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राजस्थान से ग्राउंड रिपोर्ट : जातीय भेदभाव के चलते पाली में मरने वाला जितेंद्र मेघवाल पहला दलित नही

राजस्थान् दलितों के उत्पीड़न के लिए नकारात्मक छवि रखता है।
हाल के दिनों में कुछ गंभीर घटनाओं ने इसकी पुष्टि की है। यहां के एक युवक जितेंद्र मेघवाल की मूंछ रखने पर हुई टशन के बाद हत्या काफी शर्मनाक घटना है। ऐसी घटनाओं के पीछे के कारणों Twocircles.Net के लिए सोमू आनंद ज़मीनी सच तलाश रहे हैं …यह रिपोर्ट पढ़िए

“हम बहुत डरे हुए हैं। वे लोग हमारे घर की तरफ अजीब निगाहों से देखते हुए जाते हैं। मेरी मां सदमे में है, वे कुछ नहीं बोल रही। पिताजी पैरालाइसिस के शिकार हैं। मैं उनके पास रहता हूं। मेरे भाई की कमाई से ही मेरा घर चलता था। उसी ने मेरी दोनों बहनों को रीट की तैयारी करने जोधपुर भेजा था। बहनें पढ़ लेती तो उनकी जिंदगी बन जाती। हमारा परिवार संभल जाता लेकिन अब सब खत्म हो गया। उन लोगों ने सिर्फ मेरे भाई की ही हत्या नहीं की बल्कि पूरे परिवार के सपने और उम्मीदों का कत्ल कर दिया।”

यह सब कहते हुए ओमप्रकाश मेघवाल भावुक हो जाते हैं। ओमप्रकाश के भाई जितेंद्र मेघवाल की हत्या जातीय भेदभाव से उपजे एक विवाद में 15 मार्च को कर दी गयी थी। जितेंद्र सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र बाली में कोविड सहायक के पद पर कार्यरत थे। 15 मार्च को जब वे वहां से वापस घर लौट रहे थे, उसी वक़्त मोटरसाइकिल सवार अपराधियों ने बड़े धारदार चाकुओं से हमला कर उनकी हत्या कर दी। जितेंद्र के शरीर पर दो दर्जन से ज्यादा वार किए गए थे। परिवार ने सूरज पाल सिंह और शंकर सिंह राजपुरोहित पर जितेंद्र की हत्या का आरोप लगाया है।

इन्हीं आरोपियों ने 2020 में भी जितेंद्र मेघवाल के साथ मारपीट की थी। ओमप्रकाश बताते हैं “मेरा भाई उस दिन घर के बाहर बैठा हुआ था। सूरज और कमलेश मेरे घर के सामने से गुजर रहे थे, अचानक उन्होंने मेरे भाई को गालियां देनी शुरू कर दी। वे कहने लगे कि तुमने हमें आंख ऊंची कर के कैसे देखा? आंखे नीची कर नीच कहीं के। इतना कह कर उन दोनों ने मेरे भाई के साथ मारपीट शुरू कर दी। मेरा भाई भाग कर घर में घुस गया। मेरी मां उसे बचाने आयी तो उसके साथ भी मारपीट की और मेरी मां के कपड़े फाड़ दिए। फिर आसपास के लोग जमा हो गए तो आरोपी घर से बाहर निकले और जान से मारने की धमकी देते हुए वहां से भाग गए।” जितेंद्र ने इस मामले पर एफआईआर भी दर्ज कराई थी।

मुकदमा दर्ज होने के बाद आरोपियों के पक्ष में कुछ लोग सक्रिय हो गए और उन्होंने जितेंद्र पर समझौते का दबाव बनाना शुरू कर दिया। उन्होंने ऐसा न करने पर जितेंद्र को अंजाम भुगतने की धमकी भी दी। जितेंद्र ने पुलिस अधीक्षक और पुलिस उपाधीक्षक को पत्र लिख कर इसकी जानकारी दी।ओमप्रकाश का आरोप है कि इन शिकायतों पर कोई पुख्ता कारवाई नहीं हुई। अगर कारवाई हुई होती तो आज जितेंद्र जिंदा होता।

मृतक जितेंद्र मेघवाल …
Pic -arrengement

पाली जिले में जातीय भेदभाव के कारण हुई हत्या का यह एकलौता मामला नहीं है। बीते कुछ सालों में सिर्फ पाली जिले में दलितों के खिलाफ गंभीर हिंसक घटनाएं हुई हैं।
दलित युवक चुन्नी लाल मेघवाल की हत्या सिर्फ इसलिए कर दी गई थी कि उसने अपनी बेटी को “बायसा” कह कर बुलाया। सामंती लोगों का कहना था कि अगर एक दलित भी अपनी बेटी को “बायसा” बुलायेगा तो हम अपनी बेटी को क्या कहेंगे? चुन्नी लाल की पत्नी इस हत्या के सदमे को झेल नहीं पाई और छह महीने बाद उसकी मौत हो गई। अपने मां-बाप की मौत का असर बेटी पर इतना हुआ कि उसने अपना मानसिक संतुलन खो दिया।

सामाजिक कार्यकर्ता मोहन मेघवाल की हत्या चुनाव में नामांकन करने के कारण कर दी गयी। मोहन के शरीर पर पहले चाकू से दर्जनों वार किए गए और बाद में उसके जख्मी शरीर पर ट्रैक्टर चढ़ाकर उसकी हत्या कर दी गई। सामाजिक कार्यकर्ता किशन मेघवाल बताते हैं कि गांवों में दलितों को सवर्ण समुदाय के बच्चों को “बन्ना सा” बोलना पड़ता है। दलित दूल्हे घोड़े पर बैठकर नहीं निकल पाते, किसी खुशी के अवसर पर डीजे भी नहीं बजा सकते। दलितों का पहनावा भी तय कर दिया गया है। दलित युवक मूछें नहीं रख सकते, वे अपने नाम में ‘कुंवर’ जैसे शब्द नहीं जोड़ सकते। लेकिन अब दलित युवक इन फरमानों को चुनौती दे रहे हैं। वे उन तमाम चीजों का विरोध कर रहे हैं, जो उनके पहचान की वजह से उन पर थोपी जा रही है। यह उनके साथ हिंसा की बड़ी वजह है।

जितेंद्र मेघवाल को न्याय दिलाने के लिए दलित संगठनों ने सरकार पर दबाव बनाया। भीम आर्मी प्रमुख चंद्रशेखर रावण पीड़ित परिवार से मिलने पाली पहुंचे। दलित समुदाय की इस गोलबंदी के खिलाफ आरोपियों की जाति से आने वाले लोगों ने 35 कौम के बैनर तले 30 मार्च को रैली निकाली और उस रैली में एससी एसटी एक्ट मुर्दाबाद जैसे नारे लगाए।
जितेंद्र के परिवार को 50 लाख रुपये मुआवजा एवं आश्रित को सरकारी नौकरी की मांग को लेकर दलित संगठनों ने 2 अप्रैल से अनिश्चितकालीन धरना देने की घोषणा की थी। लेकिन 1 अप्रैल को जिला प्रशासन ने पाली में धारा 144 लगा दिया।

जितेंद्र के घर पर दुःख जताने पहुंचे लोग …

दलित संगठन इसे पक्षपात मानते हैं। सामाजिक कार्यकर्ता शैलेश मोसलपुरिया कहते हैं कि दलितों के साथ हो रहे अत्याचार के खिलाफ वे एकजुट हो रहे थे। उस दिन अलग-अलग इलाकों से दलित इकट्ठा होते और वे तब तक टिके रहते, जब तक प्रशासन उनकी सारे मांगे नहीं मान लेता। सरकार दलितों-बहुजनों की इस एकता से डर गई और उन्होंने यह कदम उठाया। हालांकि इसी दौरान आरएसएस का पथ संचलन हुआ, प्रशासन ने उस पर कोई करवाई नहीं की। यह प्रशासन के दोहरे रवैये का प्रमाण है।

हालांकि जिला प्रशासन किसी प्रकार के दोहरे व्यवहार से इनकार करता है। पुलिस उपाधीक्षक ब्रिजेश सोनी कहते हैं कि हम कानून व्यवस्था बनाये रखने के लिए जरूरी कदम उठाते हैं। कानून व्यवस्था बिगाड़ने की कोशिश करने वालों पर समान रूप से कारवाई की जाती है। हमने इस मामले में आरोपियों को गिरफ्तार किया है और जांच जारी है। कोई और भी संलिप्त होगा तो उसके खिलाफ कारवाई की जाएगी। बीते 2 अप्रैल को इस घटना पर पीयूसीएल ने एक रिपोर्ट जारी की थी। इस रिपोर्ट के मुताबिक अधिकांश दलितों के पास जमीन नहीं है। वे इन्हीं सामंती लोगों के खेतों में काम कर के अपना जीवन-यापन करते हैं। यह निर्भरता उनके शोषण का बड़ा कारण है।

रिपोर्ट के मुताबिक जितेंद्र मेघवाल के गांव बारवा में दलितों की आबादी 34% है और उनके पास मात्र 1 प्रतिशत जमीन है। गांव की कुल जमीन का 97% हिस्सा राजपुरोहितों के नाम पर है। दलितों की जमीन से दस गुणे ज्यादा जमीन तो चारागाह के लिए है।
गांव में सामंती जातियों के नाम से बस्तियों के आगे बोर्ड लगे हुए हैं। भले उस बस्ती में सभी जाति के लोग रहते हों लेकिन बोर्ड अगड़ी जातियों के नाम का ही लगेगा। दलित ऐसे बोर्ड नहीं लगा सकते। जानकार बताते हैं कि यहां साल दर साल दलितों के खिलाफ अत्याचार बढ़ रहा है।

पाली जिले से इतर राजस्थान के अन्य हिस्सों में भी दलितों के साथ दुर्व्यवहार की घटनाएं सामने आते रहती हैं।
दलित अधिकारियों को भी घोड़ी पर बैठकर बिंदौरी निकालने के लिए पुलिस सुरक्षा की जरूरत पड़ती है। बीते 15 फरवरी को मणिपुर कैडर के आईपीएस सुनील कुमार धनवंत की बिंदौरी निकली थी। उन्होंने एहतियातन पुलिस को सूचना दी थी।

जनवरी महीने में अलवर के चांद पहाड़ी गांव में दबंगो ने दलितों की पिटाई सिर्फ इसलिए कर दी थी कि उन्होंने शादी में डीजे बजाया था। यह इलाका राजस्थान के सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्री टीकाराम जुली का विधानसभा क्षेत्र है। वे खुद इस शादी में शामिल हुए थे। ये घटनाएं राजस्थान में दलितों की स्थिति बयां करने को काफी हैं।

गांव में राजपुरोहितों का दबदबा है …

राजस्थान में बीते 3 सालों में दलितों के खिलाफ अत्याचार के मामले बढ़े हैं। 2019 में दलितों के खिलाफ अपराध के 6794 मामले दर्ज किए गए थे, 2020 में 7017 मामले दर्ज किए गए थे और 2021 में यह आंकड़ा बढ़कर 7524 पहुंच गया। यही स्थिति दलितों की हत्या और महिलाओं के साथ हो रहे बलात्कार की घटनाओं की भी है।

सामाजिक कार्यकर्ता भंवर मेघवंशी टीसीएन से बात करते हुए एक गंभीर तथ्य की ओर इशारा करते हैं। वे कहते हैं कि जातीय भेदभाव की वजह से जान गंवाने वाले दलितों में युवाओं की संख्या अधिक है क्योंकि युवा अब जागरूक हो रहे हैं। वे उस यथास्थिति को चुनौती दे रहे हैं जो सैकड़ों सालों से बनी हुई है। वे अपनी पहचान बना रहे हैं। दलित-बहुजन मुक्ति आंदोलन ने उनके अंदर चेतना जागृत की है। इसलिए वे शोषण का प्रतिकार कर रहे हैं। यह बात सामंती लोगों को रास नहीं आ रही और वे मारपीट और हत्या जैसी घटनाओं को अंजाम दे रहे हैं। जितेंद्र मेघवाल की हत्या इसका एक उदाहरण है। यह सिर्फ मूंछ रखने की वजह से हत्या कर देने का मामला नहीं है। बल्कि यह उस सोच की उपज है जिसमें जाति के आधार पर किसी को ऊंचा और किसी को नीचा समझा जाता है।

3 अप्रैल को पीड़ित परिवार से मिलने चंद्रशेखर रावण और जयंत चौधरी पाली जा रहे थे। लेकिन उन्हें एयरपोर्ट पर रोक दिया गया और वहीं परिवार से उनकी मुलाकात कराई गई। रालोद के प्रवक्ता प्रशांत कनौजिया ने हमें बताया कि हमने प्रशासन से पीड़ित परिवार के एक सदस्य को नौकरी देने, 50 लाख रुपये मुआवजा और परिवार को आत्मरक्षा के लिए शस्त्र लाइसेंस देने की मांग सरकार से की है। हमें आश्वासन मिला है कि आश्रित को जल्द ही सरकारी नौकरी दी जाएगी।
भीम आर्मी के साथ बढ़ती नजदीकी के सवाल पर प्रशांत ने कहा कि पॉलिटिकल एलायंस से ज्यादा जरूरी है कि सोशल एलायंस बने। ताकि दलित, पिछड़े, अल्पसंख्यक, महिला एकजुट होकर एक दूसरे के खिलाफ हो रही घटनाओं का प्रतिकार करे।