स्टाफ़ रिपोर्टर। Twocircles.net
दूसरों की मदद को सदैव तैयार रहने वाली जामिया मिल्लिया इस्लामिया की असिस्टेंट प्रोफेसर नबीला सादिक की मृत्यु से उनके छात्रों और जानने वालों में मातम का माहौल पसरा हुआ है। अपनी मौत से कुछ दिनों पहले ही उन्होंने ट्विटर के माध्यम से अपने लिए आईसीयू बेड की तलाश को लेकर लोगों से अनुरोध किया था। हालांकि उन्हें बेड तो मिल गई लेकिन देरी होने की वजह से वो बच ना सकीं।
37 वर्षीय, नबीला सादिक की मौत का मुख्य कारण, रिपोर्ट्स के अनुसार, कोविड-19 था। 4 मई को सेहत बिगड़ने की वजह से उन्हें आईसीयू में भर्ती करवाया गया था। जिसके बाद 17 मई, देर रात सोमवार को फरीदाबाद के फोर्टिस अस्पताल में नबीला सादिक ने अपनी अंतिम सांसें लीं, और इस दुनिया को अलविदा कह दिया।
नबीला सादिक के पर्यवेक्षण में पीएचडी कर रही, तन्वी सुमन बताती हैं कि कोरोना से संक्रमित होने के बावजूद 24 अप्रैल तक उनकी और बाकी छात्रों की नबीला सादिक थीसिस, इत्यादि में मदद करती रहीं थी। सुमन बताती हैं, जेंडर स्टडी पढ़ने वाला हर छात्र उनके मार्गदर्शन में ही पीएचडी करना चाहता था।
नबीला अपने माता पिता के साथ वसंत विहार में रहती थी, उनके इकलौते भाई यूएसए में सेटल हैं। “उनके साथ साथ उनके माता पिता के ऊपर भी कोरोना वायरस ने हमला किया था जिससे लड़ते हुए मात्र 10 दिनो पहले उनकी माता (70 वर्ष) का देहांत हो गया था,” सुमन ने बताना जारी रखा।
“उनकी हालत को देखते हुए उनसे उनकी माता के देहांत की खबर छिपा ली गई थी, बावजूद इसके वो शायद अपनी माता से बहुत ज्यादा प्यार करती थीं और उनके बिना यहां रह नही पाई।” सुमन के अनुसार, अब उनके पीछे उनके घर पे बूढ़े पिता (80 वर्ष) अकेले रह गए हैं, जिन्हें होम कोरेंटाइन किया गया है। उनके पिता जेएनयू से रिटायर्ड प्रोफेसर हैं, पहले वो एएमयू में भी पढ़ाते थें। नबीला सादिक की अभी शादी नहीं हुई थी।
तन्वी ने Twocircles.net को बताया कि नबीला सादिक के लिए बेड की तलाश करनी हो चाहे उनके लिए रोज़े के दौरान भी भागदौड़ करके उनका ख्याल रखना, उसमे उनके छात्र वकार, आशुतोष, सऊद वगैरा ने मदद की थी। “नबीला मैडम इतनी प्यारी और हंसमुख थी, के कोई उन्हे पसंद किए बिना रह ही नहीं सकता था इसलिए सभी को उनकी मौत से बहुत बड़ा झटका लगा है।”
सऊद, जो लगातार नबीला सादिक के साथ मौजूद थें, उन्होंने ने कहा कि नबीला सादिक का इलाज पहले अबू फ़ज़ल एनक्लेव में स्तिथ अल शिफा अस्पताल में किया जा रहा था, जहां से कुछ दिनों पहले ही तबियत बिगड़ने के बाद उन्हें फोर्टिस, फरीदाबाद में भर्ती कराया गया था। लेकिन उनका ऑक्सीजन लेवल काफी नीचे आ गया था और रिपोर्ट्स के मुताबिक फेफड़े काफी क्षतिग्रस्त हो गए थें।
अपने सर्किल में कोरोना को लेकर सबसे ज्यादा जागरूक रहने वाली नबीला ने ट्विटर पर हाल ही में दिल्ली की बिगड़ती हुई स्थिति को लेकर चिंता जताई थी, उन्होंने लिखा था, “जिस तेज़ी से मामले बढ़ रहे हैं, वैसे तो दिल्ली में कोई जिंदा नहीं बचेगा।” अगर उनके ट्विटर अकाउंट को देखा जाए तो वहां से भी अंदाजा लगाया जा सकता है की वो कोरोना की वजह से चारों तरफ हो रही मौत से काफी परेशान भी हुआ करती थीं और कामना करती रहती थीं के जल्द से जल्द ये महामारी का अंत हो जाए।
डॉ. नबीला सादिक को जेंडर/नारीवादी सिद्धांतों में महारत हासिल थी, जिसमें – लिंग, जाति और राजनीति; महिला और राजनीति; अंतर्राष्ट्रीय संबंधों में जेंडर की भूमिका; आइडेंटिटी पॉलिटिक्स शामिल हैं।
नबीला ने अपना एम.ए 2005 में पूरा किया था, एम.फिल 2007 में, और उन्होंने अपनी पीएचडी 2013 में पूरी कर रखी थी। हंसराज कॉलेज से इंग्लिश साहित्य ऑनर्स में बी.ए करने वाली नबिला सादिक जामिया में शामिल होने से पहले डीयू में स्नातक के छात्रों को पढ़ाया करती थीं।
उन्होंने साथ ही इग्नू से बी.सी.ए की डिग्री भी हासिल कर रखी थी। उनकी प्रारंभिक स्तर की पढ़ाई उन्होंने वसंत विहार के ही एक स्कूल, होली चाइल्ड ऑक्सिलियम स्कूल से पूरी कर रखी थी।
नबीला के डॉक्टरों के मुताबिक उनके ऊपर दवाओं और उपचार का असर नहीं हो रहा था और सोमवार रात के करीब 11 बजे उनकी मौत हो गई। जिसके बाद मंगलवार को उनके छात्रों और दोस्तों ने मंगोलपुरी में उनके जनाज़े की नमाज़ अदा की और उन्हें सुपुर्दे खाक कर दिया। जहां दस दिन पहले उनकी मां को दफनाया गया था, ठीक उसी कब्र के बगल में उन्हें भी दफना दिया गया।