डेचेन डोलकर
लद्दाख : रूस, कनाडा, अमेरिका और यूरोप के अन्य देशों में खेले जाने वाला ‘आइस हॉकी’ अब धीरे-धीरे भारत में भी लोकप्रिय होता जा रहा है. इन दिनों लद्दाख की लड़कियों पर इसका जादू सर चढ़कर बोल रहा है.
जिस तरह से उत्तर भारत में क्रिकेट लोकप्रिय खेल है, ठीक वैसे ही लद्दा़ख में आइस हॉकी. दरअसल भारत में इस खेल की शुरूआत सन् 1975 में हुआ. लद्दा़ख की बात करें तो यहां सेना ने इस खेल की शुरुआत की थी.
हालांकि लद्दाख के युवा प्राकृतिक रूप से जमे हुए तालाब पर केवल ढ़ाई महीने ही ये आइस हॉकी खेल पाते हैं, क्योंकि यहां इसे खेलने के लिए कोई विशेष स्थान नहीं है. बावजूद इसके यहां के युवा आइस हॉकी में भारत का प्रतिनिधित्व दुनिया भर में कर रहे हैं.
लड़कों के टीम ने छह बार एशिया कप में भाग लिया है. इस साल यह टीम कुवैत गई थी, जहां उसने रजत पदक हासिल किया. जबकि महिला आइस हॉकी टीम ने पिछले साल और इस साल को मिलाकर सिर्फ़ दो बार भाग लिया. इस साल महिला टीम एशिया कप में भाग लेने के लिए थाईलैंड गई थी.
साल 2017 में आयोजित होने वाले एशिया कप में भारत का प्रतिनिधित्व करने वाली टीम इंडिया की सदस्य के रूप में भाग लेने वाली 16 साल की ताशी डोलकर एक बेहतरीन खिलाड़ी हैं. उन्होंने अपनी क्षमता मलेशिया के ख़िलाफ़ एक मैच में दो गोल करके साबित किया. इस मैच में भारत ने जीत हासिल की और ताशी को “प्लेयर ऑफ़ दी मैच” से सम्मानित किया गया.
ताशी ने आइस हॉकी 2011 से खेलना शुरू किया है. वह अपने खेल को लेकर बताती हैं, मैंने आइस हॉकी अपने दोस्तों से सीखा, जब मैं SECMOL (स्टूडेन्ट एजुकेशनल एण्ड कल्चरल मूवमेंट ऑफ़ लद्दाख) की छात्रा थी. उस समय ‘सेकमौल’ में विदेश से आए वॉलेन्टियर के रुप में एक कोच ने सर्दियों के महीने में हमें आइस हॉकी का प्रशिक्षण दिया. मगर परेशानी तब हुई, जब मुझे आइस हॉकी उपकरण की आवश्यकता थी. क्योंकि हमारे लिए आइस हॉकी के महंगे सामान खरीदना असंभव था, लेकिन क़िस्मत से बाहरी देशों से आए छह पर्यटकों का ‘सेकमौल’ आना हुआ और उन्होंने आइस हॉकी के लिए काफ़ी अच्छे और उपयोगी उपकरण दान में दे दिए.
वह कहती हैं, मेरे लिए सबसे महत्वपूर्ण और खुशी का दिन वह था जब मैंने एशिया कप के मैच में मलेशिया के ख़िलाफ़ अच्छा प्रदर्शन करते हुए भारत को जीत दिलाई.
ताशी का आगे कहना है कि, आइस हॉकी के खेल ने मुझे मौक़ा दिया कि दूसरे देशों के लोगों से मिल सकूं, मेरी अब इच्छा है कि अधिक से अधिक महिलाएं लेह में खेलकूद का हिस्सा बनें. मुझे आशा है कि आइस हॉकी हमारे देश में क्रिकेट की तरह लोकप्रिय होगी.
वहीं भारतीय आइस हॉकी टीम की 23 वर्षीय सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ी ज़ेवांग चुस्किट अपने खेल की शुरुआत के बारे में बताते हुए कहती हैं, जब मैं छोटी थी तो अक्सर नदी पर तिब्बत के सैनिकों और लद्दाख स्काउट को आपस में आइस हॉकी खेलते देखा करती थी. मैंने पहली बार 11 साल की उम्र में आइस हॉकी टीम का जूता पहना था. मेरा पहला टूर्नामेंट नेशनल वीमेन चैंपियनशिप था.
ज़ेवांग चुस्किट को इस साल थाईलैंड एशिया कप के दौरान “मोस्ट वैल्युबल प्लेयर” पुरस्कार मिला है.
भारतीय महिला आइस हॉकी टीम के कप्तान रीनचीन डोलमा अपने अनुभवों को साझा करते हुए कहती हैं, मेरे पिता आइस हॉकी खेलते थे. उन्होंने ही मुझे आइस हॉकी खेलना सिखाया और यह भी व्यावहारिक रूप से बताया कि आइस हॉकी खेलने के लिए विशेष जूते पर क़ाबू कैसे पाया जाता है. कुछ दिनों बाद विशेषज्ञ प्रशिक्षण प्राप्त करने के लिए लद्दाख वेनटर स्पोर्ट्स क्लब (LWSC) द्वारा लगाए गए प्रशिक्षण शिविर में भी भाग लिया.
वो बताती हैं, मैंने 2003 में अपना पहला टूर्नामेंट जीता था. वह एक स्थानीय टूर्नामेंट था. जबकि मेरी पहली राष्ट्रीय टूर्नामेंट साल 2005 में कारगिल में आयोजित हुई थी.
भारतीय आइस हॉकी टीम के बारे में वह बताती हैं, इस साल मार्च के महीने में ‘आइस हॉकी चैलेंड कप ऑफ एशिया’ के लिए हम लोग थाईलैंड गए थे. जहां सात देशों की टीमों ने भाग लिया था, जिनमें सिंगापुर, मलेशिया, यूएन, थाईलैंड, न्यूजीलैंड, फ़िलिपींस और भारत शामिल थे.
वो बताती हैं कि, भारतीय टीम ने मलेशिया और फ़िलिपींस के ख़िलाफ़ जीत दर्ज की थी. हम सभी टीमों के ख़िलाफ़ जीत हासिल करना चाहते थे. लेकिन हमारे पास एक स्थायी कोच नहीं है. इस साल हमने किर्गिज़स्तान में केवल दो सप्ताह का प्रशिक्षण लिया था.
कप्तान डोलमा कहती हैं, हमारी टीम को पूरे साल अभ्यास करने का मौक़ा नहीं मिल पाता है, क्योंकि बर्फ़ केवल दो ढाई महीने ही होती है.
सच तो यह है कि संसाधन न होने के बाद भी लद्दाखी महिलाओं के प्रदर्शन और उनके उत्साह में कहीं कोई कमी नज़र नहीं आती. ऐसे में आवश्यक हो जाता है कि आइस हॉकी में बेहतर और प्रदर्शन के लिए महिलाओं को अधिक से अधिक संसाधन उपलब्ध कराए जाएं. (चरखा फीचर्स)