ज़िम्मेदारी कैबिनेट मंत्री स्मृति ईरानी हैं, उन्होंने संसद में एक लिखित जवाब दे कहा कि 5 वर्ष से नीचे के 48.3% बच्चों शारिरिक विकास रुका हुआ है क्योंकि उन्हें सही पोषण, पौष्टिक आहार नहीं मिल रहा है.

मिनिस्ट्री ऑफ स्टेटिस्टिक्स एंड प्रोग्राम इम्प्लीमेंटेशन के अनुसार बिहार में प्रति व्यक्ति आय के मामलों में 2018,2019 में 43,822 रुपये के साथ सबसे निचले स्थान पर है.

इसके अलावा बिहार में शिक्षा को लेकर राज्य के विश्विद्यालयों की क्या स्थिति है और उन विश्विद्यालय से एफिलिएशन प्राप्त कॉलेजों में प्रोफेसरों की रिक्तियों एवं कक्षा के संचालन पर नज़र दौड़ाया जाये तो स्थिति बड़ी भयावह है. बिहार के अधिकतर विश्विद्यालय में बुनियादी सुविधाओं की ज़रूरत है जिसके बग़ैर विद्यार्थियों को प्रतियोगी परीक्षाओं के काबिल नहीं बनाया जा सकता. अगर हमें शिक्षा को लेकर पलायन को रोकना है तो सबसे पहला कदम बिहार के सरकारी विश्विद्यालयों की स्थिति में सुधार करना होगा जहाँ पाठ्यक्रम को सुचारू एवं नियमित रूप से चलाने हेतु कई दिशानिर्देश दिये जाने चाहिए एवं ज़मीनी स्तर पर क़ायदे से उसे लागू करने की ज़रूरत है वरना अगर प्रोफेसर का काम कॉलेज में आकर गप्प लगाना एवं साम्प्रदायिकता से भरे हिंदी के अख़बार पढ़ना और छात्रों का काम स्थानीय नेताओं के पीछे घूमना रह गया तो हमें सोंचने की ज़रूरत है कि क्या ये कॉलेज/यूनिवर्सिटी सिर्फ कई तरह के ट्रेनिंग करवाने के एक भवन के रूप में स्थापित किये गए हैं या इसका कोई शिक्षा से सीधा संबंध है भी या नहीं ? ये लेख बिहार की संपूर्ण स्थिति को परिभाषित नहीं करता.

इतना ही काफ़ी नहीं बल्कि बिहार की स्थिति को मापने के लिए और भी बहुत से पहलू हैं जिसे कई आधारों पर देखा जाना चाहिए.

(नेहाल अहमद ट्रेनी जर्नलिस्ट है , बिहार के सीमांचल में रहते हैं वो टीसीएन इंटर्नशिप प्रोग्राम से जुड़े हुए है) 

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