बिहार के सीमांचल में बच्चों की जिंदगी में खुशियां भरने के लिए 27 साल के नौजवान साकिब गांवों में लाइब्रेरी खोलने की मुहिम चला रहे हैं। उनकी लाइब्रेरी का नाम सावित्री बाई फुले है। साकिब ने इस मुहिम के लिए नौकरी तक छोड़ दी है।
Twocircles.Net के लिए आसिफ इक़बाल की रिपोर्ट
बिहार के किशनगंज जिले के बेलवा पंचायत में दलित बस्ती मदारी टोला है। इस बस्ती के एक घर में दर्जनों बच्चे किताबें पढ़ रहे हैं। यह सावित्री बाई फूले लाइब्रेरी है, जो इन बच्चों की जिंदगी में उजाला ला रही है। 12 साल का विजय आठवीं कक्षा में पढ़ता है। वो एक दलित परिवार से आता है और अपने परिवार में पहला शख्स है, जो स्कूल जा रहा है। उसके माता-पिता और पुरखों में से कोई भी कभी स्कूल नहीं गया। विजय के लिए लाइब्रेरी आना मनोरंजन की तरह है। वह कहता है कि यहां कोई डांटता नहीं है। विजय छह महीने से यहां नियमित आ रहा है। यहां आने से पहले उसे ठीक से हिंदी भी नहीं पढ़नी आती थी, उसने अपने कोर्स के अलावा दो कहानी की किताबें भी पढ़ी हैं। मजहर भी विजय की तरह बिल्कुल गरीब परिवार से आता है। उसके पिता ऑटो रिक्शा चलाते हैं। मजहर कहता है कि दोस्तों के साथ यहां आना अच्छा लगता है। तस्वीर वाली किताबें काफी अच्छी लगती। बच्चों को लाइब्रेरी लाने की मुहिम 27 साल के साकिब की है। जिनका मकसद बच्चों के जीवन में शिक्षा का उजियारा लाना है। बच्चों को पढ़ाई से जोड़ने के लिए साकिब ने सीमांचल लाइब्रेरी फाउंडेशन के तहते किशनगंज जिले के अलग-अलग ब्लाक में तीन लाइब्रेरी शुरू की है। बंगाल की सीमा से लगा किशनगंज बिहार के पिछडे़ इलाके सीमांचल का हिस्सा है। 2011 की जनगणना के अनुसार किशनगंज में साक्षरता दर 55.46 प्रतिशत है।
साकिब ने दो साल पहले गणतंत्र दिवस यानी 26 जनवरी 2021 के दिन एक कच्चे मकान में पहली लाइब्रेरी शुरू की थी और इस लाइब्रेरी का नाम फातिमा शेख लाइब्रेरी रखा। इन दो वर्षों में साकिब की अथक मेहनत का नतीजा है कि अब इस जिले में अलग-अलग ब्लॉक में तीन लाइब्रेरी शुरू हो चुकी है और इन लाइब्रेरी से इलाके के अब तक एक हजार बच्चे जुड़ चुके हैं। इनमें से 250 बच्चे तो रेगुलर लाइब्रेरी पढ़ने आते हैं। खास बात यह है कि साकिब की इस मुहिम की सराहना बॉलीवुड गीतकार वरूण ग्रोवर भी कर चुके हैं और उन्होंने लाइब्रेरी को चलाने के लिए आर्थिक मदद भी दी है।
साकिब Twocircles.net को बताते हैं कि वर्ष 2014-15 के दरम्यान हमने अपने दोस्तों के साथ ‘दोस्त साहित्य और चाय’ नाम से मंच बनाया था। हम लोग प्रत्येक रविवार साहित्य और सम-सामयिक मुद्दों पर चर्चा करते थे। उस वक्त हम लोगों के पास किताबें नहीं थी। इस दौरान यह विचार आया है कि हम लोगों के पढ़ने के लिए पुस्तकालय होना चाहिए, लेकिन इस पर कभी आगे नहीं बढ़ सके।
साकिब कहते हैं कि मैं एक स्थानीय न्यूज पोर्टल में नौकरी करता था और 2020 में नौकरी करते हुए ऐसे लगा कि अब वक्त आ गया है कि कुछ अपने मन का किया जाए। लॉकडाउन के दौरान ही नौकरी छोड़ दी। नौकरी करते हुए करीब 18 हजार रुपए बचाए थे। इन पैसों से किताबें खरीदी और एक कच्चे मकान से लाइब्रेरी शुरू कर दी। आज इन लाइब्रेरी में लगभग 4 हजार किताबें हैं और लाइब्रेरी की संख्या भी अब तीन हो चुकी हैं। ये तीनों लाइब्रेरी किशनगंज जिले के अलग-अलग ब्लॉक में है। साकिब कहते हैं कि नौकरी छोड़कर इस मुहिम को शुरू करने का फैसला लेना आसान नहीं था। दो साल तो बेहद संघर्ष में बीते। बीच में एक वक़्त ऐसा भी आया जब लगा कि लाइब्रेरी को बंद करना होगा। जमा पूंजी खत्म हो चुकी थी, पर हमने धैर्य से काम लिया और इस मुहिम को जारी रखने में दोस्तों ने भी दिल खोलकर मदद की।
साकिब कहते हैं कि मोबाइल और इंटरनेट के जमाने में बच्चों को किताबों से जोड़ना चुनौतीपूर्ण है। शुरू में बच्चों को लाइब्रेरी में लाने के लिए हम लोगों ने ने आस-पास के स्कूलों और कोचिंग सेंटरों में जाकर वर्कशॉप लगाई। गांव में किताबों की प्रदर्शनी लगाई। बच्चों को पढ़ाई के महत्व के बारे में बताया और उन्हें यह समझाया कि कोर्स के अलावा भी ऐसी किताबें होती हैं, जिन्हें पढ़ना और समझना चाहिए। अब तक हम लोग कुल 9 प्रदर्शनी लगा चुके हैं। बच्चों का मन लगा रहे, इसलिए हम लोग उन्हें फिल्में और संगीत भी दिखाते हैं। हमारा मानना है कि लाइब्रेरी का माहौल खुशनुमा होना चाहिए और बच्चों पर अनावश्यक नियम नहीं थोपा जाना चाहिए। इसलिए हम बच्चों को फिल्में और गाने भी दिखाते हैं। हम लोग इसी बात का ख्याल रखते हैं कि बच्चे बगैर संकोच के यहां आएं और पढ़ें। ये बच्चों के लिए किसी मस्ती से कम नहीं रहा। खेल-खेल में ही बच्चे लाइब्रेरी की तरफ आकर्षित होने लगे।
साकिब बताते हैं कि उनकी ड्रॉप आउट बच्चों को फिर से स्कूल भेजने और इन लाइब्रेरी को नाइट लर्निंग सेंटर में बदलने की योजना है, वो कहते हैं कि बेलवा पंचायत की दलित बस्ती मदारीपुर टोला में सावित्री बाई लाइब्रेरी हैं, जहां अधिकांश बच्चे स्कूल ड्रॉप आउट हैं, वहां दिन के 12 बजे से 6 बजे शाम तक पुस्तकालय खुलती है, जो बच्चे स्कूल जाते हैं उनके लिए 3 बजे से लाइब्रेरी होती है। हम लोग चाहते हैं कि स्कूल के समय के साथ लाइब्रेरी का वक़्त न टकराएं। इस साल से कोशिश होगी कि सभी बच्चों को स्कूल भेजे और लाइब्रेरी का वक़्त दोपहर 2 बजे से कर दें। एक तरह से इवनिंग या नाईट लर्निंग सेंटर के रूप में इन पुस्तकालयों को बदलने की योजना है। साकिब कहते हैं कि आज के वक़्त में दो लाइब्रेरी को अच्छे से चलाने के लिए लगभग छः लाख का बजट आता है। इसे पूरा करने का एक मात्र सहारा ‘क्राउड फंडिंग’ है। इसमें बॉलीवुड के गीतकार वरुण ग्रोवर ने मदद की है। अपने पैसे से लाइब्रेरी की इमारत बनवाई। साथ में सोशल मीडिया पर सीमांचल लाइब्रेरी के लिए वीडियो भी जारी किया। इससे स्थानीय लोग मेरे काम को गंभीरता से लेने लगे। वे बताते हैं कि वरुण ग्रोवर से ट्विटर के माध्यम से मुलाकात हुई थी। फंड की कमी की वजह से रुकैय्या शखावत लाइब्रेरी फिलहाल बंद है।
अभी 12 वॉलंटियर की मदद से लाइब्रेरी चल रही है। इस मुहिम से जुड़े मोहम्मद आकिब कहते हैं कि इस लाइब्रेरी के अच्छे काम को देख कर मैं इससे जुड़ा हूं। आकिब ने जामिया से बारहवीं और दिल्ली विश्वविद्यालय से बीए की पढ़ाई की है। वे कहते हैं कि इस लाइब्रेरी में बिल्कुल गरीब और सुविधाहीन बच्चे ही पढ़ने आते हैं। अधिकांश के माता-पिता दिहाड़ी मजदूर हैं। उम्मीद है कि यह लाइब्रेरी इन बच्चों के जीवन में उजाला लाएगी।