अफ़रोज़ आलम साहिल, TwoCircles.net
नई दिल्ली : देश में एक आम ग़लतफ़हमी है कि सरकार हज पर जाने वाले भारतीय मुसलमानों पर खर्च करती है, लेकिन हम यहां आपको बताने जा रहे हैं कि इस हज पर जाने के लिए खुद मुसलमान कितना खर्च करते हैं.
इस बार भारत सरकार ने ग्रीन कैटेगरी के लिए अधिकतम 2,39,600 रूपये तय किए हैं, वहीं अज़ीज़िया कैटेगरी के लिए ये रक़म 2,06,200 रूपये है. स्पष्ट रहे कि एयर-फेयर की वजह से हर राज्य का खर्च अलग-अलग होता है. खाने-पीने पर हाजियों को खुद ही खर्च करना पड़ता है. इसके अलावा अगर वहां जानवरों की क़ुर्बानी करनी है तो उसके लिए हर हाजी को 8 हज़ार रूपये अलग से देना होता है.
हज के खर्च में हर साल बढ़ोत्तरी हो रही है. पिछले साल 2016 में ग्रीन कैटेगरी का कुल खर्च 2,19,000 रूपये था, अज़ीज़िया कैटेगरी में ये खर्च 1,85,000 रूपये रहा. वहीं 2015 में ग्रीन कैटेगरी के लिए 2,13,000 रूपये और अज़ीज़िया में 1,80,000 रूपये का खर्च हुआ था.
बताते चलें कि मक्का में रिहाईश के दौरान दो कैटेगरी में लोग रहते हैं. ग्रीन कैटेगरी का मतलब हरम शरीफ़ से 1000 मीटर के अंदर रहने की सुविधा होती है. जबकि अज़ीज़िया कैटेगरी में लोग हरम शरीफ़ से 7-8 किलोमीटर की दूरी पर रहते हैं.
स्पष्ट रहे कि हर साल हाजियों का सबसे अहम खर्च एयर-फेयर होता है, जो इस बार अधिकतम 70085 रूपये और न्यूनतम 58,254 रूपये है.
और अगर हाजी के साथ कोई मेहरम (70 साल से अधिक बुजुर्ग हाजियों के साथ जाने वाला साथी) भी है तो एयर-फेयर का खर्च और भी अधिक होता है. अगर ये मेहरम असम से जा रहा है तो उसके लिए इस बार एयर-फेयर 1,11,723 रूपये है तो वहीं यदि बिहार से है तो उसे 1,06,868 बतौर एयर-फेयर देना होगा. बाक़ी राज्यों का किराया आप नीचे टेबल में देख सकते हैं.
ये किराया आपको भले ही बहुत ज़्यादा लग रहा हो, लेकिन अभी सरकार की सब्सिडी अलग है, जिसे वो इसी एयर-फेयर के नाम पर अलग से देती है. इसका हाजियों के ज़रिए दिए गए पैसे पर कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता है. अगली सीरीज़ में हम इस पर विस्तार से जानकारी उपलब्ध कराएंगे.
हज के मामलों पर काम करने वाले मुंबई के सामाजिक कार्यकर्ता अत्तार अज़ीमी बताते हैं कि हर साल ऐसा होता है कि हाजी भारत में अपना पैसा ग्रीन कैटेगरी के लिए जमा करता है, लेकिन सऊदी अरब पहुंच कर उसे अज़ीज़िया कैटेगरी में रहने को कहा जाता है. वहां हाजियों की अपनी मजबूरी होती है और वो इस मजबूरी में अज़ीज़िया में रह जाता है. उसका पैसा भी भारत लौटने पर काफी दिनों बाद लौटाया जाता है. इसके लिए भी हाजी को बार-बार चक्कर काटना पड़ता है. ज़्यादातर हाजी पैसा छोड़ देते हैं. हालांकि आज से पांच-छ साल पहले ऐसा नहीं था. हज कमिटी लोगों को उसके पैसे चेक के ज़रिए भेज देती थी. ग्रीन से अज़ीज़िया में रहने को मजबूर ऐसे हाजियों की संख्या हर साल हज़ारों में होती है.
हालांकि इस संबंध में हज कमिटी ऑफ इंडिया का कहना है कि, कौंसलेट जनरल हिन्द, जिद्दा के ज़रिए दी गई जानकारी के मुताबिक़ हम किसी भी कैटेगरी में सिर्फ़ उतना ही अलॉटमेंट लेटर जारी करते हैं, जितना कोटा हमें दिया गया है.
यहां यह भी बताते चलें कि अगर आप किसी वजह से हज के लिए ड्रा में नाम आने और फ़ीस जमा करने के बाद भी नहीं जाना चाहते हैं तो हज कमिटी आपके उस रक़म में से बतौर जुर्माना काटकर ही रक़म वापस करेगी और ये आमतौर हज की प्रक्रिया पूरी होने के बाद ही दिया जाता है. कटौती की सारी जानकारी आप नीचे देख सकते हैं.
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नोट : TwoCircles.net की ये ख़ास सीरीज़ #HajFacts आगे भी जारी रहेगा. अगर आप भी हज करने का ये फ़र्ज़ अदा कर चुके हैं और अपना कोई भी एक्सपीरियंस हमसे शेयर करना चाहते हैं तो आप [email protected] पर सम्पर्क कर सकते हैं. हम चाहते हैं कि आपकी कहानियों व तजुर्बों को अपने पाठकों तक पहुंचाए ताकि वो भी इन सच्चाईयों से रूबरू हो सकें.