देश में 8 साल में दलितों के खिलाफ हिंसा के 3.65 लाख से ज्यादा मामले, यानी हर रोज 125 केस
- सबसे ज़्यादा दलित के खिलाफ हिंसा के मामले उत्तर प्रदेश में, 4 साल में करीब 50 हजार दलित हिंसा के शिकार हुए
मोहम्मद ज़मीर हसन| twocircles.net
भारत में दलितों के खिलाफ हिंसा के मामलों में लगातार इजाफा हो रहा है। केंद्र सरकार ने बजट सत्र के दूसरे चरण के दौरान संसद में पूछे गए एक सवाल के जवाब में बताया कि 2018 से 2021 के बीच दलितों के खिलाफ हिंसा के 1.8 लाख से ज्यादा मामले दर्ज किए गए हैं। इनमें से 27,754 व्यक्तियों को दलितों के खिलाफ अपराधों के लिए दोषी ठहराया गया है। हालांकि सरकार ने बताया कि 2022 का डेटा अभी उपलब्ध नहीं है।
अगर बीते दशक से दलित के खिलाफ हिंसा के मामले का विश्लेषण बताता है कि दलितों के खिलाफ हिंसा के मामले में कोई कमी नहीं आ रही है। 2009 से 2018 के बीच दलितों के खिलाफ हिंसा के मामले में कन्विक्शन रेट औसतन 25.2% ही है। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़ों के मुताबिक देश में 2009 से 2013 में कांग्रेस के नेतृत्व वाले यूपीए शासन में 1,72,716 मामले सामने आए थे। 2009 से 2013 के बीच दलितों के खिलाफ हिंसा के मामले में 17.29% बढ़ोतरी देखी गई।
2009 से 2013 तक दलितों के खिलाफ हिंसा के मामले
साल | दलितों के खिलाफ हिंसा | |
2009 | 33529 | |
2010 | 32665 | |
2011 | 33670 | |
2012 | 33585 | |
2013 | 39327 |
2014 के बाद से भी नहीं बदले हालात
2014 की शुरुआत में हुए आम चुनाव में प्रचंड बहुमत के साथ एनडीए सरकार सत्ता में आई। लेकिन दलितों के खिलाफ हिंसा के मामले में कोई कमी नहीं देखी गई। नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के डेटा के मुताबिक 2014 में 46962 मामले आए, जो 2013 की तुलना में 23.7% अधिक है। 2014 से 2018 के दौरान कुल 2,18,516 मामले आए। वहीं 2019-2021 के बीच 147043 मामले आए हैं। 2022 के डेटा उपलब्ध नहीं है। कुल मिला कर इन 8 वर्षों में पूरे देश में दलित के खिलाफ हिंसा के 3,65,559 मामले आए हैं। इस लिहाज से देखा जाए तो हर साल दलितों के खिलाफ हिंसा के औसतन 45,695 मामले आ रहे हैं। यानी हर दिन औसतन 125 दलितों पर जुल्म हो रहा है।
टेबल: 2014 से 2019 तक दलितों के खिलाफ हिंसा के मामले
साल | दलितों के खिलाफ हिंसा | दलितों के खिलाफ सालाना होने वाले कुल अपराध में गंभीर मामले |
2014 | 46962 | 23.7 |
2015 | 44941 | 22.7 |
2016 | 40743 | 20.6 |
2017 | 43122 | 21.8 |
2018 | 42748 | 23.1 |
(2014 के शुरुआती चार महीने केंद्र में यूपीए सरकार थी।)
वर्ष | दलितों के खिलाफ हिंसा के मामले | दलितों के खिलाफ सालाना होने वाले कुल अपराध में गंभीर मामले |
2019 | 45852 | 23.1 |
2020 | 50,291 | 25.5 |
2021 | 50,900 | 25.5 |
दलितों के खिलाफ हिंसा में उत्तर प्रदेश का रिकॉर्ड सबसे खराब, हर रोज औसतन 35 मामले
दलितों के खिलाफ हिंसा के मामले में उत्तर प्रदेश का रिकॉर्ड सबसे बदतर रहा है। एक दशक से अधिक समय से दलितों के खिलाफ सबसे अधिक अपराध उत्तर प्रदेश में हो रहा है। 2018-2021 के बीच उत्तर प्रदेश में दलितों के खिलाफ 49,613 मामले आए हैं। इनमें 2018 में 11,924, 2019 में 11,829, 2020 में 12,714 और 2021 में 13,146 मामले दर्ज किए गए हैं। हर दिन यहां दलितों के खिलाफ हिंसा के औसतन 35 मामले आ रहे हैं। इसके बाद राजस्थान, मध्य प्रदेश, बिहार और गुजरात आते हैं। 2011 की जनगणना के अनुसार उत्तर प्रदेश की जनसंख्या 19 करोड़ से अधिक है। कुल जनसंख्या में से, 77.73% जनसंख्या शहरी क्षेत्र में और 22.27% ग्रामीण क्षेत्र में रहती है। उत्तर प्रदेश में, कुल जनसंख्या का 20.7% अनुसूचित जाति (एससी) और 0.57% अनुसूचित जनजाति (एसटी) है।