तन्वी सुमन। Twocircles.net
भारतीय संविधान के धर्म निरपेक्ष स्वरूप को निरस्त करने को लेकर हिंदू महासभा की एक वीडियो सामने आई है जिसमें हिंदू महासभा देश के संविधान की आत्मा पर चोट करने का प्रयास कर रही है। गणतंत्र दिवस को ‘ब्लैक डे’ के रूप में मानती हुई उत्तर प्रदेश के मेरठ जिले की एक वीडिओ वायरल हुई है जिसमें हिंदू महासभा के लोग भारत के संविधान से “धर्म निरपेक्षता” को हटाने की मांग करते हुए इसका विरोध करते दिखाई दे रहे हैं। वायरल हुए वीडियो में महासभा वाले 1947 के विभाजन का दोष महात्मा गांधी और जवाहर लाल नेहरू को दे रहे हैं और इसके साथ ही बिना किसी डर के उन्हें गद्दार बोल रहे हैं। ‘ब्लैक डे’ मनाने के पीछे उनका यह तर्क है कि जिस भारत को हिंदू राष्ट्र का दर्जा मिलना चाहिए था तथा मुसलमानों को खदेड़ भगाना चाहिए था उस भारत ने धर्म निरपेक्षता को चुना जिसको मनाने से वह इन्कार करते हैं।
अखिल भारतीय हिंदू महासभा ने भारत के राष्ट्रपति को लिखे गए पत्र में भारतीय संविधान के धर्म निरपेक्ष स्वरूप को निरस्त करना की मांग की है पत्र के मुताबिक इन्होंने लिखा है कि राष्ट्र हित ही सर्वोपरि है कि कथन को दृष्टिगत कर याचना करते हैं कि 71 वर्ष पूर्ण आज के काले दिन तत्कालीन सत्तालुलोप राजनेताओं ने विधर्मियों व विदेशियों के घृणित षड्यंत्र के सहभागी बन राष्ट्र को छद्म धर्मनिरपेक्ष संविधान प्रदान किया है।
आज के काले दिन हम हिंदू महासभा के कार्यकर्ता आदरणीय जी से राष्ट्र हित में याचना करते हैं कि माननीय प्रधान सेनापति भारत के दायित्वों का वहन करते हुए भारत के वर्तमान संविधान को निरस्त कर, राष्ट्र को धर्म सापेक्ष रूप देकर हिंदू राष्ट्र घोषित करें, क्योंकि इतिहास के भूत और वर्तमान व राष्ट्र के भविष्य का यह निर्णय इतिहास के स्वर्ण अक्षरों में अंकित होगा ऐसा आदरणीय जी से आशा है।
यह संस्था अखिल भारतीय हिंदू महासभा (जिसे सर्वदेशक हिंदू सभा के रूप में जाना जाता है) की स्थापना 1915 में मदन मोहन मालवीय के नेतृत्व में हुई थी। अपनी स्थापना के बाद से ही, स्वतंत्रता संग्राम में महासभा की भूमिका को विवादास्पद के रूप में पढ़ा गया है। ब्रिटिश शासन का समर्थन नहीं करते हुए, महासभा ने राष्ट्र वादी आंदोलन को अपना पूर्ण समर्थन नहीं दिया। इसके साथ ही 1930 के सिविल डिसओबेडिऐंस आंदोलन और 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में भाग लेने से परहेज किया।
वी डी सावरकर के नेतृत्व में महासभा गांधी के मुस्लिमों से बातचीत के प्रयास और कांग्रेस के मुस्लिमों को एकजुट करने के प्रयासों के विरोध में थी। ब्रिटिश शासन के खिलाफ भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन का महासभा ने सक्रिय रूप से समर्थन नहीं किया और आधिकारिक रूप से भारत छोड़ो आंदोलन का बहिष्कार किया। गांधी की हत्या में महासभा की भागीदारी के कारण एक संगठन के रूप में इसकी उपस्थिति देश भर में विवादास्पद रही है।
लेखक व पत्रकार संभू कुमार सिंह ने इस मुद्दे पर अपनी राय रखते हुए बताया कि “हिंदू महासभा का इतिहास देखने पर मालूम चलता है कि किस प्रकार शुरू से ही महासभा वाले रूढ़िवादी और कट्टरपंथी थे। महासभा वाले कभी भी तिरंगा के पक्षधर नहीं रहे। अगर आज महासभा वाले गणतंत्र दिवस को ‘काला दिवस’ के रूप में मना रहें तो यह कोई बड़ी बात नहीं है क्योंकि वह लोग जनतंत्र के पक्षधर कभी थे ही नहीं बल्कि वह तो राजतंत्र लाना चाहते थे। ”