आकिल हुसैन। Twocircles.net
नये साल की सुबह हल्द्वानी के मुस्लिम बहुल वनभूलपुरा इलाके के लोगों के लिए बैचेनी लेकर आई थी। वनभूलपुरा इलाके के 4,365 मकानों को घर खाली करने का सार्वजनिक नोटिस मिला है। इनमें अधिकतर मकानों में गरीब तबके के लोग रहते हैं जो रोज मेहनत करके परिवार का पेट पालते हैं। घर हटाने का नोटिस मिलने के बाद लगभग 5000 परिवारों की रातों की नींद गायब हो चुकीं हैं। जनवरी की इस कड़कड़ाती ठंड में अपनी छत बचाने को लेकर सड़कों पर हैं। दरअसल उत्तराखंड हाईकोर्ट ने एक जनहित याचिका पर फैसला देते हुए 78 एकड़ में फैली इस बस्ती को रेलवे की भूमि माना हैं, जिसके बाद बस्ती को अतिक्रमण बताते हुए हटाने के आदेश दिए हैं।
20 दिसंबर 2022 को एक जनहित याचिका पर उत्तराखण्ड हाईकोर्ट ने 78 एकड़ की भूमि को रेलवे के पक्ष में अधिग्रहण करने का फैसला सुनाया था। हाईकोर्ट ने वनभूलपुरा इलाके में जिन मोहल्लों को रेलवे की ज़मीन पर माना हैं उसमें गफूर बस्ती, इन्दिरा नगर, किदवई नगर, नई बस्ती शामिल हैं। इन चार मोहल्लों में लगभग 4,365 मकान हैं जिसमें करीब 50 हज़ार लोग आजादी के बाद से रहते आए हैं। कुल आबादी में 80 प्रतिशत आबादी मुसलमानों की हैं। यहां के लगभग 70 प्रतिशत लोग ग़रीबी रेखा पर जीवन यापन करते हैं। यानी की रोज खाते और रोज कमाते हैं, इसके अलावा वो जीवन यापन के लिए सरकारी योजनाओं पर भी निर्भर रहते हैं।
78 एकड़ में फैला वनभूलपुरा का यह इलाके हल्द्वानी रेलवे स्टेशन के पास स्थित हैं। हाईकोर्ट ने इसे रेलवे की संपत्ति बताते हुए वहां की बस्ती को अतिक्रमण बताया है। जिस 78 एकड़ ज़मीन पर रेलवे दावा कर रहा है वहां लगभग 100 सालों से लोग रह रहे हैं। 78 एकड़ में फैले इलाके में लगभग 4300 मकानों के अलावा दो मंदिर, 8 मस्जिद, 2 गेस्ट हाउस, 3 सरकारी स्कूल और 5 प्राइवेट स्कूल के अलावा कई धर्मशाला भी है।
हाईकोर्ट के आदेश के मुताबिक बस्ती को खाली करने के लिए एक हफ्ते का समय दिया गया है, अगर समय सीमा के अंदर लोगों ने इलाके को नहीं खाली किया तो बुलडोजर के दम पर 50 हज़ार लोगों के आशियाने को जमींदोज कर दिया जाएगा। वहीं वनभूलपुरा के लोग अपने घरों को बचाने को लेकर सड़कों पर उतर आए हैं और सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। इलाके में मुस्लिम समुदाय की अधिक संख्या होने के चलते मुस्लिम समुदाय के लोग अधिक संख्या में सड़कों पर हैं, वो कैंडल मार्च निकालकर विरोध जता रहे हैं तो कभी ख़ुदा से उम्मीद लगाकर घरों को बचाने की गुहार लगा रहे हैं। विरोध कर रहे लोगों का कहना है कि हम लोग सालों से यहां रह रहे हैं, इस तरह हमें क्यों निकाला जा रहा है।
वनभूलपुरा के अमान फारूकी जूते-चप्पल की दुकान लगातें हैं। पिछले कई दिनों से अमान दुकान को बंद करके अपना घर बचाने के लिए सड़कों पर बैठे हैं। अमान Two Circle.net से बताते हैं कि उनका परिवार यहां उनके परदादा के समय से रह रहा है, उनको खुद यहां रहते हुए 35 साल हो गए हैं। पूरे इलाके में अधिकतर लोग ग़रीब तबके से हैं जो मज़दूरी करके परिवार को पालते हैं लेकिन किसी ने गरीबों के बारे में नहीं सोचा।
अमान बताते हैं कि 2016 में रेलवे ने कहा था कि सिर्फ 22 एकड़ रेलवे की जमीन पर कब्जा हैं लेकिन उस समय तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने कोर्ट में हलफनामा देकर बताया था कि यह पूरी ज़मीन सरकार के अधीन है न कि रेलवे के। 2016 में सरकार ने इस भूमि को नजूल की माना था। वो कहते है कि जो ज़मीन 6 साल पहले तक सरकार की थी वो अब रेलवे की कैसी हो गई और मौजूदा सरकार ने जानबूझ कर इस मामले में हाईकोर्ट में कोई जवाब नहीं दाखिल किया था जिससे यह ज़मीन रेलवे को अधिकृत हो जाए।
अमान कहते हैं कि 2016 में ज़मीन सरकार की थी और मौजूदा सरकार कह रही है इस ज़मीन से उनका कुछ लेना देना नहीं है। उत्तराखंड की बीजेपी सरकार इसलिए इस मामले से कन्नी काट रहीं हैं क्योंकि यहां मुस्लिम समुदाय के मकान अधिक हैं और एक तरह से देखा जाए तो मुस्लिम बस्ती होने के कारण सरकार की मंशा इस बस्ती को उजाड़ने की है। वो कहते है कि सरकार हमारे साथ नाइंसाफी कर रही हैं, बच्चे बूढ़े सब सड़क पर हैं कम से कम बच्चों के बारे में सोचना चाहिए, सर्दी में छत चली गई तो कहां जाएंगे और कहा रहेंगे।
घर खाली करने नोटिस पाने वालों में अब्दुल मतीन भी शामिल हैं। अब्दुल मतीन समाजवादी पार्टी के उत्तराखंड के प्रभारी हैं। अब्दुल मतीन के बेटे उमैर Two Circle.net से बताते हैं कि जिस आबादी या इलाके को अतिक्रमण बताया जा रहा है, वहां 100 सालों से लोग यहां रह रहे हैं। मेरा ख़ुद का परिवार यहां 50 सालों से रहता आया है। हमारे पास मकान के कागज़, रजिस्ट्री सब पेपर मौजूद हैं लेकिन कहीं कोई सुनवाई नहीं हो रही है, हाईकोर्ट ने मकानों के कागज़ देखने से इन्कार कर दिया है।
उमैर बताते हैं कि हल्द्वानी रेलवे स्टेशन से ट्रेन की पटरी के आसपास सन् 2016 में रेलवे ने इसे अपनी भूमि बताते हुए स्टेशन से नीचे इंदिरानगर जहां पर 50 वर्षों से भी अधिक समय से लोग आबाद हैं, को अपनी जगह बताते हुए पिलरबंदी कर दी थी तब वो जगह 22 एकड़ की थी जो उनको दे दी गई थी। लेकिन अब लगभग 78 एकड़ ज़मीन को रेलवे की जमीन बता दिया गया वो भी बिना पैमाईश के, यह सरासर ग़लत है। अब प्रशासन उस पूरे जगह पर काबिज लोगों के मकानों पर बुलडोजर चलाने की तैयारी कर रहा है।
उमैर कहते हैं कि जो बीजेपी वाले वोट लेने के लिए यहां आते हैं, लेकिन अभी तक यहां कोई भी सुध लेने नहीं आया। हज़ारों लोगों के घर-मकान टूट जाएंगे तो बेघर लोग कहां जाएंगे। जिस इलाके को अतिक्रमण बताया जा रहा है वहां पर कई सरकारी स्कूल, कॉलेज, मंदिर-मस्जिदें हैं। स्कूल कॉलेज टूट जाएंगे तो बच्चों का भविष्य अंधकारमय हो जाएगा।
अब्दुल मतीन कहते हैं कि उनके पूर्वज यहां कई दशकों से रहते आए हैं। केंद्र की बीजेपी सरकार एक तरफ हर सर को छत देने की बात करतीं हैं वहीं उत्तराखंड की बीजेपी सरकार लोगों के सिर से छत छीन रहीं हैं। वो कहते है कि हमारी सरकार से यहीं मांग हैं कि पहले तो आबादी को न उजाड़ा जाए, लेकिन अगर सरकार हटाना चाहती है तो सबसे पहले बेघर होने वाले लोगों के लिए घरों का इंतजाम किया जाएं।
हल्द्वानी के स्थानीय पत्रकार सरताज आलम TwoCircle.net से बताते हैं कि 1937 से यह ज़मीन लीज पर हैं, बस्ती में लोग कई दशकों से रह रहे हैं। रेलवे के दावे से पुराने दावे बस्ती के लोगों के पास मौजूद हैं। 2013 में उत्तराखंड हाई कोर्ट में रविशंकर जोशी नाम के व्यक्ति ने एक जनहित याचिका दायर की थी। याचिका में कहा गया था कि गौला नदी के पुल के आसपास जो बस्तियां हैं वहां रहने वाले लोग नदी में बालू और मिट्टी का खनन करते हैं जिसके कारण गौला नदी का पुल गिर गया था।
सरताज आलम बताते हैं कि हाईकोर्ट ने याचिका पर सुनवाई करते हुए रेलवे और तत्कालीन सरकार को नोटिस जारी किया था। इसके बाद एक तरफ रेलवे ने हाईकोर्ट को बताया था कि 29 एकड़ ज़मीन रेलवे की है और उस पर लोगों का अवैध कब्जा हैं दूसरी तरफ तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने कोर्ट में जमीन को नजूल की बताया था। तब 2016 में ही हाईकोर्ट ने अवैध कब्जा को हटाने का आदेश दिया था। वहां के कुछ लोगों ने हाईकोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती भी दी थी।
सरताज कहते हैं कि सुप्रीम कोर्ट ने रेलवे कोर्ट से इस मामले को देखना को कहा। रेलवे ने सुनवाई के नाम पर महज़ खानापूर्ति की और खुद के पक्ष में फैसला ले लिया। जो रेलवे पहले इलाके की 29 एकड़ ज़मीन अपनी बता रहा था वो अब 78 एकड़ बताने लगा जिससे बहुत बड़ी आबादी अतिक्रमण की जद में आ गई। वो कहते है कि 2016 में तत्कालीन राज्य सरकार ने हाईकोर्ट में इस पूरी ज़मीन को नजूल की बताया था तो अब फिर अब मौजूदा सरकार चुप क्यों हैं। वो कहते है कि जिस ज़मीन पर लोग 100 सालो से रहते आए हैं वो अब रेलवे की कैसे हो गईं।
इस मामले की लोकल कोर्ट में पैरवी करने वाले शोएब अहमद TwoCircle.net से बताते हैं कि सरकार रेलवे विस्तार करने के बहाने वहां की बस्ती उजाड़ना चाहती है। वहां रेलवे का मालिकाना नहीं बनता है रेलवे द्वारा हाईकोर्ट में सिर्फ चार नक्शे जमा किए हैं। इसके अलावा उसके पास सरकार से जमीन अधिग्रहण करने के कोई कागज़ भी नहीं है। शोएब बताते हैं कि 2016 में कांग्रेस सरकार मलिन बस्ती अधिनियम लेकर आई थी। इसके तहत पूरे राज्य में 582 मलिन बस्तियों को शामिल किया गया था जिसमें वनभूलपुरा इलाके की गफूर बस्ती और इंदिरा नगर भी शामिल थे। लेकिन 2021 में वनभूलपुरा की दोनों बस्तियों को मलिन बस्ती अधिनियम से बाहर कर दिया गया।
शोएब बताते हैं कि 2016 में उत्तराखंड की कांग्रेस सरकार ने इस मामले की हाईकोर्ट व सुप्रीम कोर्ट में पैरवी की गई थी । मौजूदा उत्तराखंड की भाजपा सरकार प्रभावित लोगों के पक्ष में हाईकोर्ट व सुप्रीम कोर्ट में कोई पैरवी नहीं कर रही है। यह भाजपा सरकार का फासीवादी चेहरा है जो मुस्लिम आबादी को बेघर करने का काम कर रही है। वनभूलपुरा इलाके में हजारों की संख्या में छात्र आबादी रहती है उनके भविष्य के बारे में फैसले में नहीं सोचा गया। ठंड के मौसम में करीब 50,000 आबादी जिसमें बूढ़े- बच्चे – गर्भवती महिलाएं सभी शामिल हैं वो कहां रहेंगी जाएंगी कोर्ट को आदेश में यह भी बताना चाहिए।
हल्द्वानी के पूर्व विधायक काजी निजामुद्दीन कहते हैं कि पहले यह जमीन 29 एकड बताई गई थी लेकिन बाद में 79 एकड़ बता दी गई। गफूर बस्ती में साठ साल से भी अधिक समय से मंदिर, ओवरहेड टैंक, शिशु मंदिर और सीवर लाइन हैं। यदि यह रेलवे की जमीन है तो यहां ओवरहेड टैंक और सीवर लाइन कैसे बना दी गई? यहां जमीन का बैनामा किया गया तो सरकार ने रेवेन्यू कैसे ले लिया? क्या तब यह रेलवे की जमीन नहीं थी? यहां वक्फ बोर्ड की संपत्ति भी है। उन्होंने कहा कि सरकार को इन लोगों के पुनर्वास के लिए कदम उठाने होंगे। इनके प्रति मानवीय दृष्टिकोण अपनाते हुए उनको बेघर न किया जाए।
हाईकोर्ट के आदेश के बाद वनभूलपुरा इलाके में भारी संख्या में मुस्लिम समुदाय सड़क पर उतरकर प्रदर्शन कर रहे हैं। मुस्लिम समुदाय कैंडल मार्च निकालकर अपना विरोध जता रहा है तो कभी दुआओं के जरिए ख़ुदा से घर बचाने की फरियाद कर रहा है। प्रदर्शन में शामिल उमैर Twocircle.net से बताते हैं कि सभी लोग प्रदर्शन शांतिपूर्ण तरीके से कर रहे हैं। बच्चों के साथ बूढ़े भी मकानों को बचाने की जद्दोजहद में उतर आएं हैं। सभी की सरकार से मांग है कि या तो इसपर रोक लगाएं या फिर पहले हमारे रहने का कई इंतजाम हो फिर बुलडोजर चलें।
इस मामले में राजनीति भी तेज हो गई है। कांग्रेस ने हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती देने के लिए सुप्रीम कोर्ट में सोमवार को याचिका दायर की है। कोर्ट दायर याचिका की सुनवाई 5 जनवरी को करेगा। कांग्रेस इस मुद्दे को लेकर बीजेपी पर मुखर नज़र आ रही है। सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर करते समय हल्द्वानी के कांग्रेस के विधायक सुमित हृदयेश के अलावा कांग्रेस सांसद इमरान प्रतापगढ़ी भी मौजूद थे। इसके अलावा समाजवादी पार्टी भी इस मामले को लेकर बीजेपी को घेर रहीं हैं। समाजवादी पार्टी का एक प्रतिनिधिमंडल 4 जनवरी को वनभूलपुरा जाकर वहां लोगों से मिलेगा।