Poonam Masih/ TwoCircles.net
पिछले साल हिन्दू समूह द्वारा हरियाणा के नूंह में निकाली गई कलश यात्रा के दौरान हुई हिंसा के बाद कानूनी कार्रवाई की जद में आए दिव्यांग और फुटपाथ विक्रेताओं की रोजी-रोटी के लाले. कोर्ट-कचहरी के चक्कर में जीवनयापन हो रहा मुस्किल. पुलिस पर जबरन अपराध मढ़ने के आरोप.
हरियाणा/नूंह। महीने भर में लगभग 17 दिन नूंह जिला अदालत में हाजिरी लगाने वाले नूंह दंगे के आरोपी साजिद मानसिक रूप से परेशान हो चुके हैं. “हमलोग गरीब मुसलमान हैं, इसलिए हम लोगों को दंगे में फंसा दिया गया। इतने लोगों में आपको एक भी आदमी पैसे वाला नजर नहीं आ रहा होगा। सभी रोज कमाने खाने वाले हैं”, गुस्से और हताशा भरे यह शब्द नूंह दंगे के दौरान पुलिस द्वारा पकड़े गए साजिद के हैं।
पिछले साल हुआ था दंगा
पिछले साल गौरक्षा के नाम पर मुसलमानों की हत्या और बाद सावन में 31 जुलाई को बजरंग दल द्वारा ब्रजमंडल (मेवात) जलाभिषेक यात्रा के दौरान भड़की हिंसा ने नूंह के लोगों के जीवन को बदल दिया है।
इस घटना के एक साल बाद भी लोगों में इसको लेकर गुस्सा तो है साथ ही पुलिस कारवाई के दौरान पकड़े गए लोगों को अब मानसिक अवसाद से गुजरना पड़ रहा है।
नूंह हरियाणा और राजस्थान के बॉर्डर पर है। यहीं पर गौरक्षा के नाम पर मुसलमानों पर होते अत्याचार को लेकर मोनू मानसेर (राजस्थान के नासिर और जुनैद का कथित हत्यारोपी) और बिट्टू बजरंगी पर लोगों का गुस्सा था और उसे यात्रा में शामिल न होने की मांग थी। लेकिन यात्रा से तीन पहले ही दोनों ने सोशल मीडिया पर भड़काऊ पोस्ट करते हुए नूंह आने की बात की। जिसमें लोगों का गुस्सा और भी भड़क गया।
31 जुलाई को भड़की आग नूंह से होती हुई सोहना और गुरुग्राम तक भी पहुंची। जहां बड़ी मात्रा में लोगों की संपत्ति का नुकसान हुआ। जिसमें पुलिस ने कई लोगों पर एफआईआर दर्ज कर मामला चलाया।
नूंह के लोगों का केस लड़ रहे वकील ताहिर हुसैन रुपाड़िया का कहना है कि नगीना थाने में 17 एफआईआर दर्ज हुई जिसमें एक ही व्यक्ति सभी 17 मामलों में अभियुक्त है।
वह कहते हैं, “ऐसा कैसे संभव है कि एक ही व्यक्ति एक समय में 17 वारदातों को अंजाम दे। पुलिस ने लोगों पर लूटपाट, आगजनी का मामला दर्ज किया था। फिलहाल लोगों को जमानत तो मिल गई है, अब बस कोर्ट हाजिरी लगाने आते हैं.”
नूंह जिला अदालत में आम दिनों की तरह ही हमेशा लोगों की भीड़ रहती है। लेकिन इस मामले में आरोपी बनाए गए लोगों के लिए अब कोर्ट आना आम बात सी हो गई है। कोर्ट परिसर में सारा दिन पेड़ के नीचे बैठे रहना, फिर हाजिरी लगाना और घर चले जाना और अगले दिन आने की फिऱ तैयारी करना, ऐसे ही अब उनकी जिदंगी चल रही है।
लोगों में गुस्सा
साजिद का नूंह से लगभग 30 किलोमीटर दूर बडकली के बदरपुर में ढाबा है। यही उनके जीवनयापन का एक मात्रा साधन है। लेकिन दंगे के बाद से सबकुछ बदल गया है। महीने के लगभग 17 दिन कोर्ट आऩे के बाद वह बहुत ही गुस्से में कहते हैं कि, “इतनी एफआईआर में एक भी अमीर आदमी नहीं है। सारे दिहाड़ी मजूदरी वालों को ही परेशान किया जा रहा है।”
साजिद तीन महीने तक जेल में रहे और बाद में जमानत पर बाहर आए हैं। वह बताते हैं कि “पूरा का पूरा धंधा ही खत्म हो गया है। मेरा कसूर बस इतना है कि मेरा ढाबा सड़क पर था। पुलिस ने मुझे वहीं से गिरफ्तार कर लिया और तरह-तरह की धारा के तहत जेल में बंद कर दिया.”
“जेल से बाहर आऩे के बाद भी हमें सुकून नहीं हैं। हर दूसरे दिन कोर्ट का चक्कर लगाना पड़ा रहा है। जब भी आता हूं ढाबा बंद करके आता हूं। उस दिन की पूरी कमाई खत्म। ऐसे में इतनी महंगाई में मैं घऱ चलाऊं या कोर्ट की फीस भरूं…!! मैं बहुत परेशान हो गया हूं,” साजिद ने बताया.
पिछले साल हुए दंगे में नगीना में 17, तावडू में एक और कुछ नूंह में एफआईआर दर्ज की गई थी।
जिसमें नगीना की 17 एफआईआर में एक ही आदमी का नाम 17 बार हैं। अब लोग इसको लेकर सवाल पूछ रहे हैं। शकील सवाल करते हुए कहते हैं कि, यह कैसे संभव है कि एक आदमी एक ही समय में चार जगह पर वारदात को अंजाम दें।
शकील पेशे से ड्राइवर हैं। वह कहते हैं कि, “दंगे के बाद बड़कली में जयपुर बटालियन आई थी। मैं उनके ही साथ है, उनका सामान लाना लेना जाना कर रहा था। रत्न लाल (एसएचओ) ने मुझे वहां से गिरफ्तार किया और छोड़ने के लिए पैसों की मांग की।”
वह आगे कहते हैं, “हम रोज कमाने खाने वाले लोग हैं, कहां से लाएंगे लाखों रुपए…! पैसे नहीं दिया तो मेरा ऊपर केस हो गया, एफआईआर के अनुसार मैंने दो घंटे के अंदर 17 जगह में लूटमार और आगजनी की है।”
“यह कैसे संभव हैं। तीन महीने जेल में रहकर आया हूं और अब काम के लिए बाहर नहीं जा सकता हूं। बमुश्किल दस दिन ही काम कर पाता हूं”, शकील ने सवाल पूछते हुए कहा कि, “खाने पीने की तंगी हो गई है यहां तक की मेरी बेटी की फीस देने में ही तंगी हो रही है। हमें ही पता है कुछ लोगों के कारण हमारी जिदंगी कैसे बर्बाद सी हो गई है।”
इस केस में 20 साल के युवा से लेकर 62 साल के बुर्जुग शामिल हैं। जिनपर पुलिस ने मामला दर्ज किया है। दीना उनमें से एक हैं जो शुगर और हार्ट के मरीज भी हैं।
दीना एक फल की रेहड़ी लगाते हैं। पुलिस ने उन्हें रेहड़ी की दुकान से ही गिरफ्तार कर लिया था। उनका एक ही बेटा है, जो कान से सुन पाने में असक्षम है। वह कहते हैं कि, “जिस उम्र हमें आराम की रोटी खानी चाहिए, उस समय महीने के लगभग 20 दिन कोर्ट के चक्कर लगाने पड़ते हैं। हर रोज आने जाने का कम से कम दो सौ रुपए किराया लगता है। इसके अलावा भी अन्य खर्चे हैं। जिस दिन कोर्ट आए सारा दिन यहीं पार हो जाता है [पूरा दिन बीत जाता है]।”
“रेहड़ी भी नहीं लगा पाता हूं. बेटा से जितना हो पाता वह करता हैं। लेकिन ज्यादा काम मैं ही देखता था। अब तो स्थिति यह है कि कई बार किराया भी गांव के लिए बुर्जुग होने के नाते दे देते हैं। कुछ भले लोग ही मदद कर रहे हैं”, दीना ने असहज भाव में कहा.
वह बताते हैं कि, “इस मामले में जिन लोगों को जमानत मिली है। कोर्ट में सभी लोग एक साथ बैठे मुझसे एक स्वर में कहते हैं कि हम जितने भी लोग हैं, इनमें से एक भी शख्स ऐसा नहीं हैं जो नूंह और बड़कली के दंगे में नजर आ जाए। न हमारी लोकेशन होगी। पुलिस ने कोई जांच नहीं की, जो हाथ आया उसे ले लिया। किसी को दुकान से, किसी को घर से, सड़क से, जिसे जैसा चाहा वैसे ही उठा लिया और केस दर्ज कर दिया है. अब गरीब लोग इसे झेल रहे हैं।”
आपसी रंजिश में फंसा हिंदू लड़का
इस हिंसा में सभी मुस्लिम हैं सिर्फ हरीश को छोड़कर. हरीश का कहना है कि उसे तो आपसी रंजिश के कारण फंसाया गया था। 21 साल के हरीश के परिवार की चौक पर समोसे और कचौड़ी की दुकान है और पुलिस ने उस पर लूटपाट करने का मामला दर्ज किया था।
हरीश कहते हैं कि, “केस के कारण कोर्ट की परेशानी तो एक तरफ हैं। सबसे बड़ी समस्या यह है कि मेरी और मेरे भाई की शादी भी नहीं हो रही है। कुछ समय पहले ही कही रिश्ता तय हुआ था। उन्हें कहीं से पता चल गया कि मेरे पर 17 मामले दर्ज हैं। लड़की पक्ष ने तुरंत रिश्ता तोड़ दिया। अब कहीं कोशिश भी करते हैं तो बात नहीं बनती हैं। केस मुझ पर है, मेरे भाईयों के भी रिश्ते नहीं हो रहे हैं।”
नगीना की 17 एफआईआर में एक मामला दिव्यांग व्यक्ति पर हैं। दिव्यांग के भाई मन्नान बताते हैं कि, “मेरा भाई हारुन का 75 प्रतिशत दिव्यांग शरीर का निचला हिस्सा काम नहीं करता है। उसका काबड़ का काम है. बैठा-बैठा वही करता था। पुलिस ने उस पर भी मामला दर्ज कर लिया और मुझे, हारुन और सागीर तीनों भाईयों को पुलिस ने गिरफ्तार किया। जबकि उसकी विकलांगता को भी नहीं जांचा गया।”
उन्होंने कहा, “अब जमानत पर हारुन बाहर तो आ गया है लेकिन बार-बार कोर्ट आना संभव नहीं पाता है। कोर्ट आऩे के दौरान एक दिन उसका एक्सीडेंट भी हो गया था। हमलोग बस यही चाहते हैं कि किसी तहर हमारी तारीखें कम हो जाए। हर बार आना संभव नहीं हो पाता है।”