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दाग़ अच्छे नहीं : सहारनपुर में जुमे की नमाज़ के बाद कथित हिंसा में आठ मुस्लिम युवकों पर लगे आरोप निकले झूठे

एम. रियाज़ हाशमी Twocircles.net के लिए

आम तौर पर कहा जाता है, ‘पुलिस रस्सी का सांप बना देती है’ लेकिन सांप बनाकर बेकुसूरों के गले में डाल देने को क्या कहेंगे? इस यक्ष प्रश्न का जवाब सहारनपुर में उन युवाओं के परिजन तलाश रहे हैं, जिन्हें पहले कथित उपद्रव के आरोप में मनमाने तरीके से पकड़ा और फिर लॉकअप में डालकर पुलिस हिरासत में पीटा गया। मानवाधिकारों का यह हनन राष्ट्रीय स्तर पर सुर्खियों में आया तो पुलिस ने 24 घंटे के भीतर 135 युवकों को उपद्रव के आरोप में जेल भेज दिया। मीडिया को दिए ब्यानों में लगातार बड़े अफसर कहते रहे कि इन पर एनएसए (नेशनल सिक्योरिटी एक्ट) के तहत कार्रवाई की जाएगी। दो आरोपियों के घरों पर बुलडोजर भी चला दिए गए। पुलिस की तीव्र इन्वेस्टिगेशन उन वीडियो फुटेज और फोटो पर आधारित रही, जिनकी जांच विज्ञान और तकनीक से संभव है। साथ ही जो आरोप लगा, ट्वीटर पर खुद तत्कालीन एसएसपी ने उससे इन्कार किया, लेकिन बाद में जब रिपोर्ट दर्ज करनी पड़ी तो उस ट्वीट को डिलीट कर दिया गया। बहरहाल, पुलिस अपनी कहानी के समर्थन में जब सुबूत पेश नहीं कर पाई तो 8 आरोपियों के मामले में उसे खुद मानना पड़ा कि ये निर्दोष हैं। सुबूतों के अभाव में 22 अन्य आरोपी जमानत पर रिहा हो चुके हैं।

उत्तर प्रदेश के सहारनपुर शहर में 10 जून 2022 की दोपहर जुमे की नमाज के बाद जामा मस्जिद से घंटाघर तक अतिउत्साही मुस्लिम युवकों ने नूपुर शर्मा द्वारा पैगंबर पर अमर्यादित टिप्पणी के खिलाफ बिना इजाजत जुलूस निकाला था। इनका कुसूर कितना था? मोहम्मद अली एडवोकेट कहते हैं, ‘ज्यादा से ज्यादा इन पर सीआरपीसी की धारा 144 (निषेधाज्ञा) के उल्लंघन का मामला बनता था।’ लेकिन दो-तीन मीडिया चैनलों पर ‘सहारनपुर में उपद्रव, पथराव’ की ‘ब्रेकिंग न्यूज’ चली और इन्हें ट्वीट किया गया तो तत्कालीन एसएसपी आकाश तोमर फ्रंटफुट पर आ गए और उन्होंने ट्वीट कर इसका खंडन कर दिया। दिन ढला तो पुलिस के रवैये का रुख भी बदल गया और शाम को उपद्रव व पथराव की एफआईआर दर्ज कर ली गईं। सारे आरोपी अज्ञात थे और वीडियो व फोटो से इन्हें पहचानने के दावे किए जाने लगे। शहर में कथित उपद्रव के आरोप में सुबह तक जिले भर से 185 को गिरफ्तार कर लिया गया। कोर्ट में अब तक की पुलिस की कहानी का यही सार है कि अधिकांश को राह चलते संदेह के आधार पकड़ा, पीटा और उपद्रव का आरोपी बनाकर संख्या पेश कर दी। राजनैतिक हस्तक्षेप के बीच करीब 20 दिन बाद पुलिस ने सीआरपीसी की धारा 169 के तहत जेल में बंद 8 युवकों को क्लीन चिट भी दी, लेकिन पुलिस अभिरक्षा में इनके वायरल वीडियो और मीडिया रिपोर्ट्स व ट्वीटर पर इन्हें ‘दंगाई’ और इनकी पिटाई को ‘रिटर्न गिफ्ट’ करार देकर जो दाग लगाए गए, रिहाई से वे छूट तो जाएंगे लेकिन ‘धब्बे’ नहीं।

पीर वाली गली में रहने वाले मोहम्मद अली जेल से रिहाई के बाद इसी दर्द को लेकर घर पहुंचे। मोहल्ले के लोगों और रिश्तेदारों की भीड़ जुटी। अली लगातार सबको बताते आ रहे हैं, ‘मैंने जुमे की नमाज अपने घर के पास मस्जिद में पढ़ी। इसके बाद एक्टिवा लेने के लिए एजेंसी की तरफ गया। रास्ते में पुलिस पकड़कर थाने ले गई। रात होते ही पिटाई शुरू कर दी। करीब 4 से 5 पुलिसकर्मियों ने लाठियां बरसा रहे थे, जिसमें मेरा हाथ टूट गया।’ पुलिस अभिरक्षा में पिटाई की वायरल वीडियो में मोहम्मद अली भी हैं। वह कहते हैं, ‘मैंने 22 दिन बिना किसी अपराध के जेल में बिताए हैं। मुझे इंसाफ मिलना चाहिए।’ अली के बारे में जानकारी करने थाने पहुंचे इनके चाचा मोहम्मद साजिद को भी पुलिस ने वहीं बैठा लिया और पिटाई के बाद ‘उपद्रवी’ बनाकर जेल भेज दिया, जो अभी भी जेल में हैं।

जेल से रिहा होने वाले दूसरे नौजवान मोहम्मद आसिफ भी पीर वाली गली के रहने वाले हैं। वह कहते हैं, ‘मैं स्कूटी से जामा मस्जिद की ओर से निकल रहा था। तभी दो पुलिस वालों ने बिना कुछ पूछे मुझे पकड़ लिया। थाने ले गए और कहा कि वीडियो फुटेज से चेहरा मिलाएंगे। शाम तक 30-35 लोग हवालात में लाए गए। सभी को 10-10 करके एक कमरे में बुलाया। फिर सभी की पिटाई की गई। मैं सिर्फ इतना चाहता हूं कि पिटाई करने वाले पुलिसकर्मियों पर कार्रवाई होनी चाहिए।’ सुबहान भी इसी कड़ी का हिस्सा हैं। जो अपने दोस्त आसिफ से मिलने थाने पहुंचे और बाइक जब्त कर उन्हें भी हवालात में डाल दिया गया।

रिहाई के बाद उस मंजर को बताते हुए सुबहान की रूह कांप जाती है। बताते हैं, ‘10 जून की शाम को 2 पुलिसकर्मियों ने 10 से 15 मिनट तक लाठियों से पिटाई की। निर्दोष होने की गुहार लगाते रहे, किसी ने भी नहीं सुनी। शरीर पर पिटाई से नील पड़ गए थे। पुलिस की लाठियों ने पांव के तलवों को चलने लायक नहीं छोड़ा। रात में सबको भूखा रखा गया और सुबह उपद्रव का दोषी बनाकर जेल भेज दिया।’

बेगुनाह आसिफ की कड़ी में पुलिस के चौथे शिकार बने गुलफाम मूसा, जो आसिफ के बहनोई हैं। अपने साले के लिए वकील से बात करने जा रहे थे और नखासा बाजार में पुलिस ने दबोच लिया। गुलफाम को भी उपद्रवी बनाकर जेल भेज दिया। रिहाई के बाद निगाहें नहीं उठा पा रहे हैं। कहते हैं, ‘हम जीजा, साले और साले के दोस्तों को एक साथ पीटा गया, जो वायरल वीडियो में दिख रहा है। अब इंसाफ किससे मांगे।’ लेकिन इनकी रिहाई पर निवर्तमान एसएसपी आकाश तोमर कहते हैं, ‘सभी को संदेह के आधार पर गिरफ्तार किया गया था। छानबीन जारी थी, लेकिन ठोस सबूत नहीं मिलने की वजह से हमने कोर्ट में अर्जी दाखिल करवाई। इन्हें छोड़ा गया है। बाकी आरोपियों पर कार्रवाई जारी है।’ लेकिन अब भी ऐसे अनेक युवक जेल में हैं, जो उपद्रव तो दूर की बात है, जुलूस में शामिल होने से ही इन्कार कर रहे हैं।

छत्ता जंबूदास में रहने वाला नदीम ऐसा ही एक नौजवान है, जो बहनोई की मौत के बाद 62 फुटा रोड पर रहने वाली अपनी बहन नसरीन के परिवार को पाल रहा है। 13 जून को उसकी भांजी की बारात आनी थी और 11 जून की सुबह 11 बजे जामा मस्जिद के पास बाजार में शादी का सामान खरीद रहा था। दुकान के भीतर सादे कपड़ों में दो पुलिस वाले आए और इसे जबरन घसीटते हुए ले गए। हवालात में पिटाई के बाद इसे भी जेल भेज दिया गया। नदीम की बहन थाने गई तो उसे भी बैठा लिया गया तो वह बेहोश हो गई। होश आने पर उसने बताया कि उसकी बेटी की बारात आ रही है तो महिला सिपाहियों ने उसे वहां से भगा दिया। नदीम अभी तक जेल में है और नसरीन दुकान के उस सीसीटीवी फुटेज को लिए घूम रही है, जिसमें उसके भाई को दुकान के भीतर से उठाकर ले जाया जा रहा है। इसके अलावा उपद्रव के आरोपी 11 लोगों को जमानत भी मिली, जो शहर की घटना में पुलिस ने पकड़े लेकिन रहने वाले 40 किमी दूर मिर्जापुर कस्बे के हैं।

सर्वदलीय संघर्ष समिति के नेताओं ने पहल करते हुए गिरफ्तारियों का विरोध किया। सांसद हाजी फजलुर्रहमान और पूर्व विधायक इमरान मसूद भी शहर काजी नदीम अख्तर के साथ डीएम व एसएसपी से अलग अलग मिले। इमरान मसूद ने तो बाकायदा एसएसपी को बेगुनाहों की लिस्ट सौंपकर केस खत्म कराने का दावा भी किया था। बाद में इनके समर्थकों ने सोशल मीडिया पर एसएसपी के साथ इमरान मसूद की उस मौके की तस्वीर भी शेयर की, लेकिन जब 11 बेकुसूर युवकों की रिहाई हुई तो सांसद के भतीजे मोनिस रजा जेल के गेट पर इन्हें रिसीव करने पहुंच गए। जवाब में इस तस्वीर को भी सोशल मीडिया पर वायरल किया गया। हालांकि इस राजनीति से व्यथित इंतखाब आजाद एडवोकेट तो उपद्रव की घटना पर ही सवाल उठाते हैं। वह कहते हैं, ‘सहारनपुर में केवल जुलूस निकला और न तो कोई हिंसा हुई, न ही कोई पत्थर चला। फिर इतना तगड़ा पुलिसिया एक्शन क्यों?’ सवाल और भी हैं, लेकिन बड़ा सवाल उन बेगुनाहों का है जिन्हें पुलिस ने ठोक पीटकर दंगाई बना दिया और जेल जाने के बाद पुलिस ने ही उन्हें क्लीन चिट दी। भले ही ये रिहा हो गए और कुछ अन्य भी हो जाएंगे, लेकिन दाग तो दाग ही हैं। कितना भी साफ करेंगे, धब्बा तो रह ही जाएगा।