नेमप्लेट पर नाम लिखने के पीछे भाजपा का एक ही मकसद मुसलमानों को आर्थिक रुप से कमजोर करना?

पूनम मसीह/ TwoCircles.net

सावन का महीना शुरु होने से पहले ही उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में मुसलमानों के लिए प्रशासन द्वारा तुगलकी फरमान जारी किया है। जिसके अनुसार कावड़ यात्रा के दौरान रास्ते में पड़ने वाली सभी दुकानों, होटलों और ठेले-खोमचे पर दुकानदार का नाम लिखा होना चाहिए। ताकि आमुख व्यक्ति के धर्म की पहचान आसानी से की जाए। इतना ही नहीं योगी सरकार ने नॉन वेजिटेरियन दुकानों को भी बंद रखने का आदेश दिया है। पिछली बार मुस्लिमों को वेजिटेरियन दुकानें भी बंद करने को कहा गया था।


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भ्रम न पैदा हो

इस तुगलकी फरमान की शुरुआत यूपी के मुजफ्फरनगर से हुई। जिसके बाद यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने इसे पूरे राज्य में और उत्तराखंड़ में यह नियम लागू किया गया है।

मुजफ्फरनगर के एसपी अभिषेक सिंह का कहना है “कि राज्य सरकार ने इस आदेश का अनुपालन करने को कहा है। जिसका मुख्य मकसद है कांवड़िंयों के बीच किसी तरह का भ्रम न पैदा हो, न ही कोई अप्रिय घटना हो”।

इस आदेश के बाद सोशल मीडिया पर कई तरह के रिएक्शन देखने को मिलें। एक फल विक्रेता की फोटो खूब वायरल हुई। जिसमें निसार फल लिखा हुआ था। इसकी आलोचना के बारे में प्रशासन ने जवाब देते हुए कहा “कि कई हिंदू संगठनों की मांग थी, कि  कांवड यात्रा के दौरान भक्तों को मुसलमान दुकानों से खाने पीने का समान लेना पड़ता है। जिसे लेकर हिंदूवादी संगठन पहले भी हंगामा कर चुके हैं”।

उनका कहना है कि मुस्लिम समाज के लोग हिंदू देवी-देवातओं के   नाम पर फल-जूस इत्यदि की दुकानें खोलते हैं और इस भ्रम में हिंदू ग्राहक वहां चले जाते हैं।

 अब इस फरमान के बाद से ही मुजफ्फरनगर की प्रत्येक दुकान के आगे दुकानदार का नाम लिखा है। यहां तक की ठेले, पान-गुमटी वालों ने भी नाम चस्पा किया है।

सरकार के इस फरमान के बाद से ही मुस्लिम दुकानदारों में डर का महौल है। हमने ऐसे ही कुछ दुकानदारों से बात की है। जो फिलहाल सरकार के इस फैसले से नाखुश तो हैं लेकिन कुछ कर नहीं सकते हैं।

सरकार के इस फैसले के बाद सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को मामले में अंतरिम सुनवाई करते हुए अगली तारीख दे दी है। जिसके बाद लोगों के बीच खुशी का माहौल है।

सरकार के इस फैसले पर रालोद अध्यक्ष व केंद्रीय राज्यमंत्री जयंत चौधरी ने 21 जुलाई को असहमति जताई थी।

वहीं दूसरी ओर एआईएमएमआईएम के राष्ट्रीय अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी ने फैसले आने के बाद ही एक्स पर अपनी प्रतिक्रिया जाहिर करते हुए लिखा था “ उत्तर प्रदेश पुलिस के आदेश के अनुसार अब हर खाने वाली दुकान या ठेले के मालिक को अपना नाम बोर्ड पर लगाना होगा, ताकि कोई कांवडिया गलती से मुसलमान की दुकान से कुछ न खरीद ले। इसे दक्षिण अफ्रीका में अपारथाइड कहा जाता था। और हिटलल की जर्मनी में इसका नाम जुडेनबोयकोट था”।

पहले सेवा देते थे इस बार पीछे हैं

मुजफ्फरपुर में फिलहाल सभी दुकानों के बाहर दुकानदारे का नाम लिखा गया है। कांवड़ यात्रा के रुट पर पड़ने वाली ज्यादातर दुकानों मुसलमानों की हैं। इसमें कुछ मुसलमान ऐसे हैं जिन्होंने बाजार में कई दुकानें बनाकर भाड़ें पर दी हैं।

दिलशाद पहलवान उनमें से एक हैं। जिनकी मुजफ्फरनगर में लगभग 20 दुकानें भाड़ें पर हैं। हमसे बात करते हुए उन्होंने बताया “कि वह पिछले 22 सालों से कांवड़ सेवा का शिविर लगाते हैं। लेकिन इस तरह के फरमान के बाद से हमलोगों ने अपने पैर पीछे कर लिए हैं। हम अपनी पहचान के गले टांगकर तो घूमेंगे नहीं”।

देश में बिगड़ते माहौल को देखते हुए दिलशाद के मन में कई तरह के सवाल और डर भी हैं। वह कहते हैं “सरकार ने इस तरह का फरमान जारी किया है, जिसमें दुकानदारों को दुकानों के बाहर ठेले, खोमचों पर अपना नाम लिखवाना है। ऐसे में अगर हम अपनी श्रद्धा दिखाते हुए हर बार की तरह इस बार शिविर लगा देते हैं। कांवड़ियों की सेवा करते हैं। इस दौरान कई अप्रिय घटना हो जाए तो सारी बात हमलोगों के सर पा जानी है। ऐसे में हमलोग डर से ही इस बार पीछे हट गए हैं”।

दिलशाद एक पहलवान है। वह बताते हैं कि सावन के दौरान भक्तों की तरह-तरह से सेवा की जाती है। मैं स्वयं पहलवान हूं, इसलिए यात्रा के दौरान कई बार लोगों को नशों में खिंचाव आ जाता है या लोग ज्यादा थक जाते। ऐसे कई भक्तों को मैं स्वयं मालिश करता हूं। ताकि किसी को भी जल ले जाने में परेशानी न हो।

बराबरी का हक नहीं

वहीं दूसरी ओर सोशल मीडिया पर वायरल एक फोटो निसार  फल वाले निसार का कहना है कि यह आम तो हिंदू पेड़ के हैं न ही मुसलमान। यह तो आम के पेड़ के हैं। प्रशासन द्वारा दिए गए फरमान से वह दुखी हैं।

वहीं चालीस साल से चाय की दुकान चला रहे अनीस अहमद का कहना है कि जिस देश में हमें बराबरी का हक दिया गया है। वहां इस तरह का फरमान बहुत दी दुःखद है। मेरे दुकान पर सभी मजहबों के लोग आते हैं। सावन के दौरान कांवड़ यात्री भी चाय पानी पी कर जाते हैं। मैं स्वयं उनकी सेवा करता हूं। लेकिन इस बार ऐसा डर का माहौल पैदा कर दिया गया है कि एक भी व्यापारी पुलिस से इस फरमान पर बात करने को नहीं गया।

मुसलमान स्टॉफ को होटलों से हटाया गया

यूपी सरकार द्वारा 22 जुलाई को शुरु होने वाली कांवड़ यात्रा के लिए जारी किए फरमान पर पैगाम-ए-इंसानियत के आसिफ राही का कहना है कि वह पिछले 16-17 साल से शिविर लगाते थे। बीच में सिर्फ कोरोना के दौरान ही तीन साल तक शिविर बंद रहा। उसके बाद फिर शुरु हुआ।

वह बताते हैं कि मीनाक्षी चौक मुजफ्फरनगर का मुस्लिम बहुत इलाका है। कांवड़ यात्रा यही से होकर गुजरती हैं। यहीं हमलोग शिविर लगाते हैं।  जिसमें कांवड यात्रियों के खाने-पीने से लेकर फोन चर्जिंग तक की व्यवस्था की जाती थी। अगर कोई थक जाता था तो सोने की भी व्यवस्था होती थी। ताकि किसी भी भक्त को किसी भी तरह की परेशानी न हो।

आसिफ बताते हैं कि पिछले साल भी इस तरह से नाम लिखने के बात हुई थी। लेकिन इतने बड़े स्तर पर नहीं थी। फिर भी हमने नहीं लगाया था। इस बार शिविर लगाने की पूरी तैयारी थी, अब इस तरह के आदेश के बाद तो लगा पाना नामुनकिन है। स्थिति ऐसी है कि हमारे यहां जिन हिंदू होटलों को में मुस्लिम कर्मचारी काम करते हैं उन्होंने फिलहाल के लिए निकाल दिया गया है। आगे उन्हें काम पर रखा जाएगा कि नहीं इसकी कोई सूचना नहीं है।

पुलिस द्वारा दिए गए आदेश के बारे में पूछने पर वह कहते हैं कि हो सकता है कि प्रशाशन लॉ एंड ऑर्डर को मैनेज करने के लिए ऐसा कर रही हो। लेकिन जहां तक मुझे याद है कभी भी सावन के दौरान ऐसी कोई घटना नहीं हुई है। जिससे लॉ एंड ऑर्डर की स्थिति पैदा हो जाए।

इस बारे में दिल्ली यूनिर्वसिटी के प्रोफेसर अपूर्वानंद का कहना है कि “बीजेपी सरकार पिछले दस सालों से हिंदूओं को मुसलमानों और ईसाईयों के खिलाफ भड़काने की कोशिश कर रही है। जिसमें मुसलमानों को ज्यादा टारगेट किया गया है”।

हिंदूओं के बीच मुसलमानों के प्रति एक हीनभावना प्रकट की जा रही है। जिसमें कई सालों से उन्हें बताया जा रहा है कि मुसलमान सब्जी वाले, फल वाले समान में थूक लगाकर बेच रहे हैं। जिससे ये लोग आपको अपवित्र कर रहे हैं।

नामप्लेट की चर्चा इस बार हुई है। जबकि पिछले कई सालों से नॉन वेज और वेज की बहस चल रही है। जिसमें पवित्र महीने के नाम पर नॉनवेज की दुकानों बंद करवा दी जाती हैं। जबकि नॉनवेज की ज्यादातर दुकानों मुसलमानों की हैं।

इस तरह से बीजेपी की सरकार हिंदू और मुसलमानों की बीच एक कॉमन स्पेस को खत्म कर रही है जहां दोनों समुदाय के लोग बहुत सारे पूर्वाग्रह के बावजूद भी एक साथ रहते हैं।

उनका कहना है कि सात्विक भोजन के नाम पर कर्मचारियों के नाम होटलों के बाहर लिखने का आदेश दिया गया। जिससे लोग यह जान पाएं कि वह किससे हाथ का खाना खा रहे हैं। इस तरह से हिंदू और मुसलमानों के प्रति भेदभाव प्रकट किया जा रहा है।

इसी घटना के बाद कई हिंदू होटलों से मुसलमान कर्मचारियों के निकाल दिया गया। यह पूरी तरह से एक समुदाय को आर्थिक रुप से कमजोर करने की कोशिश की जा रही है। ताकि कोई कुछ न कह सकें।

वहीं दूसरी ओर मुसलमानों पर लगातार होते हमले और इस प्रकार के आदेश पर ऑल इंडिया मुस्लिम मजलिस-ए-मुशावरत के पूर्व अध्यक्ष नावेद हमीद का कहना है कि “मुझे इस फैसले से कोई हैरानी नहीं हुई है। यूपी की योगी सरकार या केंद्र की भाजपा सरकार हो, दोनों ही अपने वोट बैंक को साधने के लिए ऐसा कोई मौका नहीं छोड़ती हैं जहां मुसलमान का टारगेट किया जा सके”।

भाजपा की राजनीति सीमाओं के हिसाब से बदलती रहती है। पूर्वोत्तर में ईसाई , ओडिशा, छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश में आदिवासी और यूपी, राजस्थान, हरियाणा में मुसलमान इनके निशाने पर रहते हैं।

मुजफ्फरनगर में जो कुछ वह मुसलमानों के संवैधानिक अधिकार तहत धारा 16(4) और 16(2) के विरुद्ध काम किया है। जो एक समुदाय के अजीविका का अधिकार के पूरी तरह से हमला है।

इतना ही नहीं मुजफ्फनगर की पुलिस द्वारा हिंदू दुकानों में जाकर मुसलमान कर्मचारियों को हटाए जाने के लिए कहना यह दर्शाता है कि इसके पीछे कोई बड़ा कारण है। जो मुसलमानों की आर्थिक बहिष्कार की सरंचना है।

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