मीना कोटवाल, Twocircles.net
संकरी गलियां, बहती नालियां और साइड में रखा नालियों से निकला मलबा। दिल्ली की ज्यादातर झुग्गियां शायद ऐसी ही दिखती हैं। सर्दी में धूप का मज़ा लेती कुछ औरतें, खेलते बच्चे और कम जगहों का ज़्यादा से ज़्यादा इस्तेमाल कैसे हो सकता है, यहां के लोगों से सीखा जा सकता है।
“मुझे मतलब नहीं कोई भी सरकार बने लेकिन हमें तो काम से मतलब है। इस सरकार ने काफ़ी सहूलियत दी हैंं। इसलिए अभी हम चाहते हैं मौजूदा सरकार ही आगे तक जाए, इससे पहले वाली सरकार ने हमें रहने के लिए छत दी। हम गरीबों को छत मिली उससे ज्यादा और क्या हो सकता है.”
ये शब्द हैं सुशीला के, जो आसपास की गंदगी पर कहती हैं कि गंदगी तो बहुत होती है अगर इसकी भी सफाई हो जाए तो थोड़ी बीमारी कम होने का डर भी कम होगा। सुशीला डॉ. आंबेडकर नगर में बसे डॉ. आंबेडकर कैम्प में रहती हैं। यहां लगभग पचास से साठ घर होंगे और यहां के क़रीब सभी लोगों का एक जैसा ही मानना है।
ये कैम्प एक पार्क के पास ही है, जहां काफ़ी गंदगी फैली हुई है. उसी गंदगी और गायों के बीच एक पार्टी अपना जोर-शोर से प्रचार प्रसार करने के बाद एकजुट हुई है.
दिल्ली में शनिवार यानि आठ फ़रवरी को 70 सीटों के लिए वोट डलने हैं। 2015 में बहुमत से आम आदमी पार्टी ने सरकार बनाई थी। आम आदमी पार्टी अन्ना हजारे के आंदोलन से निकली हुई पार्टी है।
दिल्ली में 70 में से 12 आरक्षित सीट हैं, जिन पर अनुसूचित जाति (SC) उम्मीदवार खड़े हैं। अम्बेडकर नगर विधानसभा क्षेत्र इन्हीं में से एक हैं, जहां अधिकतर लोग बहुजन समुदाय से ताल्लुक रखते हैं। 1993 में पहली बार इस विधानसभा पर चुनाव हुए थे। तब से लेकर2013 तक कांग्रेस का ही वर्चस्व यहां कायम रहा। साल 2013 में आम आदमी पार्टी एक उभरती हुई पार्टी के रूप में आई और 28 सीट पर जीत हासिल की। उस समय कांग्रेस के समर्थन से अरविंद केजरीवाल ने दिल्ली के मुख्यमंत्री के रूप में सत्ता संभाली। लेकिन 49 दिनके बाद ही केजरीवाल ने मुख्यमंत्री के पद से इस्तीफ़ा दे दिया। 2015 में एक बार फिर चुनाव हुए जिसमें अरविंद केजरीवाल की पार्टी आप ने 70 में से 67 सीट के साथ ऐतिहासिक जीत हासिल की। बाक़ी की तीन सीट भारतीय जनता पार्टी के खाते में गई। 14 फरवरी2015 को अरविंद केजरीवाल दूसरी बार दिल्ली के मुख्यमंत्री बने।
डॉ. आम्बेडकर नगर विधानसभा क्षेत्र से आम आदमी पार्टी ने अपने मौजूदा विधायक अजय दत्त को ही चुनाव मैदान में उतारा है। बीजेपी से खुशीराम चुनार, कांग्रेस से यदुराज चौधरी और बसपा (भारतीय समाज पार्टी) से सतीश खड़े चुनाव लड़ रहे हैं। 2013 से पहले इस सीटपर कांग्रेस से यदुराज चौधरी के पिता प्रेम चौधरी ही लगातार जीतते रहे थे।
डॉ. आंबेडकर कैम्प से थोड़ी ही दूर पर लोहारों की झोपडियां है।लोहारों ने अपनी झुग्गियां सड़क किनारे ही बसा रखी हैं। ये लोग पिछले लगभग 45 साल से यहीं रह रहे हैं। यहां के रहने वाले हंसराज लोहार 38 साल के हैं। ईनका जन्म यहीं हुआ है। वे बताते हैं कि यहां कीसबसे ज्यादा दिक्कत शौच की होती थी लेकिन बीते साल वो भी बन गया। अब हर झोपड़ी का अपना शौचालय है।
हंसराज आगे कहते हैं, ”हमें और हमारी जाति के लोगों को जो सम्मान देगा और जो हमें बसाएगा, हमारे लिए वही अच्छा है।सबको प्लॉट दिए जाते हैं, हमें अभी तक कुछ नहीं दिया गया। कई बार इन झोपड़ियों को तोड़ने आने पर हमें नेताओं के आगे-पीछे भागना पड़ा है। बसकिसी तरह अपने सिर की छत बचानी पड़ती है। हम भी यहां सड़क पर नहीं रहना चाहते। हमने तो अपना जीवन काट लिया लेकिन हमारे बच्चे यहां ना रहे। हम यही चाहतज हैं। हमें भी सम्मान और छत मिले। यहां हर पल यही डर लगा रहता है पता नहीं कब कोई सरकारीआदमी आकर इन्हें तोड़ ना दे। सरकार तो बदल रही हैं लेकिन हमें हमारा घर नहीं मिल रहा जिसे हम बिना डर के अपना कह सकें।”
जिस सड़क पर इस समुदाय ने अपना
हाज़िर मोहम्मद का मानना है कि
उन्हीं के साथ में खड़े ज़हीर अ
यहां के अधिकतर लोग सीएए नागरिकता संशोधन क़ानून से खफ़ा नज़र आए। अहमद बताते हैं कि सरकार इसके ज़रिए को लाकर हिंदू मुस्लिम को
एक महिला छोटी सी दुकान चलाती है।हाल ही में वो पंजाब से यहां ब
थोड़ी ही दूरी पर एक अन्य महिला
वो बताती हैं, ‘हम हमेशा कांग्रेस के साथ ही थे, जिनकी बदौलत हमें रहने को घर मिला।लेकिन जब
दिल्ली में सभी तरह के लोग रहते