Home India News मेरठ के मावीमीरा गांव से मुस्लिमों के पलायन की कहानी की ज़मीनी...

मेरठ के मावीमीरा गांव से मुस्लिमों के पलायन की कहानी की ज़मीनी पड़ताल

“तक़लीफ़ आज की नही है, बात सरकार की भी नही है अत्याचार लगातार हो रहे हैं  ” 

आसमोहम्मद कैफ़ । Twocircles.net 

23 दिसंबर की रात में मेरठ के मावीमीरा गांव  उधार के पैसे को लेकर हुए कहासुनी के बाद दर्जनों दबंगो एक पक्ष पर हमला कर दिया था। यह घटना सीसीटीवी कैमरे में कैद हो गई थी। पीड़ित पक्ष के पलायन के ऐलान के बाद हरकत में आये प्रशासन ने दबंग पक्ष के 12 लोगों की विरुद्ध मुक़दमा दर्ज कर लिया है। गांव में अब शांति है। आसपास के जिम्मेदार लोगों का कहना है कि यह गुंडागर्दी और दबंगई का मसला है। कानून व्यवस्था का प्रश्न हैं मगर इसका साम्प्रदायिक करण नही होना चाहिए। 

मेरठ से लगभग 15 किमी की दूरी पर मावीमीरा बिल्कुल लावड़ कस्बे से लगा हुआ गांव है। यहां पैदल भी 10 मिनट में पहुंचा जा सकता है, बमुश्किल 500 मीटर। इस गांव की आबादी ढाई हज़ार हैं। गांव में लगभग 700 हिन्दू गुर्जर है और 800 मुसलमान। इस साल ऐसा चार बार हुआ है जब इन दोनों में तनाव हुआ है। शेष में दलित ,सैनी और अन्य है, जिनसे यहां किसी को कोई समस्या नही है।  लावड़ मुस्लिम बहुल कस्बा है,जबकि आसपास के गांवों की चारों तरफ की आबादी गुर्जर बहुल है। लावड़ में राजनैतिक समझ वाले कुछ लोग बताते हैं कि पिछले कुछ सालों में गुर्जरो की अहमियत बहुत बढ़ गई है ,मुस्लिमो के साथ बढ़े तनाव की वजह भी गुर्जर समर्थन को हासिल करनी की होड़ है, गुर्जर समर्थन जुटाने की यह होड़ यहां के विद्यायक संगीत सोम और समाजवादी पार्टी के नेता अतुल प्रधान के बीच चल रही है।

लावड़ मेरठ की सरधना विधानसभा का इलाका है। यहाँ के ‘सज्जन’ लोग मानते हैं कि इन दोनों नेताओं की आपसी खींचतान ने इस शांतिप्रिय इलाके को बारूद के ढेर बैठा दिया है और बाकी कसर माहौल पूरी कर रहा है। लावड़ के सुनील कुमार कहते हैं कि ” मावीमीरा की घटना संभावित पंचायत चुनाव के मद्देनजर शतरंज की बिसात बन गई है। अगले पंचायत चुनाव होने तक ऐसी बहुत सारी घटनाएं सामने आएंगी। इसमे सच और झूठ से ज्यादा सियासत का गंदा खेल होगा, अतुल प्रधान गुर्जर है,उनकी पत्नी पहले जिला पंचायत अध्यक्ष रह चुकी है। भाजपा के विद्यायक संगीत सोम उनके प्रबल प्रतिद्वंदी है। वो गुर्जरो को रिझाने के लिए उन्हें ताक़त दे रहे हैं हो सकता है कि इस मसले में भी ऐसा हो हो रहा हो “।

मावीमीरा के यूनुस मलिक गुर्जरो से झगड़े के बाद बुरी तरह प्रताड़ित हुए हैं।अपने घर के बिकाऊ होने का पोस्टर उन्होंने भी लगाया था। यूनुस हमें फ़ोन से बताते हैं कि वो बेहद तक़लीफ़ में है,उनका दिल रो रहा है। उनके साथ ज़ुल्म हुआ है। पुलिस ने मुक़दमा तो दर्ज कर लिया है मगर धाराएं ऐसी लगाई है कि वो(आरोपी )  ‘शेर’ बनकर घूम रहे हैं। उनका कुछ नही बिगड़ेगा।  एफआईआर यूनुस ने ही दर्ज कराई है। यूनुस बताते हैं कि लोग उनपर समझौता का दबाव बना रहे हैं कुछ कह रहे हैं यहीँ रहना है। दस साल में यह चौथा हमला है, प्रशासन ने एक मामले में भी हमारी मदद नही की है। हम पर समाजवादी पार्टी की सरकार में ऐसी ही ज्यादती हुई, इसमें हम सरकार को दोष नही दे रहे हैं। न ही सब गुर्जर गलत है। वो अच्छे भी हैं। यह पैसे वाले दबंगो की गुंडागर्दी है। कल इनके साथ दूसरा नेता था और आज दूसरी पार्टी का नेता है। हमारा क्या है ! हम तो कल भी पिट रहे थे आज भी पिट रहे हैं। गांव में दलित और सैनी भी रहते हैं उनसे तो कोई झगड़ा नही है ! सब प्यार से रहते हैं। कुछ दबंग गुर्जर है, जिन्हें राजनीतिक समर्थन है। हमें दुःख यह भी है कि जो गुर्जरो में ही अच्छे लोग है वो इनकीं गुंडागर्दी के खिलाफ क्यों नही बोल रहे हैं ! योगी जी कहते हैं कि उन्होंने प्रदेश से गुण्डो को खत्म कर दिया है। यह कैसे गुंडे है। सीसीटीवी में आ रहा है कि वो हमारे घरों पर हमला कर रहे हैं। पत्थर मार रहे हैं और गोली चला रहे हैं मगर पुलिस मुक़दमा में मामूली धारा लगा रही है।

मावीमीरा के सलीम अख्तर कहते हैं आप इस घटना को सांप्रदायिक मत कहिए बल्कि यह कहिए कि एक तरफ प्रभावशाली दबंग गुंडे है और दूसरी तरफ असहाय, कमज़ोर जिनकी प्रशासन भी सुनवाई नही कर रहा है। इन दबंगो को लगता है कि किसी ने उनके सामने बोलना की हिम्मत ही क्यों की ! उसे सबक सिखाया जाना चाहिए। यही कारण है कि सुनवाई न होने पर पीड़ित लोगों ने घर से पलायन करने की बात कह दी ! यह उनका दर्द है। उनके दर्द को समझा जाना चाहिए। उनके दिल को ठेस पहुंची है।

पलायन के पोस्टर लगे मकानों में से एक जुबैर मलिक का भी है। जुबैर ने ही सोशल मीडिया पर अपनी तक़लीफ़ को बताया था। जुबैर बताते हैं कि सारी बात यह है कि वो हमें हमारे घर पर आकर पीट गए। गोली चला रहे थे, पत्थर बाजी कर रहे थे और पुलिस ने हमारी कोई सुनवाई नही की। आज मुक़दमा दर्ज किया तो ऐसी धाराओं में किया है जिसमें घर पर हमला और जान से मारने की नीयत से गोली चलाने की बात गायब है। हवाई फायरिंग की बात कही गई है। यह पूरी तरह भेदभावपूर्ण है। हमारा दिल टूट गया है। आज हो सकता है कि फैसला हो जाए मगर हम अब गांव में नही रहेगें। सोच कर देखिए और पीड़ित को हमलावर की जगह रखकर देखिए,क्या तब भी पुलिस ऐसी ही कार्रवाई करती !  जुबैर बताते हैं कि यह एक मामला नही है ,यहां मुसलमानों को दबकर रहना पड़ रहा है। कब्रिस्तान के एक मामले में कानून को दरकिनार कर हमारा उत्पीड़न किया गया ! इससे पहले की अखिलेश सरकार में भी हमारा उत्पीड़न हुआ। नेता और प्रशासन दबंगो की साथ है हमारी तब भी सुनवाई नही हुई।

दौराला के प्रभारी निरीक्षक किरणपाल सिंह बताते हैं कि पीड़ितों को तत्काल थाना पुलिस को सूचित करना चाहिए था मगर वो पहले उच्च अधिकारियों के पास गए। हमने मुक़दमा दर्ज किया है। पंचायत चुनाव होने वाले है इसलिए घटना को अलग रूप दिया जा रहा है। यह उधार के पैसे को लेकर झगड़ा हुआ। यहां कोई साम्प्रदायिक तनाव नही है। हम तनाव बनने भी नही देंगे। सौहार्द कायम करना हमारी प्राथमिकता है।

लावड़ के चेयरमैन पति हारून अंसारी हालात -ए – हाजरा पर अपनी राय रखते हुए बताते हैं कि लावड़ में तो कोई तनाव नही रहता है मगर पिछले कुछ  सालों से आसपास के गांवों में गुर्जर और मुसलमानों के बीच झगड़े को अलग रुख दिया जाता है,अब पंचायत चुनाव की वजह से ऐसा हो सकता है। यहां गुर्जर और मुसलमान सदियों से मिल जुलकर रहते हैं। यह घटना भी सामान्य घटना है। इसमे दबंगई और गुंडागर्दी तो हुई है मगर इसे साम्प्रदायिक कारण से हुआ हमला नही कहा जा सकता क्योंकि कुछ गुर्जरो ने भी इस घटना की आलोचना की है। यहां इस तरह की घटनाएं होती है तो अधिकतर मामलों में फैसला भी हो जाता है। यह घटनाएं 2013  के बाद से थोड़ी ज्यादा हो रही है । तनाव नही है। दोनों समुदाय की सदियों पुरानी मोहब्बत है।

दौराला के सीओ संजीव दीक्षित बताते हैं पीड़ित मोहम्मद यूनुस की तहरीर पर 12 लोगों के विरुद्ध मुकदमा दर्ज हुआ है। पुलिस पर किसी भी प्रकार के दबाव में आकर काम करने की बात एकदम गलत है। हम निश्चित तौर पर कार्रवाई करेंगे। किसी को भी निराश होने की आवश्यकता नही है। प्रशासन एकदम निष्पक्ष होकर काम कर रहा है।