नेहाल अहमद । Twocircles.net
राष्ट्रीय जनता दल ने बुधवार की दोपहर को बिहार विधानसभा चुनाव के पहले चरण के लिए कुल 42 विधानसभा उम्मीदवारों की आधिकारिक सूची जारी कर दी है. इन 42 विधानसभा क्षेत्रों के उम्मीदवारों की सूची में हैरान करने वाली बात ये है कि राजद ने इन 42 में केवल 3 मुस्लिम उम्मीदवार उतारे हैं. बाँका विधानसभा से जावेद इक़बाल अंसारी को उम्मीदवार घोषित किया गया है. वहीं रफीगंज विधानसभा (औरंगाबाद) से मोहम्मद नेहालुद्दीन और गोविंदपुर विधानसभा (नवादा) से मोहम्मद कामरान को उम्मीदवार घोषित किया गया है.
बांका विधानसभा से कुल आठ प्रत्याशियों ने आज बुधवार को नामांकन किया जिसमें राजद से जावेद इक़बाल अंसारी भी एक हैं. जावेद इक़बाल अंसारी लालू प्रसाद यादव का संबंध कोई नया नहीं है. लालू प्रसाद यादव के ज़िम्मे में जावेद अंसारी 3 बार एमएलए बनें और पर्यटन मंत्री भी रहे. कुछ ही महीने पहले जून में जदयू के एमएलसी पद से सिद्धान्तों को कारण बता इस्तीफा देकर फिर से जावेद इक़बाल अंसारी से राजद का दामन थाम लिया था.
रफीगंज विधानसभा (औरंगाबाद) से मोहम्मद नेहालुद्दीन आरजेडी उम्मीदवार भी नये नहीं हैं. वर्ष 2005 में इस सीट पर उन्होंने कब्जा जमाया था. 2010 और 2015 में हुए चुनाव में जीत हासिल कर जेडीयू ने इस सीट पर फिलहाल अपना कब्जा जमा रखा है. रफीगंज सीट पर पिछले दो चुनावों से जेडीयू का कब्जा है. 2010 के चुनाव में राजद के मो. नेहालुद्दीन को जेडीयू के अशोक कुमार सिंह ने मात दी थी. अशोक कुमार सिंह को 58501 मिले थे, वहीं मो.नेहालुद्दीन को 34816 वोट हासिल हुए थे. इस चुनाव में हार का अंतर 23685 मतों का रहा था. 2015 में एलजेपी के प्रमोद कुमार (53372 वोट) को मात देकर जदयू के अशोक कुमार सिंह (62897) इस सीट पर विराजमान हुए थे.
गोविंदपुर विधानसभा (नवादा) से कभी पिता तो कभी बेटा, सास-बहू भी एमएलए रहीं. गोविंदपुर सीट पर 40 साल से एक ही परिवार का दबदबा रहा. यादव मतदाताओं की बहुलता की वजह से इसे बिहार का ‘मिनी मधेपुरा’ भी कहा जाता है. सियासी आंकलन के मुताबिक यहां सबसे ज्यादा यादवों के करीब 70 हजार वोट हैं. उसके बाद मुस्लिमों के करीब 30 हजार वोट हैं. दलितों का भी करीब 70 हजार वोट इस इलाके में है. इनमें सबसे ज्यादा मांझी और राजवंशी के 25-25 हजार वोट हैं. अगड़ी जाति में भूमिहारों के करीब 20 हजार जबकि राजपूतों के करीब 8 हजार वोट इस इलाके में हैं. इस बार फिर इस सीट से यादव दंपति पूर्णिमा यादव ताल ठोक रही हैं लेकिन चुनाव चिह्न हाथ की जगह तीर हो चुका है. उनके खिलाफ राजद से मोहम्मद कामरान हैं. देखना ये दिलचस्प होगा कि इस परिवार की गहरी पैठ को मोहम्मद कामरान आखिर तोड़ पाते हैं कि नहीं और अगर तोड़ पाते हैं तो आखिर कैसे ? अगर इस पैठ को मोहम्मद कामरान तोड़ते हैं तो यकीन जानिये कि कई लोगों को इससे मनोवैज्ञानिक बल मिलेगा और राजनीति में ऐसे कई लोगों लड़ने हेतु टूटता हौसला मज़बूत हो सकता है.
स्थानीय निवासी अरशद अहमद कहते हैं कि सेकुलरिज़्म के नाम पर मुसलमानों को ठगने का काम जारी है. राजद के लिए काम करने वाले मीरान हैदर हों, या फिर शरजील इमाम हों या आसिफ़ इक़बाल तन्हा किसी के लिए राजद खड़ा होने को तैयार नहीं हैं. विशेष तौर पर राजद के लिए मीरान हैदर ने तो बहुत कार्य किया है. क्या छात्रों के आक्रोश को तेजस्वी यूँ ही नज़रअंदाज़ कर देंगे ? क्या भारत का मुसलमान बीजेपी की वजह से अपना कीमती वोट किसी को भी दे देगा ? भारत के मुसलमानों को इस बात पर ग़ौर करना चाहिए कि अपने आपको सेकुलर कहने वाली पार्टियां अपने मुसलमान जनप्रतिनिधियों को कितना छूट देती है और किसी बिल पर किसी मुद्दे पर उन्हें कितना चुप रहना और कितना बोलना है ये कहाँ से तय होता है और उन मुस्लिम नेताओं से मुसलमानों को कितना फायदा होता है !